यूपी में योगी सरकार बनने के बाद अब सबकी नजरे उनके बड़े एजेंडे पर टिकी है। मंदिर-मस्जिद विवाद के मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस खेहर ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी के याचिका पर सलाह दी है कि “राम मंदिर का मामला धर्म और आस्था के साथ एक संवेदनशील मसला है जिसपर दोनों पक्ष बैठकर वार्ता करें।“ अगर जरूरत पड़ती है तो सुप्रीम कोर्ट के जज मध्यस्थता के लिए तैयार है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दोनों पक्ष आगे कैसे बढ़ेगे यह एक सवाल है?
SC द्वारा इस फैसले का सियासी पार्टियों ने स्वागत किया है। वहीं सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि “राम जहां पैदा हुए है, मंदिर वहीं बनेगा! जबकि मस्जिद कहीं भी बन सकता है। नमाज सड़क पर भी पढ़ी जा सकती है इसलिए मुस्लिम समुदाय इस सकारात्मक प्रस्ताव पर विचार करे।“ 2010 में लखनऊ हाईकोर्ट ने राम मुद्दे को लेकर फैसला दिया था कि जिस स्थान राम की मूर्ति स्थापित थी, मूर्ति वहीं बनी रहेगी और बाकि जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाएगा।
इसी खास पेशकस को लेकर एपीएन के स्टूडियों में आज ”योगी सरकार के बनते गरमाया राम मंदिर मुद्दा, SC ने दी- कोर्ट के बाहर विवाद सुलझाने की सलाह” के इस मुद्दे पर चर्चा की गई। जिसमें सुदेश वर्मा (राष्ट्रीय प्रवक्ता, बीजेपी), जस्टिस आर बी मिश्रा (पूर्व कार्यवाहक मुख्य जज हि.प्र.), आचार्य प्रमोद कृष्णम (श्री काल्कि पीठाधीश्वर), जस्टिस के श्रीधर राव (पूर्व कार्यवाहक मुख्य जज, गुवाहाटी), खालिद रशीद फरंगी महली (मुस्लिम धर्मगुरु), जगदेव सिंह यादव (प्रवक्ता, सपा), डॉ हिलाल नकवी (प्रवक्ता, कांग्रेस) और गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक, APN) जैसे विशेषज्ञों ने मत को रखा। शो का संचालन एंकर अक्षय ने किया।
आचार्य प्रमोद कृष्णम का मत था कि जब दोनों पक्ष मंदिर-मस्जिद पर अड़े रहे तभी यह मुद्दा अदालतों में गया। SC ने यहां एक बुजुर्ग की भाती किसी के भावनाओं और अधिकारों को न दबाए की भूमिका को निभाया है। मैं अपने हिन्दू और मुस्लमान भाइयों से कहना चाहता हूँ कि एक बार सुप्रीम कोर्ट के इस इशारे पर बैठे और बातचीत करे।
फरंगी महली का मत है कि यह इस मुल्क की दो बड़ी कौमों के मज़हबी जज्बात और आस्था का सवाल है,हिंदुस्तान का कोई भी मुस्लमान यह नहीं चाहता की राम मंदिर न बने लेकिन सरकार के वजह से यह मामला अब तक हल नहीं हो पाया है।
जस्टिस के श्रीधर राव का मत है कि कोर्ट ने भारत के प्रत्येक नागरिक को एक सुनहरा मौका दिया है विभिन्नता में एकता का परिचय देने का। हो सके तो दोनों पक्ष के लोग इसका लाभ उठाकर आपसी विचार करे।
सुदेश वर्मा का मत है कि रिज़नेबल और लॉजिकल होकर लोग इस मसले का हल निकाल सकते है। हम दो मतों पर नहीं चलेगे। यह हमारे लिए राजनितिक प्रश्न नहीं आस्था का विषय है, अगर बातचीत के जरिए हल निकलता है तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
जगदेव सिंह यादव का मत है कि राम मुद्दे पर राजनीतिकरण पहले बहुत हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट का आया आदेश बेहद स्वागत योग और बेहतर कदम है। साथ ही यह एक स्वभावपूर्ण वातावरण के निर्माण और सांप्रदाईक सदभाव की ओर पहल है।
डॉ हिलाल नकवी का मत है कि कोर्ट का फैसला आना ही था। इस मुद्दे पर सिहासत बढ़ गई है ओर सदैव लोकसभा और विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा इसको चुनावी मुद्दा बनाकर इसका इस्तेमाल करती थी।
गोविंद पंत राजू का मत था कि SC के पहल में राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं है। अयोध्या विवाद ने देश को बड़ी कड़वे घाव दिए है। लेकिन इसमें आपसी प्रेम का प्रतिक का सबसे बड़ा उदाहरण यह रहा कि इस विवाद को लेकर लड़ने वाले हासिम अंसारी और रामचन्द्र परमहंस एक साथ रहते, बोलते, खाना खाते और कोर्ट के सुनवाई के लिए रथ पर सवार होकर कोर्ट जाते थे।