Vikram Batra Death Anniversary 2023: कारगिल युद्ध के शूरवीर और परम वीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा की आज पुण्यतिथि है। 7 जुलाई 1999 के दिन उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। दरअसल साल 1999 में हुए कारगिल युद्ध में पॉइंड 5140 हासिल करने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा की 13 जम्मू कश्मीर राइफल्स को पॉइंट 4875 जीतने को कहा गया था।
मुश्कोह घाटी में स्थित पॉइंट 4875 इसलिए अहम था क्योंकि सेना को नेशनल हाईवे 1 को दुश्मनों से पूरी तरह सुरक्षित करना था। इसलिए ये जरूरी था कि इस पॉइंट को अपने कब्जे में लिया जाए। दरअसल पॉइंट पर बैठे दुश्मन हाईवे को सीधा निशाना बनाए हुए थे। यहीं नहीं यहां से भारतीय सेना की मौजूदगी साफ तौर पर देखी जा रही थी।

धीरे-धीरे योजना बनाई गई कि कैसे इस पॉइंट को कब्जे में लिया जाए। 4 जुलाई शाम से दुश्मन की पोजीशन पर बमबारी शुरू कर दी गई। इस बीच रात के समय 2 टुकड़ियों ने चढ़ाई शुरू कर दी। विक्रम बत्रा की तबीयत सही नहीं थी इसलिए उनको आराम करने के लिए कहा गया था। हालांकि उनकी बटालियन ने चढ़ाई शुरू कर दी थी।
5 जुलाई को दिन का उजाला हो चुका था और भारतीय सैनिक अभी भी टारगेट से 50 मीटर दूर थे। फिर क्या था भारत सैनिक और पाकिस्तानी घुसपैठियों के बीच फायरिंग शुरू हो गई। दोपहर तक भारतीय सैनिकों ने पॉइंट 4875 छुड़ा लिया। हालांकि पॉइंट के उत्तरी छोर से अभी भी पाकिस्तानी गोलाबारी कर रहे थे। रात तक पाकिस्तानी गोलीबारी करते रहे।
6 जुलाई की सुबह तक सैनिकों की एक टुकड़ी के पास अस्लहा कम पड़ने लगा। दूसरी टुकड़ी ने उसकी मदद की। गौरतलब है कि पॉइंट 4875 पर जीत तब तक पूरी नहीं हो सकती थी जब तक कि एरिया फ्लैट टॉप अपने कब्जे में नहीं लिया जाता। दोपहर तक भारतीय सैनिकों ने इस पर भी जीत हासिल कर ली। हालांकि पाकिस्तानियों ने तुरंत इसको फिर से हासिल करने की कोशिश की। धीरे धीरे पाकिस्तानी मजबूत होने लगे थे।
कैप्टन विक्रम बत्रा बेस से ये सब देख रहे थे। इसके बाद उन्होंने अपने कमांडिंग ऑफिसर से कहा कि उन्हें भी अपने साथियों के पास जाना है। फ्लैट टॉप अपने हाथ से न निकल जाए इसलिए कैप्टन बत्रा को 25 साथियों के साथ भेजा गया। अंधेरी काली रात को उन्होंने चढ़ाई शुरू की। धुंध के चलते कुछ भी देख पाना और भी मुश्किल हो गया था। जैसे ही भारतीय सैनिकों को ऊपर पता चला कि विक्रम बत्रा आ रहे हैं तो उनमें नया जोश भर गया।
रास्ते में बत्रा ने देखा कि एक पाकिस्तानी मशीन गन का मुंह भारतीय सैनिकों की ओर है। इसके बाद वे मशीन गन के पास पहुंचे और ग्रेनेड फेंक मशीन गन उड़ा दी। 7 जुलाई की सुबह होने तक पाकिस्तानियों की दो और मशीन गन का मुंह बंद कर दिया गया था। हालांकि गोलीबारी जा रही थी और अब दिन का उजाला हो गया था।
अब पाकिस्तानियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सैनिकों को सीधे हमला बोलना था। दुर्गा माता की जय का घोष करते हुए सैनिकों ने हमला बोला। इस बीच बत्रा घायल हो गए। लेकिन उन्होंने 5 पाकिस्तानियों को मार गिराया। इसके अलावा 2 और पाकिस्तानी मारे गए। हालांकि अभी भी एक और मशीन गन थी जो भारतीय सैनिकों के लिए मुसीबत बनी हुई थी। बत्रा ने अकेले हमला बोलते हुए इसे संभाल रहे चार दुश्मनों को ढेर कर दिया।
इस बीच अपने साथियों की जान बचाते हुए बत्रा दुश्मन की गोलियों के सामने आ गए। एक गोली उनके सीने पर और एक सिर पर लगी। इस तरह विक्रम बत्रा ने देश के अपनी कुर्बानी दी।
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