2014 के बाद से, मोदी सरकार ने 25 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है। यह जवाब सूरत स्थित सूचना का अधिकार (आरटीआई) कार्यकर्ता को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने दिया है। जवाब में कहा गया है कि 10.41 लाख करोड़ रुपये का कर्ज सार्वजनिक बैंकों ने माफ किया है और कुछ कमर्शियल बैंकों ने अतिरिक्त 14.53 लाख करोड़ रुपये माफ किए हैं। कुल मिलाकर 24.95 लाख करोड़ रुपये माफ किए गए हैं। हालांकि सरकार का दावा है कि बैंकों ने पिछले 9 वर्षों में 14.56 लाख करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले हैं।
लोन राइट ऑफ करना क्या होता है?
लोन राइट-ऑफ तब होता है जब कर्ज को बैंक द्वारा एसेट के रूप में नहीं गिना जाता है। आसान शब्दों में यह कर्ज की वह राशि है जिसे बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। जिससे उसकी बैलेंस शीट सुधर जाती है और उसके खातों में एनपीए कम हो जाता है।
एनपीए का मतलब है नॉन परफॉर्मिंग एसेट। भारतीय रिज़र्व बैंक के मुताबिक एनपीए वह कर्ज है जो 90 दिनों से अधिक समय से बकाया है। आरबीआई ने 2007 के एक सर्कुलर फॉर्म में कहा था, “कोई एसेट तब एनपीए हो जाता जब वह बैंक के लिए आय का स्रोत नहीं रह जाता है।”
बट्टे खाते में डाले गए कर्ज की भरपाई कैसे की जाती है?
राइट ऑफ में चूंकि लोन अकाउंट बंद नहीं किया जाता है, इसलिए बैंक द्वारा राशि की वसूली का अधिकार माफ नहीं किया जाता है। बैंक कर्ज की राशि वसूलने का प्रयास कर सकता है। राइट-ऑफ में, बैंक पुनर्भुगतान होने तक डिफॉल्टर द्वारा गिरवी रखी गई चीज को जब्त कर सकता है या कर्ज की वसूली के लिए गिरवी रखी चीज की नीलामी भी कर सकता है।
शेष की भरपाई बैंक को अपने लाभ या पूंजी से करनी पड़ती है। यहां, बैंक बट्टे खाते में डाली गए कर्ज की भरपाई के लिए अपने ग्राहकों के पैसे का इस्तेमाल भी कर सकता है।
क्यों बैंकों के लिए जरूरी है राइट ऑफ?
राइट ऑफ से बैंकों को राहत मिलती है क्योंकि राइट ऑफ के बाद वह अपना कामकाज करने के लिए फिर से धनराशि पाने की स्थिति में आ जाते हैं। दरअसल बहुत लंबे समय तक बहुत अधिक धनराशि रुके रहने से बैंक की कर्ज देने की क्षमता कम हो जाती है।
अर्थव्यवस्था पर असर
अर्थव्यवस्था के लिहाज से देखा जाए तो एक बार बैंकों को मजबूत बना दिया जाए तो वे अधिक आर्थिक गतिविधियों को चलाने में सहयोगी होंगे और इस तरह राइट-ऑफ से अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। वहीं डिफॉल्टर के लिए, कानूनी कार्रवाई से उस पर दबाव पड़ेगा और उसकी वित्तीय गतिविधियां कम हो जाएंगी।
नुकसान
अगर आम जनता यह धारणा बना ले कि ऋण लेना और न चुकाना लाभदायक है तो इससे बड़ी समस्या हो सकती है। इसके अलावा सार्वजनिक धन का इस्तेमाल कर्ज माफी के लिए करना भी चिंताजनक है।
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि जब सरकार किसानों की कर्ज माफी योजना की घोषणा करती है, तो बैंक ऋण माफ कर सकते हैं और यह बट्टे खाते में डालने के बराबर होगा। लेकिन यहां, सरकार देनदार की ओर से बैंक को ऋण का भुगतान करती है। यहां डिफॉल्टर का कोई मामला नहीं रहता।