बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी कभी खुद सीएम नहीं बनना चाहती थीं। सीएम रहते अक्सर कई मौकों पर राबड़ी देवी को कहते सुना गया था, ”मुसीबत है, साहेब का ऑर्डर है इसलिए ये झंझट उठा रहे हैं। कहां ठेल दिए हमको। ” हालांकि एक आम भारतीय घरेलू महिला की तरह रहने वाली राबड़ी देवी को विधानमंडल और सचिवालय में मुख्यमंत्री का कामकाज संभालना पड़ा। राबड़ी देवी सीएम तो थीं लेकिन ये सर्वविदित था कि पर्दे के पीछे से सब काम लालू यादव कर रहे हैं। लेकिन राबड़ी देवी ने ये सब आखिर क्यों स्वीकार किया? वो भी एक बार नहीं तीन बार। राबड़ी देवी सबसे पहले 25 जुलाई 1997 से 11 फरवरी 1999 तक सीएम रहीं। इसके बाद 9 मार्च 1999 से 3 मार्च 2000 तक दूसरी बार सीएम बनीं। तीसरा कार्यकाल सबसे लंबा रहा जो कि 11 मार्च 2000 से 6 मार्च 2005 तक चला।
दरअसल साल 1996 में चारा घोटाला उजागर हुआ। इसके बाद मई 1997 में सीबीआई ने लालू यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए बिहार के राज्यपाल से मंजूरी मांगी थी। इसके बाद सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया। जिसमें लालू समेत 55 लोगों को आरोपी बनाया गया। इस बीच जहां एक ओर पीएम गुजराल लालू को बचा रहे थे तो वहीं कपिल सिब्बल जैसे वकील अदालत में पक्ष रख रहे थे। लेकिन 24 जुलाई 1997 को इस खेल को पूर्णविराम लग गया। जब पटना हाईकोर्ट ने लालू यादव की याचिका खारिज कर दी। अब गुजराल भी कुछ नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उन पर भी खुद की सरकार को बचाने का दबाव था। गुजराल के अपने सहयोगी लालू का साथ छोड़ने को कह रहे थे। दूसरी ओर सिब्बल भी कुछ नहीं कर सके।
सीबीआई ने भी तुरंत कार्रवाई की। माना जाता है कि इसके पीछे एजेंसी के तत्कालीन संयुक्त निदेशक उपेंद्रनाथ विश्वास थे। विश्वास को जल्द लालू यादव की गिरफ्तारी का वारंट भी मिल गया और वे तुरंत लालू की गिरफ्तारी को अंजाम भी देना चाहते थे। उस समय जैसे ही लालू यादव के परिवार को नेता की गिरफ्तारी के वारंट की जानकारी मिली तो सब घबरा गए। लालू यादव के करीबी अनवर अहमद के मुताबिक,, ”हममें से किसी को नहीं लगता था कि साहेब की गिरफ्तारी हो सकती है। घर में सब परेशान थे। एक मीसा को छोड़, बाकी बच्चे घबरा के रोने लगे थे।”
इस गिरफ्तारी से बचने को जब लालू यादव ने पीएम गुजराल से मदद चाही तो उस समय वे उपलब्ध नहीं हो सके। राज्यपाल किदवई ने भी साफ कह दिया कि लालू यादव अब सीएम बने नहीं रह सकते। पुलिस प्रशासन ने लालू यादव की गिरफ्तारी को लेकर कानून व्यवस्था को पुख्ता कर लिया था। जिससे किसी भी अव्यवस्था से बचा जा सके।
हालांकि लालू यादव के वारंट को लेकर बीजेपी जश्न मना रही थी। बकौल सुशील मोदी, ”मुझे उस शाम लगा कि लालू यादव के लिए सारे रास्ते बंद हो गए हैं।” वहीं दूसरी ओर उपेंद्रनाथ विश्वास बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि वे लालू यादव को गिरफ्तार करवाएं। हालांकि उस रात लालू यादव ने भी एक मास्टरस्ट्रोक खेला। देर रात तक वे सोचते रहे और आखिर में उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी से कहा, ”तुम को कल सीएम का ओथ लेना है। तैयारी शुरू करो।”
इस बीच कांग्रेस का समर्थन मांगने के लिए लालू यादव ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को फोन मिलाया। बाद में केसरी ने लालू के राजगुरु कह जाने वाले राधानंदन झा के जरिए संदेश भिजवाया। ऐसा माना जाता है कि लालू यादव जब खुद किसी परेशानी में होते तो अक्सर राधानंदन झा से सलाह लिया करते थे। माना जाता है कि जब चारा घोटाला सामने आया तो लालू यादव को राधानंदन झा ने सलाह दी थी कि वे झारखंड की मांग के खिलाफ हो जाएं और अखंड बिहार की वकालत करें। यही नहीं लालू यादव को राधानंदन झा ने ही सलाह दी थी कि वे राबड़ी देवी को अपनी जगह सीएम बना दें।
राधानंदन झा के बारे में बात करें तो झा 1980-85 तक बिहार विधानसभा के अध्यक्ष थे और इससे पहले वे राज्य में कई सरकारों में मंत्री रह चुके थे। इसके बाद 25 जुलाई की सुबह लालू यादव ने अपने अधिकारियों से कहा कि अगर वे हो सके तो उनकी गिरफ्तारी को जितना हो सके उतना टालें। इसके बाद लालू यादव ने पार्टी के विधायकों को बताया कि उन्होंने इस्तीफा देना और सरेंडर करना तय किया है। इस बीच राबड़ी देवी अपने भाई साधु यादव और अनवर अहमद के साथ विधायकों के बीच पहुंची और राबड़ी को लालू की उत्तराधिकारी के तौर पर चुन लिया गया।