“The ‘unskilled’ or ‘disposable’ labourer is never able to accumulate additional utility or human capital even after many years of experience. His only capital—the body—is treated as a disposable and inanimate piece of machinery that loses its value in order to generate value for the nation.”- Anu Sabhlok, Hoiwan Cheung and Yogesh Mishra ( SPECIAL ARTICLE Economic & Political Weekly; December 19, 2015 vol l no. 51 )
उपरोक्त कथन का सार यही है कि एक मजदूर कई सालों की मजदूरी के बाद भी खुद के लिए कुछ अतिरिक्त जैसा जुटा नहीं पाता है। न ही उसके पास कोई बचत होती है। बरसों तक मेहनत करने के बाद भी वह खुद के काम आ सके ऐसा कुछ भी संजो नहीं पाता है। पूंजी के नाम पर उसके पास कुछ नहीं बचता है। देश के लिए खुद को खपाते हुए मजदूर आखिर में वह चीज भी गंवा देता है, जिसके चलते वह इतने सालों तक काम कर सका। यानी उसका खुद का शरीर। एक उम्र के बाद वह मजदूरी करने लायक भी नहीं रह जाता है। बदकिस्मती से मजदूरों के लिए यह बुरे हालात आज आज भी ज्यों के त्यों हैं। ऐसे न जाने कितने मामले हैं जहां मजदूरों ने काम करते हुए अपने कार्यस्थल पर जान गंवाई।
आइए उनमें से कुछ एक के बारे में आपको बताते हैं:
- 28 मई 2023 को पूर्व मध्य रेलवे के धनबाद मंडल के अंतर्गत निचितपुर रेलवे क्रॉसिंग के निर्माण के दौरान 6 मजदूरों में से 4 की मौत हो गई।
- 23 अगस्त 2023 को मिजोरम के आइजोल जिले के सैरांग के पास बैराबी-सैरांग रेल परियोजना पर हुए हादसे में 23 मजदूरों की जान चली गई।
- 12 नवंबर, 2023 को उत्तराखंड में ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिल्क्यारा-दंदालगांव सुरंग का एक हिस्सा ढह गया, जिससे 41 मजदूर अंदर फंस गए। उनकी किस्मत अच्छी थी और सभी बच गये।
ये तीनों सरकारी परियोजनाएं थीं और इन दुर्घटनाओं के पीड़ित कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योजना के लाभार्थी नहीं थे। इसका मतलब यह है कि उन्हें बिना किसी बीमा या किसी अन्य कवरेज के खतरनाक परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया। यहां गौर करने लायक बात ये है कि किसी भी सरकारी निविदा के तहत काम हासिल करने के लिए किसी भी कंपनी के लिए अपने मजदूरों बीमा या अन्य कवरेज देना एक अनिवार्य मानक है।
उत्तरकाशी हादसा
यह एक ऐसी घटना थी जिसने न सिर्फ पीड़ित और उनके परिजनों बल्कि पूरी देश की चिंता बढ़ा दी थी। इस दुर्घटना के संबंध में इंडिया लीगल के पास ऐसे दस्तावेज़ हैं जो बताते हैं कि कैसे इस मामले में सरकारी मानदंडों की धज्जियां उड़ा दी गईं। नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी (एनईसी) को चार धाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के हिस्से के रूप में 4.5 किलोमीटर लंबी सिल्क्यारा-डंडलगांव सुरंग के निर्माण के लिए टेंडर मिला था। हालाँकि, इसने कर्मचारियों को ईपीएफ या कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) योजनाओं का लाभार्थी बनाने की जहमत नहीं उठाई। जैसे ही सुरंग ढही, पता चला कि अंदर फंसे 41 मजदूरों में से केवल 6 ही ईपीएफ के लाभार्थी थे। यह पूरी तरह से गैर कानूनी था, जिसमें एनईसी और एनएचआईडीसीएल दोषी थे। इंडिया लीगल के पास ऐसे दस्तावेज़ हैं जो इन मजदूरों को आखिरी मौके पर आवश्यक कागजात दिलाने और किसी भी आरोप-प्रत्यारोप से बचने का खुलासा करते हैं।
कब क्या हुआ?
