इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला और उसके मासूम बच्चे की दहेज के लिए हत्या के मामले में ससुर देवर को दोषी मानते हुए उनको सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। कोर्ट का मानना कि इस विशेष प्रकृति के मामले में जहां अभियुक्त उसी घर में रह रहे थे जहां एक साथ दो संदिग्ध मौतें हुईं हैं। मौत का कारण न बता पाना अभियुक्तों को निर्दोष साबित नहीं करता है। हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ दाखिल अपील खारिज करते हुए सजा को बहाल रखा है।


यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने सुनाया।

जनवरी 1996 में विद्या और उसके ढाई वर्ष के पुत्र राजकुमार की संदिग्ध परिस्थितियों मेें मृत्यु हो गई। ससुराल वालों ने बिना पुलिस और मायके वालों को सूचना दिए दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया।

पुलिस ने इस मामले में दहेज हत्या, हत्या और साक्ष्य मिटाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। विचारण के दौरान शिकायतकर्ता ने पहले तो अभियोजन का समर्थन किया मगर बाद में खुद अपने बयान से पलट गया। इसके बावजूद सेशन कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अभियुक्तगण उसी मकान में रहते थे जिसमें विद्या और उसके बच्चे की संदिग्ध हालत में मौत हुई। इसके बावजूद वह यह बता पाने में नाकाम हैं कि एक साथ दो मौतें कैसे हुई यह बात विश्वसनीय नहीं है। कोर्ट ने दोनों की अपीलें खारिज कर दी हैं।

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