Anand Mohan Singh:बिहार सरकार ने राज्य कारागार नियमावली में संशोधन के कुछ दिनों बाद 27 कैदियों की रिहाई की अधिसूचना जारी की है। अब इस मामले पर बीजेपी समेत विपक्ष नीतीश सरकार पर हमलावर है। रिहा होने वालों में पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह भी हैं जिन्हें 1994 में नौकरशाह जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। अपने रिहाई को लेकर आनंद मोहन ने गुजरात सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने इशारों-इशारों में बिलकिस बानों के दोषियों की रिहाई पर लेकर कहा,”गुजरात में भी नीतीश कुमार और आरजेडी के दवाब में कुछ फैसला हुआ है। कुछ लोगों को माला पहनाकर कुछ लोग छोड़े गए हैं।”
आनंद मोहन ने आगे की अपनी राजनीतिक यात्रा को लेकर कहा,”अभी तो मांगलिक कार्यों के लिए निकले हैं और फिर जेल जाना है। लौटकर आएंगे, रिहाई पर जब ठप्पा लग जाएगा, शादी-विवाह(बेटे की शादी) से जब निवृत हो जाएंगे तो फिर लोगों को बुलाएंगे और फिर जो कुछ भी फैसला होगा हम आप लोगों को बताएंगे।”
आनंद मोहन से पूछा गया कि आपका राजनीतिक सफर जिंदा रहेगा? उस पर उन्होंने कहा,”मर तो नहीं गया, जेल में भी रहने के बाद मरा तो नहीं है। मरे हुए लोगों को क्यों लोग पूछेगा?”
गैंगस्टर से राजनेता बनने वाले आनंद मोहन
गौरतलब है कि गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णय्या की कथित रूप से आनंद मोहन सिंह द्वारा उकसाई गई भीड़ ने हत्या कर दी थी। गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन सिंह को साल 2007 में बिहार की एक निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। हालाँकि, पटना उच्च न्यायालय ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया था; उस आदेश को 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था।
इस महीने की शुरुआत में, बिहार सरकार ने उस धारा को जेल नियमों से हटा दिया था, जिसमें ड्यूटी पर एक लोक सेवक की हत्या के दोषी लोगों के लिए जेल की सजा में छूट पर रोक लगाई गई थी।
अपनी अधिसूचना में, राज्य के कानून विभाग ने कहा कि नए नियम उन कैदियों के लिए हैं, जिन्होंने 14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सजा काट ली है।
अधिसूचना में कहा गया है, “14 साल की वास्तविक सजा या 20 साल की सजा काट चुके कैदियों की रिहाई के लिए निर्णय लिया गया।”
नियमों में बदलाव और आनंद मोहन सिंह की रिहाई ने बड़े विवाद को जन्म दे दिया है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने नियमों में बदलाव को “दलित विरोधी” करार दिया है।
मायावती ने ट्विटर पर लिखा, ”बिहार की नीतीश सरकार द्वारा, आन्ध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) महबूबनगर के रहने वाले गरीब दलित समाज से आईएएस बने बेहद ईमानदार जी. कृष्णैया की निर्दयता से की गई हत्या मामले में आनन्द मोहन को नियम बदल कर रिहा करने की तैयारी देश भर में दलित विरोधी निगेटिव कारणों से काफी चर्चाओं में है। आनन्द मोहन बिहार में कई सरकारों की मजबूरी रहे हैं, लेकिन गोपालगंज के तत्कालीन डीएम श्री कृष्णैया की हत्या मामले को लेकर नीतीश सरकार का यह दलित विरोधी व अपराध समर्थक कार्य से देश भर के दलित समाज में काफी रोष है। चाहे कुछ मजबूरी हो किन्तु बिहार सरकार इस पर जरूर पुनर्विचार करे।”
बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी नीतीश कुमार पर निशाना साधा, “क्या सत्ता पर काबिज होने के लिए आपराधिक सिंडिकेट पर निर्भर कोई व्यक्ति विपक्ष के नेता के रूप में भी भारत का चेहरा हो सकता है?”
सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) जदयू नेता राजीव रंजन सिंह ने एक ट्वीट में कहा,” आनंद मोहन जी की रिहाई पर अब भाजपा खुलकर आई है। पहले तो यू पी की अपनी बी टीम से विरोध करवा रही थी। बीजेपी को यह पता होना चाहिए कि श्री नीतीश कुमार जी के सुशासन में आम व्यक्ति और खास व्यक्ति में कोई अंतर नही किया जाता है। श्री आनंद मोहन जी ने पूरी सजा काट ली और जो छूट किसी भी सजायाफ्ता को मिलती है वह छूट उन्हें नहीं मिल पा रही थी क्योंकि खास लोगो के लिए नियम में प्रावधान किया हुआ था। श्री नीतीश कुमार जी ने आम और खास के अंतर को समाप्त किया और एकरूपता लाई तब उनकी रिहाई का रास्ता प्रशस्त हुआ। अब भाजपाइयों के पेट में न जाने दर्द क्यों होने लगा है….! भाजपा का सिद्धांत ही है विरोधियों पर पालतू तोतों को लगाना, अपनों को बचाना और विरोधियों को फंसाना… वहीं श्री नीतीश कुमार जी के सुशासन में न तो किसी को फंसाया जाता है न ही किसी को बचाया जाता है।”
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