प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर बार-बार ये आरोप लगते रहे हैं कि वो छोटे-छोटे मुद्दों पर तो खूब बोलते हैं लेकिन गौहत्या और गौरक्षकों के मसले पर चुप्पी साधे हुए है। लेकिन गुजरात में आज जब प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर बोलना शुरु किया तो खूब बोले। अपने संबोधन के दौरान वो इस मसले पर भावूक भी हो गये। उन्होने कहा कि गौरक्षा के नाम पर किसी इंसान की हत्या कर देना बहुत ही गलत है ऐसा नही होना चाहिए। अगर कोई गलती करता है को उसके लिए कानून है वो उसे सजा देगा आपको उसे मारने का अधिकार नहीं है।

गुरुवार 29 जून को एपीएन न्यूज के खास कार्यक्रम मुद्दा में दो अहम विषयों पर चर्चा हुई। इसके पहले हिस्से में प्रधानमंत्री द्वारा गौरक्षा पर दिये गये बयान पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन), अनिला सिंह (प्रवक्ता बीजेपी), सुरेन्द्र राजपूत (प्रवक्ता कांग्रेस) मनोज यादव ( नेता सपा) शामिल थे।

अनिला सिंह ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री जी ने शुरु से ही ये कहा है कि गौरक्षा के नाम पर जो गुंडागर्दी करते हैं उसको किसी भी प्रकार से सरकारी सहायता नहीं मिलने वाली है। आप गुंडागर्दी करें, आप गैरकानूनी काम करें और कह दें कि गौरक्षा कर रहे हैं, कानून की रक्षा के लिए एजेंसी हैं वो अपना काम करेंगी। मोदी जी ने जो बयान दिया है गुजरात में उसको सकारात्मक रुप से लेना चाहिए।

सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि प्रधानमंत्री का आज का बयान स्वागत योग्य है इसमें कही कोई दो राय नहीं हैं। सत्ताधारी दल के पास बयान के अलावा बाकि सारी चीजें भी होती है, वो सब लोग इस तरीके का काम करें कि उनका काम बोले उनके बयान के मुकाबले। प्रधानमंत्री जी बेहतर होता अगर वो इन सब बातों के अलावा एक कड़ा कदम उठाते इन सारे असामाजिक तत्वों के खिलाफ चाहे वो राजस्थान की घटना हो या यूपी की या झारखंड की हो। 15 साल के लड़के जुनैद को एक शराबी और भीड़ के द्वारा सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्यों कि वो कह रहे थे कि हमें शक था कि ये बीफ खाता हैं। जिस तरह की भाषाओं का प्रयोग हो रहा है देश में ये कतई उचित नहीं हैं।

मनोज यादव ने कहा कि भारत और भारत के ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकार है और ज्यादातर घटनाएं बीजेपी शासित राज्यों में घट रही हैं। अब जब इनको जवाब देना पड़ रहा है तब दिक्कत हो रही है। इस पर राजनीत मत करिए देश के प्रधानमंत्री ने आज दूसरी बार ये बात कही है कि गौरक्षकों के लिए ये ठीक नहीं है। क्या देश के प्रधानमंत्री छोटे से मुद्दे पर दो-दो बार बयान दें और उन्ही की विचारधारा को मानने वाले लोग उसकी अनदेखी करें मैं क्या समझूं। क्या देश के प्रधानमंत्री के बयान का कोई मतलब नहीं है।

गोविंद पंत राजू ने कहा कि जो घटनाएं हुई है निश्चित तौर पर वो बहुत दुखद घटनाएं हैं। जिन लोगों ने इस तरह की घटनाएं की है उसके पीछे कही ना कही सत्ताधारी दल के होने का जुड़े होने एहसास भी उत्प्रेरक का कार्य करता है। इस तरह का अपराध करने वालों के मन में एक भाव होता है कि कही ना कही सत्ता सत्ताधारी दल का गाय के प्रति भाव इस तरह का है। अगर हम इस तरह का कदम उठाते हैं तो पुलिस या जांच करने वाला दल कही ना कही उसका रवैया उस तरह का आक्रामक नहीं होगा। लेकिन आज प्रधानमंत्री ने जिस तरह का बयान दिया है। गौ हत्या और आदमी की हत्या के बीच में जो अपना प्रतिरोध दिखाया है और उनके बयान से इस तरह प्रतीत हो रहा था कि इस तरह की हरकतों से वो बहुत अंदर तक दुखी हैं। जो इस तरह के आरोप लग रहे थे कि छोटे-छोटे मुद्दों पर पीएम ट्वीट करते है उन मामलों पर गौहत्या जैसे मामलों पर या गाय के नाम पर लोगों की हत्या कर देने के मामले पर प्रधानमंत्री चुप क्यों है वो नहीं बोल रहे हैं तो एक तरह से उन्होने उसका भी जवाब दिया है।

