इस समय देश में झारखंड (Jharkhand) राज्य में जैन (Jain) तीर्थस्थल को पर्यटन स्थल बनाए जाने के प्रस्ताव के विरोध में जैन धर्म के लोग पूरे देश में आंदोलन कर रहें हैं। जैन धर्म के अनुयायियों ने झारखंड सरकार के इस फैसले को लेकर कर्नाटक, दिल्ली, मध्यप्रदेश और झारखंड समेत देश के कई हिस्सों में विरोध करते हुए शांति मार्च भी निकाला है। आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों जैन धर्म के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और आखिर उनकी क्या मांग है?
कहां है ये Jain तीर्थस्थल और कितना है इसका महत्व?
झारखंड राज्य के गिरिडीह (Girdih) जिले में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर एक पहाड़ी है जिसे लोग भगवान पारसनाथ पर्वत (Parasnath Parvat) के नाम से जानते हैं। इसी पर्वत पर सम्मेद शिखरजी भी है, जिसे कई बार ‘शिखर जी’ भी कहा जाता है। सम्मेद शिखरजी जैन समुदाय खासतौर पर श्वेताम्बर समाज (Śvētāmbara) के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मान्यताओं के अनुसार जैन धर्म से 24 में से 20 तीर्थंकरों को यहीं पर मोक्ष प्राप्त हुआ था जिसके चलते दुनियाभर से हर साल हजारों की संख्या में जैन श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और 27 किलोमीटर की परिक्रमा पूरी कर शिखर पर पहुंचते हैं। इस पहाड़ी की तलहटी में स्थित दर्जनों जैन मंदिरों में से कई मंदिर को तो दो हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराना बताया जाता है।

क्यों नाराज हैं Jain समाज के लोग?
कोरोना महामारी से जूझ रहे झारखंड के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 23 जुलाई 2022 को नई झारखंड पर्यटन नीति 2021 की घोषणा की थी। इस नीति के तहत झारखंड सरकार का लक्ष्य था कि राज्य में धार्मिक, सांस्कृतिक और खनन पर्यटन को बढ़ावा दिया जाया। नीति के तहत ही पारसनाथ पहाड़ी (सम्मेद शिखर), मधुबन और इटखोरी में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया था। इससे पहले भी झारखंड की तत्कालीन भाजपा की रघुबर दास सरकार ने 2 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार से सिफारिश की थी कि पारसनाथ पहाड़ी के एक हिस्से को वन्यजीव अभयारण्य और ईको सेंसिटिव जोन बनाया जाए। जिसके बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने इसे ईको सेंसिटिव जोन के रूप में घोषित कर दिया। सरकार के इसी फैसले को लेकर समूचे देश का जैन समुदाय नाराज है।

जो जैन समाज के लोग यहां दर्शन करने आ रहें हैं, और जो यहां पर जैन समाज के लोग वहां रहते हैं, सबका यही कहना है कि इस इलाके में गैर-धार्मिक गतिविधियों की मंजूरी देना सरासर गलत है। इन लोगों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से सम्मेद शिखरजी की पवित्रता पर आंच आएगी और धर्म और आस्था का यह केंद्र लोगों की मौज-मस्ती का अड्डा बनकर रह जाएगा।
जैन समाज के लोगों का कहना है कि सम्मेद शिखरजी को तीर्थ क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए। इन लोगों का कहना है कि जिस तरह मुस्लिमों के लिए मक्का है, हिन्दुओं के लिए वैष्णो देवी, अयोध्या है, उसी तरह जैनियों के लिए सम्मेद शिखरजी है।
क्या पर्यटन स्थल बनने से भंग होगी पवित्रता?
झारखंड की पारसनाथ पहाड़ी का क्षेत्र अपनी जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है। झारखंड सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना को लेकर जैन समाज का कहना है कि अगर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया गया तो इस पूजा स्थल की पवित्रता भंग हो जाएगी। यहां मांसाहार और शराब सेवन जैसी गतिविधियां बढ़ेंगी जिससे अहिंसक जैन समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी। कई जैन संगठनों ने इससे पहले 17 मार्च 2022 को केंद्रीय वन मंत्रालय और झारखंड सरकार की इस अधिसूचना को लेकर भी अपनी असहमति जताते हुए इसे रद्द करने की मांग की थी जिसको लेकर 24 मार्च 2022 को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इस मामले में झारखंड सरकार को उचित निर्णय लेने के लिए पत्र भी लिखा था, लेकिन उसको लेकर भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी है।

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क्या कह रही है सरकार?
झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने भी सम्मेद शिखरजी को जैन तीर्थ स्थल ही रहने देने के संबंध में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर कहा है कि यह मामला जैन समाज की भावनाओं से जुड़ा हुआ है, इसे ध्यान में रखकर इस विषय पर पुनर्विचार करना चाहिए। वहीं, गिरिडीह के जिला उपायुक्त नमन प्रियेश लकड़ा ने कहा है कि सम्मेद शिखरजी की पवित्रता बनाए रखने के लिए प्रशासन अपनी ओर से सजग और सतर्क है। पूरे इलाके में शराब या मांस की बिक्री करने की मनाही है और इसे सख्ती से लागू किया गया है। जैन धर्माववलंबियों की आस्था का यह बड़ा केंद्र है और उनकी आस्था के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा।