देश में कोरोना महामारी ने लोगों को बेहाल कर दिया है। आए हर दिन नई-नई बीमारियों के नाम सुनने को मिलते है। कोरोना वायरस से उबर चुके लोगों में अभी तक केवल फंगल संक्रमण जैसी बीमारियां मिल रही थीं। मगर अब तो बोन डेथ जैसे बेहद गंभीर बीमारियों के भी केस सामने आने लगे है। एवस्कुलर नेक्रोसिस नाम की इस बीमारी में हड्डियों तक रक्त का पहुंचना बंद कर देती है।
जिसके कारण उस जगह की कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं। बीते कुछ समय तक कोरोना के मामले कम हुए थे। मगर अब ये दोबारा बढ़ रहा है। इसके साथ ही थर्ड वेव आने का डर सता रहा है। इस बीच फंगल इंफेक्शन के मरीजों के अलावा कोरोना से रिकवर हुए लोग एक और बीमारी का शिकार हो रहे हैं, जिसे बोन डेथ नाम बताया जा रहा है।
विज्ञान की भाषा में इसे एवस्कुलर नेक्रोसिस या AVN भी कहा जाता है। अब इस केस कई मरीज बीते दिनों देश के कई महानगरों में पाऐ जा रहे है। वे हड्डियों में दर्द, कइयों को चलने-फिरने में दिक्कत बताया करते थे। जांच पर पता चला कि मरीज AVN से पीड़ित थे. ये सभी वो लोग थे, जो कुछ महीनों पहले कोरोना से लड़ चुके थे।
AVN वो अवस्था है, जिसमें शरीर में खून का थक्का जमने के कारण हड्डियों तक उसकी सप्लाई नहीं मिल पाती है। तब उस जगह की हड्डी खत्म होने लगती है।
चूंकि हड्डियों के आसपास लिगामेंट समेत कई संरचनाएं होती हैं, इसलिए बोन डेथ का तुरंत पता नहीं चल पाता है। बल्कि इसकी शुरुआत जोड़ों में दर्द से होती है. खासतौर पर हिप के जोड़ों में दर्द होने लगता है और मरीज को चलने में तकलीफ होती है. बता दें कि लगभग 50-60 प्रतिशत मामलों में ये बीमारी हिप के जॉइंट पर ही असर करती है।
बोन डेथ के मामले उन मरीजों में ज्यादा दिख रहे हैं, जो कोरोना के गंभीर संक्रमण का शिकार बने थे, और जिन्हें स्टेरॉयड लेनी पड़ी. ऐसे लोगों में क्योंकि रक्त का थक्का जमने की आशंका ज्यादा होती है।
AVN वो अवस्था है, जिसमें शरीर में खून का थक्का जमने के कारण हड्डियों तक उसकी सप्लाई नहीं हो जाती है. तब उस जगह की हड्डी खत्म होने लगती है. जैसे कोरोना के कई मरीजों में ब्लड क्लॉट के बाद किडनी या लिवर खराब हो गए, बोन डेथ वैसी ही एक अवस्था है।
इस बीमारी की जांच एमआरआई से हो पाती है. नॉर्मल एक्सरे कराने पर बीमारी का पता नहीं लगता। इसलिए अगर आप कोरोना के दौरान स्टेरॉयड ले चुके हैं और पहले से ही ऑर्थराइटिस का शिकार न हों तो हिप या दूसरे जॉइंट में दर्द होने पर चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। अगर शुरुआत में ही एमआरआई हो जाए तो बीमारी का इलाज दवाओं से ही हो जाता है।