गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की घोषणा की गयी है। अब इस मामले पर राजनीति भी तेज हो गयी है। लेकिन राजनीतिक बयानबाजियों से इतर यहां हम आपको प्रेस के इतिहास के बारे में बताएंगे। गीता प्रेस सनातन धर्म से जुड़े साहित्य का विश्व का सबसे बड़ा प्रकाशक है। गोरखपुर स्थित इस संस्था की स्थापना साल 1923 में जया दयाल गोयनका और घनश्यामदास जालान ने सनातन धर्म के मूल्यों और सिद्धांतों के प्रचार के लिए की थी। हनुमान प्रसाद पोद्दार, भाईजी,ने प्रेस की पत्रिका कल्याण की स्थापना की और आजीवन संपादक रहे। वे शिव नाम से पत्रिका में लेख लिखा करते थे।
गौरतलब है कि साल 1927 तक प्रेस द्वारा 1,600 प्रतियां छापी जाती थीं। वहीं साल 2012 तक ये आंकड़ा 250,000 हो गया था। प्रेस के पास 3,500 पांडुलिपियां हैं और भगवद्गीता की 100 व्याख्याएं हैं। सेठ जया दयाल गोयनका, हनुमान प्रसाद पोद्दार और घनश्यामदास जालान ने 29 अप्रैल 1923 को गीता प्रेस की स्थापना की थी। शुरूआत में 600 रुपये में एक छपाई मशीन खरीदी गई थी। अपनी शुरूआत से अब तक प्रेस ने 140 करोड़ गीता की प्रतियां और 100 करोड़ रामचरितमानस की प्रतियां छापी हैं। वह भी बहुत कम कीमत पर। प्रेस कभी किसी तरह का विज्ञापन भी नहीं छापती है। पिछले साल संस्था ने अपने 100 वर्ष पूरे किए थे।
गांधी शांति पुरस्कार के बारे में…
गांधी शांति पुरस्कार हर साल भारत सरकार द्वारा दिया जाता है। इस पुरस्कार की शुरूआत साल 1995 से हुई थी। महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर ऐसा किया गया था। जिन लोगों ने गांधीवादी सिद्धांतों पर चलकर समाज के लिए योगदान दिया , उन्हें इससे सम्मानित किया जाता है। पुरस्कार के रूप में एक करोड़ रुपये दिये जाते हैं। प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और लोकसभा स्पीकर मिलकर इस पुरस्कार का निर्णय लेते हैं। ऐसा नहीं है कि हर साल ये पुरस्कार दिया जाता है।