Remembering Satish Kaushik: करोल बाग का वो लड़का जिसकी जेब में थे महज 800 रुपये, सपनों की उड़ान भरने निकला था ‘मायानगरी’

बॉलीवुड में सबसे पहला काम जो उन्होंने किया वह था 'मासूम' (1983)। सेट पर मीठी-मीठी बातें करना, सेट पर फिल्म बनाने के बारे में बहुत कुछ सीखना। यह उनकी दिनचर्या में शामिल रही है।

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Remembering Satish Kaushik
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Remembering Satish Kaushik: हमारा बाप नॉर्थ इंडियन, हमारी मां साउथ इंडियन,इसलिए हम पूरा इंडियन। साजन चले ससुराल, 1996 और ‘ऐ टमाटर के आखिरी दाने, ऐ अमावस के चमकते चांद’। दीवाना मस्ताना, 1997। डेविड धवन की लोकप्रिय फिल्मों के ये दोनों डॉयलोग सतीश कौशिक ने दिए थे। गोविंदा से लेकर कादर खान, शक्ति कपूर, सतीश शाह, जॉनी लीवर के साथ सतीश कौशिक ने शानदार काम किए। धवन फिल्मों का लंबे समय तक हिस्सा रहे कौशिक को कॉमिक्स के किसी भी बड़े रोस्टर में आसानी से डाला जा सकता था। कौशिक ने अपने अभिनय के साथ-साथ संवाद लेखन से फिल्मों को एक अलग स्तर तक पहुंचाया। होली के एक दिन बाद 66 साल की उम्र में कौशीक की दिल का दौरा पड़ने से गुरुग्राम में निधन हो गया। सतीश कौशिक अपने 35 साल के करियर में करीब 100 फिल्में कीं।

थिएटर के रास्ते NSD और FTII पहुंचे थे Satish Kaushik

दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज के छात्र रहे सतीश कौशिक शुरुआत में ‘द प्लेयर्स’ के साथ थिएटर ग्रुप में शामिल हुए। इसी रास्ते अभिनेता पहले NSD और भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII) पहुंच गए। उनका सपना अभिनेता बनने का था। लेकिन ‘करोल बाग का वह लड़का जो अपनी जेब में 800 रुपये लेकर माया नगरी आया था’और भी बहुत कुछ बन गया। उन्होंने अपने करियर में संवाद लेखक, निर्देशक, निर्माता, हरफनमौला मनोरंजनकर्ता और शानदार अभिनेता के रूप में दर्शकों के दिलों में राज किया। दर्शकों को खूब गुदगुदाया।

Satish Kaushik
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‘मासूम’ से करियर की शुरुआत

बॉलीवुड में सबसे पहला काम जो उन्होंने किया वह था ‘मासूम’ (1983)। सेट पर मीठी-मीठी बातें करना, सेट पर फिल्म बनाने के बारे में बहुत कुछ सीखना। यह उनकी दिनचर्या में शामिल रही है। वह अनिल कपूर-श्रीदेवी ब्लॉकबस्टर ‘मिस्टर इंडिया’ (1987) में खुद कैलेंडर की भूमिका लिखी। वह कॉमिक्स की उस जेनरेशन का हिस्सा थे जिसने चीजों को बेहतर बनाया, जिसकी स्क्रीन पर उपस्थिति ने रोमांच पैदा की।

पिछले कुछ वर्षों में, वेब-सीरीज़ में कौशिक को आखिरकार वे भूमिकाएं मिल रही थीं जिनके वे हकदार थे। सवाल अब दुख की बात है। लेकिन हम मिलनसार, दिलकश, टिमटिमाती आंखों वाले सतीश कौशिक को हमेशा याद रखेंगे, जिन्होंने इतने सालों में हमें कई बार हंसाया।

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