Environment News: कुमाऊं का नाम आते ही आंखों के आगे हिमालय पर्वत की सुंदर चोटियां, हरीभरी वादियां और झील दिखने लगती है।इस पूरे क्षेत्र को कुदरत ने बहुत से उपहार दिए हैं। इनमें जड़ी-बूटियों से लेकर चीड़, देवदार के वृक्ष और फल आदि हैं। प्रकृति के इन अमूल्य उपहारों के बीच एक और नाम आता है मालू के पत्तों का। नाम भले ही अटपटा लगेगा, लेकिन ये महज पत्ता ही नहीं बल्कि औषधि से लेकर मिठाई तक में दैनिक इस्तेमाल में आने वाली चीज है। आज पूरे कुमाऊं मंडल में चलने वाले कारोबार में मालू के पत्ते की बहुत डिमांड है। हो सकता है कि शायद आपने भी कभी इसका इस्तेमाल किया हो।

Environment News: लचीले और मजबूत होते हैं इसके पत्ते
वैज्ञानिकों के अनुसार मालू दरअसल एक गर्म जलवायु का पौधा होता है, जिसकी बहुत बड़ी बेलें होती हैं। दो हिस्सों में बंटा इसका पत्ता हथेली के आकार से भी बड़ा होता है।सुनकर आश्चर्य होगा कि कई बार मध्यम आकार की थाली के बराबार भी हो जाता है।
यहां लगने वाले मेलों यानी कौतिकों में इसके पत्तों का इस्तेमाल मिठाई पैक करने, भोजन करने के पत्तल बनाने से लेकर पूजा-पाठ आदि में किया जाता है।इसके पत्तों की खासियत होती है इसकी मजबूती। इसके मजबूत लचीले पत्तों से बहुत अच्छी गुणवत्ता के दोने बनते हैं। खुरदरे स्पर्श वाला यह पत्ता आसानी से सड़ता नहीं इसलिए इस्तेमाल करने में भी आसान होता है।
Environment News: गर्मी के मौसम में फलता है इसका पौधा
मालू का पौधा गर्मी के आते ही तेजी के साथ फलने लगता है। इसमें सफेद फूल आने लगते हैं और कुछ महीनों बाद बड़ी-बड़ी फलियां इसकी बेल में लटकी नजर आती हैं। पहाड़ी बच्चों को आप अक्सर इन ठोस भूरी फलियों को पकड़कर खेला करते हैं। कुमाऊं में भोजन की पैकिंग एलुमिनियम फॉइल की जगह मालू के पत्तों में की जाती है। जोकि एलुमिनियम फॉइल और पॉलीथिन का बेहतर विकल्प होने के साथ इको फ्रेंडली भी होता है।
Environment News: एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर है मालू
मालू के पत्तों से दोने और पत्तलों के अलावा इसकी फलियों के अंदर से निकाले गए बीजों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीजों को यहां के लोग आग में भूनकर चाव से खाते हैं। क्योंकि इसमें एंटी बैक्टीरियल गुणों का भंडार होता है। जो पूरे शरीर के लिए रामबाण औषधी होता है।
प्राचीन काल में जब पहाड़ों में मेडिकल साइंस का विस्तार नहीं था। घर में किसी को बुखार और पेट खराब होने पर इसके बीजों को खिलाया जाता था।इसके अंदर फलेवोनॉइड, बिटूलिनिक एसिड और गैलिक एसिड भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जोकि एंटी बैक्टीरियल माना जाता है। इसके अलावा लिपिड, प्रोटीन और फाइबर भी खूब होता है।
Environment News: अल्मोड़ा की सुप्रसिद्ध मिठाई सिंगौड़ी मालू के पत्तों पर की जाती है पैक
अगर आप कुमाऊं के अल्मोड़ा क्षेत्र में जाएं तो पाएंगे कि क्या अधिकतर मिठाईयों की दुकानों में मालू के पत्तों का ढेर लगा रहता है। दरअसल यहां की प्रसिद्ध सिंगौड़ी मिठाई इसी में आइसक्रीम के कोन की तरह लपेटी जाती है।इससे मिठाई का स्वाद और भी जबरदस्त हो जाता है। जो हमारी सेहत को भी नुकसान नहीं पहुंचाता है।
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