15 अगस्त 1972 को अपनाई गई डाक सूचक संख्या – Postal Index Number (पिन कोड – PIN Code) कोड प्रणाली को 50 साल पूरे हो गए हैं. भारतीय डाक विभाग द्वारा भारत की स्वतंत्रता की रजत जयंती के अवसर पर 15 अगस्त 1972 को छह अंकों वाली डाक सूचक संख्या (पिन) कोड प्रणाली को जारी किया गया था.
दुनियाभर के देशों में पिन कोड (PIN Code) को अलग अलग तरह से जाना जाता है. जैसे पोस्ट कोड (Post Code), जिप कोड (ZiP Code) आदि.

वैश्विक डाक संघ के अनुसार दुनिया के 160 देशों ने अब तक डाक कोड (Postal Code) पेश किए हैं.
6 अंको के मायने
पहला अंक डाक क्षेत्र को दर्शाता है – उत्तरी, पूर्वी, पश्चिमी, दक्षिणी; दूसरा नंबर उप-क्षेत्र को दर्शाता है, और तीसरा चयनित जिले का प्रतिनिधित्व करता है. अंतिम तीन संख्याएं भूगोल को और अधिक विशिष्ट डाकघर तक सीमित कर देती हैं जहां से डिलीवरी होती है. 9 नंबर आर्मी डाक सेवा को दर्शाता है. वर्तमान में डाक विभाग के अनुसार, देश में कुल 19,101 पिन जारी किए गए हैं. जिनकी मदद से उनकी जगह को जाना जा सकता है.

उद्देश्य और फायदे
पिन कोड प्रणाली का मुख्य उद्देश्य गलत पते की चुनौती को दरकिनार करने और डाकघरों द्वारा सटीक और तेज गति से डाक और अन्य सामानों के वितरण को सुनिश्चित करने में मदद की उम्मीद के साथ की गई थी.
पिन कोड एक अक्षरांकीय (Alpha-Numeric) या सांख्यिक (Numeric) नंबर है जो डाक पते में दिये गये जिले और डिलीवरी पोस्ट ऑफिस की आसान पहचान के लिए शामिल है.
वर्ष 1944 में जर्मनी, सिंगापुर (1950), अर्जेंटीना (1958), संयुक्त राज्य अमेरिका (1963), स्विट्जरलैंड (1964), भारत (1972), और यूके द्वारा 1974 में देशभर में कोड पेश किए गए थे.
1960 के दशक में पश्चिमी देशों में पत्रों की छंटाई के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाने लगा था. मशीनों के साथ समस्या ये थी की वे लिखित रूप में वर्णित होने के बावजूद आसानी से डाकघर का पता नहीं पढ़ सकती थीं, कोड को अपनाने के पीछे ये भी एक मुख्य कारण था.
पोस्ट कोड ने हाथ से होने वाली डाक छंटाई की प्रणाली में क्रांति ला दी क्योंकि छांटने वाले को हजारों डाकघरों के स्थानों को याद रखने की आवश्यकता नहीं होती है.
नई चुनौतियां
पिछले दो दशकों में मोबाइल टेलीफोनी क्रांति ने वैश्विक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. टेलीफोन के आने के बाद से व्यक्तिगत पत्र लगभग गायब हो गये हैं.

वर्तमान में डाक प्रणाली के पास केवल दस्तावेज और ई-कॉमर्स पार्सल का काम बचा हुआ है, और इस क्षेत्र में भी डाक सेवाओं को कोरियर कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है.
पिन कोड का विचार
भारत में पिनकोड को लागू करने का सुझाव 1972 में संचार मंत्रालय में बतौर अतिरिक्त सचिव काम कर रहे श्रीराम भिकाजी वेलणकर का था. श्रीराम भिकाजी वेलणकर डाक एवं टेलीग्राफ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य भी थे.
भीकाजी संस्कृत के जाने-माने कवि भी थे. उन्होंने संस्कृत में 105 किताबें लिखीं और उनका नाटक ‘विलोमा काव्य’ आज भी संस्कृत साहित्य की उत्कृष्ट कृति कहा जाता है. 1996 में भीकाजी को उनके संस्कृत साहित्य में योगदान के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भी किया गया था.
वैश्विक डाक संघ
स्विटजरलैंड के बर्न में स्थित वैश्विक डाक संघ (Universal Postal Union-UPU) का गठन 1874 में किया गया था. इसका मुख्य कार्य अंतर्राष्ट्रीय डाकों के आदान-प्रदान को विनियमित करना और अंतर्राष्ट्रीय डाक सेवाओं के लिये दरों को तय करना है.

वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 192 (2013 से) हैं.
वैश्विक डाक संघ की चार इकाइयां हैं –
कांग्रेस.
प्रशासन परिषद.
अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो.
डाक संचालन परिषद.
यह विश्वभर के 6.40 लाख डाक घरों (Postal Outlets) को नियंत्रित करता है. भारत 1 जुलाई, 1876 को वैश्विक डाक संघ में शामिल हुआ था.