-Mihir
पंजाब में खालिस्तान के नाम पर बवाल काट रहे अमृतपाल की कुंडली बताती है कि वो बड़ी तैयारी के साथ अपने खतरनाक प्लान को अंजाम देने की ओर बढ़ रहा था। जिस दौर में ऑपरेशन ब्लूस्टार हुआ था, जिस दौर में पूरा पंजाब जला था, उसका सबसे बड़ा खलनायक जरनैल सिंह भिंडरावाले था और वही बन गया धार्मिक जहर बांटने वाले अमृतपाल का रोल मॉडल।
भिंडरावाले की नकल
ये महज कहने की बात नहीं है बल्कि खुद अमृतपाल भी इसकी तस्दीक करता था, जिस घर में अमृतपाल रहता था वहां भिंडरावाले के आदमकद पोस्टर लगे हुए थे, यही नहीं जब साल 2022 के सितंबर में उसने वारिस पंजाब दे संगठन की पहली सालगिरह पर समारोह किया तो वेन्यू का सेलेक्शन भी इसी सोच का नतीजा था। इसके लिए अमृतपाल ने पंजाब के मोगा जिले का रोडे गांव चुना। ये गांव भिंडरावाले का गांव है। अमृतपाल ने अलगाववादी आंदोलन का पूरा पैटर्न बहुत प्लानिंग के साथ तैयार किया था। ऐसे में साफ है कि अपने रोलमोडल का रोडे गांव चुनकर उसने एक मास्टर स्ट्रोक चला, जिसका मकसद था खालिस्तान और भिंडरावाले से सहानुभूति रखने वाले सिरफिरों को अपने साथ जोड़ना और हुआ भी बिल्कुल ऐसा ही।
अमृतपाल अपने रोल मॉडल भिंडरवाले से इस कदर प्रभावित था कि वो उसी के अंदाज में फोटो खिंचवाता, उसी तरह युवाओं के बीच जहर बोता, संगठन से ज्यादा ज्यादा लोगों को जोड़ने का फंडा भी भिंडरावाले जैसा ही था। सवाल ये है कि जब स्टाइल भिंडरावाले जैसा अपनाया अमृतपाल ने तो क्या अंजाम भी उस जैसा ही होगा। इसके लिए फ्लैशबैक में ले जाना होगा।
1980 के दौर में जरनैल सिंह भिंडरावाले पंजाब में दहशत का दूसरा नाम बन गया था। दमदमी टकसाल का मुखिया चुना गया। उम्र कोई ज्यादा नहीं थी तब भिंडरावाले की, महज तीस साल। अलग देश के नाम पर भड़काऊ भाषण और हमेशा अत्याधुनिक हथियारों से लैस निहंगों से घिरा रहना। भिंडरावाले के भड़काऊ भाषणों ने उस दौर में पंजाब को छलनी कर दिया था। 1981 में पंजाब केसरी के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या में भी मास्टरमाइंड के तौर पर भिंडरावाले का नाम सामने आया था।
1983 में पंजाब के डीआईजी की हत्या कर दी गई। कुछ ही दिन बाद एक बस में घुसकर बंदूकधारियों ने कई हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया। हिंसा आग की तरह फैल रही थी, पंजाब सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया गया। तब तक भिंडरावाले स्वर्ण मंदिर में घुस चुका था और उसे अपना ठिकाना घोषित कर दिया था। यहां उसके सैकड़ों बंदूकधारी लड़ाके साथ मौजूद रहते थे।
अकाल तख्त पर बैठकर वो पूरे पंजाब में दहशत फैलाने का काम करने लगा। इसके बाद इंदिरा गांधी ने आतंक के इस अध्याय का खात्मा तय किया। जून 1984 में इंदिरा गांधी सरकार ने ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू किया। 4 जून को ऑपरेशन ब्लूस्टार शुरू, सेना के कमांडो गोल्डन टेंपल में घुस गए। तीन दिन तक चले इस ऑपरेशन में भिंडरावाले के कई समर्थक मारे गए और 6 जून को आखिरकार भिंडरावाले भी मारा गया। भिंडरवाले और उस दौर को गए अब कई दशक बीत चुके हैं। पंजाब उन जख्मों को भूलकर आगे बढ़ चुका था लेकिन अमृतपाल की सनक ने पुरानी टीस को फिर से जगा दिया है।