कहानी शुरू होती है 12 नवंबर, 2023 की सुबह 5:30 बजे के आसपास। उस दिन पूरे देश में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा था। इसी बीच खबर आती है कि ब्रह्मखाल-यमुनोत्री राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिल्कायार-दंदालगांव सुरंग का एक हिस्सा ढह गया है और इसमें काम करने वाले 41 मजदूर सुरंग के अंदर ही फंस गए हैं। मीडिया में इस खबर के आने के बाद मुख्य श्रम आयुक्त (सेंट्रल) ने डिप्टी मुख्य श्रम आयुक्त, देहरादून को इस मामले पर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
देहरादून ऑफिस ने 13 नवंबर को एक अंतरिम रिपोर्ट मुख्य श्रम आयुक्त (सेंट्रल) को भेजी। जिसमें बताया गया कि चार धाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत नेशनल हाइवे एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉपरेशन लिमिटेड (NHIDCL) के मातहत नवयुग इंजिनियरिंग कंपनी (NEC) द्वारा 4.5 किलोमीटर सुरंग का निर्माण कराया जा रहा है। इस दौरन एक हिस्सा भूस्खलन के कारण गिर गया है और इस सुरंग में 41 मजदूर फंस गए हैं। सुरंग में फंसे मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि सभी मजदूर सुरक्षित हैं और उनको बचाने के लिए बचाव कार्य जारी है।
मुख्य श्रम आयुक्त (सेंट्रल)ने डिप्टी मुख्य श्रम आयुक्त, देहरादून को 20 नवंबर को एक और पत्र भेजा गया जिसमें उन्हें निर्देश दिया गया कि 21 नवंबर को घटना स्थल पर जाएं और निम्नलिखित निर्देशों को सुनिश्चित करवाएं:
- सुरंग में फंसे होने की अवधि तक मजदूरों को नियमित वेतन के अतिरिक्त नियोक्ता द्वारा ओवर टाइम का भुगतान सुनिश्चित हो।
- यह सुनिश्चित हो कि अगर कोई वेतन का भुगतान लंबित है तो उसे जारी किया जाए और उसका एक अंश नियोक्ता की सहमति से मजदूर के परिजनों को भेज दिया जाए।
- यदि जरूरी हो तो मजदूरों को एक या दो महीने का वेतन नियोक्ता द्वारा दिलवाया जाए।
- यदि इस घटना के कारण इस परियोजना से जुड़े अन्य मजदूरों ने काम स्थगित कर रखा हो तो उसे भी कानूनी तरीके से उसके अधिकार को नियोक्ता से सुरक्षित किया जाए।
- क्षेत्रीय प्रमुख द्वारा इस क्षेत्र में निर्माण में जुड़े सभी नियोक्ता को सुरक्षा उपकरणों के उपयोग को सुनिश्चित करने का निर्देश दिए जाए और जोखिम भरे क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों की अतिरिक्त निगरानी की जाए।
- क्या कार्रवाई की गई और इस मामले में क्या प्रगति हुई है यह रिपोर्ट अतिशीघ्र मुख्य श्रम आयुक्त (सेंट्रल) को भेज दी जाए।
उपरोक्त निर्देशों के साथ एक पत्र क्षेत्रीय श्रम आयुक्त की ओर से श्रम मंत्रालय को भी भेजा गया। 12 नवंबर से लेकर 24 नवंबर के बीच श्रम एवं रोजगार मंत्रालय और मुख्य श्रम आयुक्त (सेंट्रल) तथा डिप्टी मुख्य श्रम आयुक्त, देहरादून के बीच दर्जनों मेल, फोन और ह्वाट्स एप के जरिए बातचीत हुई। इस तमाम बातचीत की एक कॉपी ‘इंडिया लीगल’ के पास उपलब्ध है। 12 नवंबर को जिस समय हादसा हुआ और मजदूर सुरंग में फंसे उस समय उनमें से 6 मजदूरों को छोड़कर कोई भी मजदूर कर्मचारी भविष्य निधि का सदस्य नहीं था।
श्रम मंत्रालय की सचिव आरती आहूजा की ओर से 8 दिसंबर, 2023 को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सचिव अनुराग जैन को भेजे गए पत्र में इस बात का जिक्र किया गया है। ऐसा ही एक पत्र 8 दिसंबर, 2023 को ही आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के सचिव मनोज जोशी को भी भेजा गया है। पत्र में साल 2015 के कैबिनेट सचिव के D.O. No. 391/1/2/2015-CA.V आदेश का भी जिक्र किया गया है। जिसके माध्यम से सभी मंत्रालय/विभाग, पीएसयू और अन्य संस्थाओं को मुख्य नियोक्ता बताते हुए ठेका/अनुबंध आधारित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं के लिए जिम्मेदार बताया गया है। इन प्रावधानों में इस बात का भी जिक्र है कि अगर ठेकेदार अनुबंध या ठेके आधारित मजदूरों को वेतन नहीं दे पाते हैं तो इसकी जिम्मेदारी मुख्य नियोक्ता (मंत्रालय/विभाग, पीएसयू और अन्य संबध संस्थाएं) की होगी।
हैरान कर देने वाली सच्चाई
मालूम हो कि मजदूरों के सुरंग में फंसे होने के दौरान 15 नवंबर से 23 नवंबर के बीच 26 मजदूरों को कर्मचारी भविष्य निधि का लाभार्थी बनाया गया। यह सब जल्दबाजी में किया गया। वह सिर्फ इसलिए कि आरोप-प्रत्यारोप से बचा जा सके। यह स्पष्ट नहीं है कि ऊपर बताई गई बड़ी खामियों के लिए जिम्मेदार मंत्रालय या विभाग के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है या नहीं।
बता दें कि 15000 रुपये से कम के मासिक वेतन वाले कर्मचारियों को EPF&MP Act, 1952 और Contract Labour Regulation and Abolition Act 1970 के तहत कर्मचारी भविष्य निधि की सभी सुविधाएं दिए जाने का प्रावधान है। अब सोचने वाली बात ये है कि बिना इसे सुनिश्चित किए मंत्रालय ने किसी भी कंपनी को काम करने की अनुमति कैसे दे दी?
साल 2015 में कैबिनेट सचिव के दिए गए आदेश, क्रमांक संख्या D.O. No. 391/1/2/2015-CA.V, का उल्लंघन मंत्रालय/विभाग, पीएसयू और अन्य संबध संस्थाएं करती रहीं और मजदूरों की जान जाती रही। जबकि प्रशासनिक तंत्र के भीतर हर कोई घटनाक्रम से अवगत है। अब देखना होगा कि ऐसे मामलों को लेकर क्या कार्रवाई की जाती है।