Shyam Benegal Films: श्याम बेनेगल का निधन भारतीय सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति है। सोमवार (23 दिसंबर 2024) को 90 वर्ष की आयु में उनका निधन मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल में हुआ। जानकारी के मुताबिक वे वहां क्रोनिक किडनी रोग का इलाज करा रहे थे। उनके निधन से जहां एक ओर सिनेमा जगत में शोक की लहर है, वहीं उनके काम , उनकी फिल्मों की प्रशंसा दुनियाभर में हो रही है। उनकी फिल्मों ने सिनेमा की दुनिया में नए प्रयोग किए और दर्शकों को गहरे विचार करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतीय सिनेमा को ऐसी-ऐसी नायाब रचनाएं दी हैं कि उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।
दरअसल, श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा के उन महान निर्देशकों में से एक माना जाता है, जिन्होंने अपनी फिल्मों से समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया। उनकी फिल्में न केवल मनोरंजन का साधन रही हैं, बल्कि समाज में हो रही समस्याओं, वर्ग संघर्ष और मानवीय भावनाओं को भी प्रमुखता से प्रस्तुत करती हैं। बेनेगल की फिल्में भारतीय सिनेमा में एक अलग पहचान रखती हैं। उनके निर्देशन की खासियत यह है कि वह किरदारों को यथार्थ से जोड़ते हैं। आइए, उनकी प्रमुख फिल्मों की सूची और उनकी योगदान पर एक नजर डालते हैं।
श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित प्रमुख फिल्में
अंकुर (1974)
यह श्याम बेनेगल की पहली फीचर फिल्म थी। एक युवा विवाहित महिला और उसके नौकर के बीच के संबंधों की कहानी इस फिल्म ने सामाजिक संरचना को तोड़ने का काम किया।
निशांत (1975)
गांव के एक स्कूल मास्टर की कहानी, जो अपने गांव में सामंतवाद और अत्याचार के खिलाफ लड़ता है।
मंथन (1976)
यह फिल्म भारत के दुग्ध क्रांति पर आधारित है। इसे 500,000 किसानों द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
भूमिका (1977)
एक महिला के संघर्षों की कहानी, जिसने सिनेमा जगत में अपनी पहचान बनाई। स्मिता पाटिल के शानदार प्रदर्शन ने इसे और भी खास बनाया।
जुनून (1978)
1857 के स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि पर आधारित इस फिल्म में भारतीय और अंग्रेजी समाज के संघर्ष को दर्शाया गया है। इस फिल्म के किए श्याम बेनेगल को फिल्मफेयर भी मिला था। फिल्म का निर्माण शशि कपूर ने किया और निर्देशन श्याम बेनेगल ने किया। यह फ़िल्म रस्किन बॉन्ड के काल्पनिक उपन्यास, ए फ़्लाइट ऑफ़ पिजन्स पर आधारित है
कलयुग (1981)
यह महाभारत पर आधारित एक आधुनिक कहानी थी, जो व्यापारिक परिवारों के बीच संघर्ष पर केंद्रित थी।
त्रिकाल (1985)
यह गोवा के स्वतंत्रता आंदोलन के समय की कहानी है।
सूरज का सातवां घोड़ा (1992)
उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में मानव मन के विभिन्न पहलुओं को दिखाया गया है।
ज़ुबैदा (2001)
यह एक महिला की कहानी है, जो समाज की बाधाओं के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करती है।
वेलकम टू सज्जनपुर (2008)
यह एक हल्की-फुल्की फिल्म है, जो गांव की समस्याओं और लोगों के सपनों को दर्शाती है।
समर (1999)
यह फिल्म जातिवाद और सामाजिक असमानता पर आधारित है।
मुजीब: एक राष्ट्र का निर्माण (2023)
2023 में रिलीज़ होने वाली एक महाकाव्य जीवनी पर आधारित फिल्म है , जो बांग्लादेश के संस्थापक पिता और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान के जीवन पर आधारित है।। बांग्लादेश और भारत के बीच सह-निर्माण , फिल्म का निर्देशन श्याम बेनेगल ने किया था औरइसमें मुख्य भूमिका में आरिफिन शुवो थे। यह फिल्म श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित आखिरी मूवी है।
श्याम बेनेगल का सिनेमा और समाज पर प्रभाव
श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्मों के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया। उनकी फिल्मों में प्रगतिशील विचारधारा और यथार्थवाद देखने को मिलता है। उन्होंने समानता, महिला सशक्तिकरण, जातिवाद और सामाजिक मुद्दों पर अपनी फिल्मों के जरिए सवाल उठाए।
श्याम बेनेगल के अवॉर्ड्स और सम्मान
श्याम बेनेगल को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें अठारह राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, एक ‘फिल्मफेयर’ पुरस्कार और एक नंदी पुरस्कार शामिल हैं। 2005 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1976 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्म श्री से सम्मानित किया गया था, और 1991 में, उन्हें उनके योगदान के लिए तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे राष्ट्रीय सम्मान भी मिले हैं।
श्याम बेनेगल की फिल्में आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उनके समय में थीं। उनके सिनेमा ने भारतीय फिल्म उद्योग को एक नई दिशा दी है। उनकी फिल्में आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। अगर आप सिनेमा के असली प्रेमी हैं, तो श्याम बेनेगल की ये फिल्में जरूर देखें। यह केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को समझने और बदलने का माध्यम भी हैं।