 जीएसटी पर तकरार बरकरार

जीएसटी को लागू करने में मोदी सरकार के मेगा शो को थोड़ा झटका लगा है। कांग्रेस ने कहा है कि वह 20 जून यानी कल रात संसद भवन में होने वाले समारोह में शामिल नहीं होगी। मोदी सरकार ने इस समारोह में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर हाथ भी बढ़ाया था लेकिन सफलता नहीं मिली। ममता बनर्जी पहले ही ऐलान कर चुकी हैं कि वह समारोह में शामिल नहीं होंगी। विपक्ष का आरोप है कि सरकार नोटबंदी की तरह जरूरी तैयारी के बगैर जीएसटी लागू करने जा रही है। वहीं बीजेपी का सोचना है कि विपक्ष मोदी सरकार की कामयाबियों को स्वीकार करने से बचने की कोशिश कर रही है। एक जुलाई से जीएसटी लागू होने के एक दिन पहले देश के व्यापारी संगठनों ने भारत बंद करने का फैसला लिया है। हालांकि सरकार कई जगहों पर स्वीकार भी कर रही है कि कुछ परेशानियां होंगी जिसके लिए हम तैयार है।

इसके दूसरे हिस्से में जीएसटी के मुद्दे पर चर्चा हुई। इस अहम मुद्दे पर चर्चा के लिए भी विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे।इन लोगों में गोविंद पंत राजू, अनिला सिंह, मनोज यादव, सुरेन्द्र राजपूत, विपीनगर्ग (टैक्स एक्सपर्ट) शामिल थे।

अनिला सिंह ने कहा कि ये देश की आर्थिक व्यवस्था की बेहतरी के लिए हैं और पहले भी लगभग 140 देशों में जीएसटी लागू किया गया है और बहुत ही सफल तरीके से ये चल रहा है। जल्दबाजी में कुछ नहीं किया गया है, बहुत दिन इस पर काम चला है आप ये नही कह सकते कि बहुत जल्दबाजी में कुछ हो रहा है। कुछ उलझन जरुर है इसलिए क्यों कि अभी लोगों के दिमाग में साफ नहीं है ये किस प्रकार से लागू होगा। जैसे ही सब कुछ साफ होगा तो वो जो विरोध कर रहे हैं उनका विरोध बंद हो जायेगा।

सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि हमें जीएसटी का विरोधी ना समझा जाये हम जीएसटी के समर्थन में हैं। जब देश तैयार नही है पूरी तरीके से जब हमारा पूरा सिस्टम तैयार नहीं है तो समारोह किस बात का। जब आप पूरे देश में स्वयं ये बात कर रहे हैं कि पूरे देश में जो परेशानियां आयेंगी हम उसको ठीक करेंगे। लेकिन जब पहले से ही 34 प्रतिशत देश डिजीटल है और बाकि 68 प्रतिशत जो बाकि है उसको डिजीटल करें। व्यापारियों की और उपभोक्ताओं की जो समस्या है उसको क्यों नहीं हम दूर करते हैं। व्यापारी को हम हमेशा चोर समझने की गलती क्यों करते हैं व्यापारी हमेशा कर्ज देता है कर्ज लेता तो नही है।

विपीन गर्ग ने कहा कि जीएसटी का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा है जो अब आने को तैयार है इसमें अब ये सोचने का समय तो चला गया है कि ये होना चाहिए या नही होना चाहिए। अगर सरकार जिम्मेदार रहती है तो उन चीजों के लिए जैसे कि दिन प्रतिदिन अगर दिक्कत आ रही है वेबसाइट पर समस्या आ रही है सरकार जिम्मेदार रहती है कि अगर इसके लिए एडीशनल समय दे देती है।

मनोज यादव ने कहा कि भारत में बीजेपी की सरकार को किसी भी विपक्ष ने जीएसटी लागू करने से नहीं रोका। हर जगह से लगभग वो पास होके एक जुलाई को लागू होने की स्थिति में है। मौजूदा भाजपा की सरकार को ये सोचना पड़ेगा कि विपक्षियों में इनका कोई विरोध नही है और ये अब लागू भी कर देंगे एक जुलाई से लेकिन व्यापारी इसको कैसे स्वीकार करेगा उसको कितनी तकनीकि दिक्कत आने वाली है। अब आप सोचिए देश के लोग जो खाना खाएंगे उस पर भी इन्होने टैक्स कर दिया। बच्चों के न्यूट्रिशियन फूड है उस पर भी इन्होने टैक्स कर दिया।

गोविंद पंत राजू ने कहा कि जब लगभग 6 महीने पहले ये बात हुई थी कि वित्तिय सत्र के आस-पास जीएसटी लागू होगा तो माना जा रहा था कि शायद जुलाई के बजाय नवंबर के आस-पास इसको लागू किया जाये। जुलाई तक शायद सरकार की तैयारियां पूरी नहीं हो पायेगी शायद सरकार लागू ना कर पाये। लेकिन जब ये स्पष्ट हो गया कि सरकार इसको जुलाई में लागू करना चाहती है तो मुझे लगता है कि अब ये मांग करना कि ये जल्दबाजी में किया गया ये आरोप हो सकता है लेकिन सरकार को एक तारीख तो तय करनी ही थी। अगर 4 महीने बाद होता तो बहुत सारे ऐसे सवाल तब भी उठते।

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