चमड़ा उद्योग के लिए प्रसिद्ध कानपुर में तकरीबन 50 लाख की आबादी बसती है तो क्या इतनी बड़ी आबादी के चलने के लिए यहां के लोगों को बेहतर सड़क मयस्सर है। इसी की तहकीकात करने के लिए हम कानपुर की सड़कों पर उतरे। सबसे पहले हम कानपुर के पार्वती बागला रोड पहुंचे। वैसे तो सरकारी दस्तावेजों में इस सड़क का नाम पार्वती बागला है लेकिन लोग इसे वीआईपी रोड के नाम से ज्यादा जानते है। इस सड़क के वीआईपी रोड के नाम से फेमस होने की वजह ये है कि इसी सड़क किनारे शहर के वीआईपी लोगों के बंगले है। जिले के ज्यादातर प्रशासनिक, न्यायिक और पुलिस अफसरों के आवास इसी सड़क पर बने है। कानपुर शहर का दिल कहलाने वाले माल रोड से होकर रावतपुर स्टेशन तक जाने वाली ये सड़क जीटी रोड से जाकर मिलती है। इतनी महत्वपूर्ण सड़क होने के बावजूद ये सड़क बदहाल है। सड़क का हाल ये है कि यहां जगह-जगह गड्ढे हैं। बेतरतीब और मनमाने ढंग से आए दिन होने वाली खुदाई ने इस सड़क का बुरा हाल कर दिया है।
वीआईपी रोड से गुजरने वाले ज्यादातर वाहन इन गड्ढों से हिचकोले खाते हुए निकलते हैं। इस सड़क के कई हिस्से बेहद जर्जर स्थिति में है। सड़क के इन गड्डों से होकर जिले के कई कई सरकारी अधिकारी, विधायक और सांसद भी गुजरते हैं लेकिन किसी ने इस सड़क को दुरूस्त कराने के लिए कोई पहल नहीं की। हाल ये है कि कानपुर के लोग सूबे की सभी सड़कों के गड्ढामुक्त किए जाने की सरकारी घोषणा के बावजूद जर्जर सड़क से गुजरने को मजबूर हैं।
जब वीआईपी रोड का ये हाल है तो शहर की अन्य सड़कों का अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं। तो चलिए अब आपको कानपुर शहर के एक और महत्वपूर्ण माल रोड इलाके की सड़कों का हाल बताते हैं। माल रोड का मुरे कंपनी पुल दिन हो या रात, चौबीसो घंटे यहां पर गाड़ियों की आवाजाही लगी रहती है। जो गाड़ियां पुल पर चढ़ना नहीं चाहती हैं, वो नीचे से इसी सड़क होकर गुजरती हैं। इस पुल के नीचे सैकड़ों की संख्या में ऑटोमोबाइल पार्ट्स की दुकानें हैं। लेकिन इस सड़क का हाल इतना खस्ता है कि इससे होकर गुजरना किसी चुनौती से कम नहीं। पूरी सड़कें गड्ढ़ों से छलनी हैं, पूरी सड़क मौत का कुआं बन चुकी है जिसमें आए दिन हादसे होते हैं।
माल रोड इलाके की इस सड़क में इतने गड्ढे है कि ऑटो रिक्शा का इन गड्ढों में फंसकर पलटना आम बात है। दो पहिया, तीन पहिया हो या चौपहिया वाहन, इस सड़क पर पहुंच कर सभी की रफ्तार पर ब्रेक लग जाती है। हाल तो ये है कि गड्ढे से अटी पड़ी इस सड़क पर पैदल चलना भी मुश्किल है। सड़क की ये स्थिति कोई आज कल की बात नहीं है, सालों से इस सड़क का यही हाल है जो कि दिन-ब-दिन और भी बदतर होती जा रही है। स्थानीय लोग कई बार प्रशासन और सरकार से गुहार लगा चुके हैं लेकिन जनता के प्रतिनिधि हो या सरकारी अधिकारी, समस्या का समाधान करने के बजाय महज़ आश्वासन ही देते है। सूबे में योगी सरकार बनने के बाद जब उन्होंने सूबे की सभी सड़कों को गड्ढामुक्त करने का वादा किया और 15 जून का डेडलाइन भी तय कर दिया तो यहां के लोगों को लगा कि अब तो ये सड़क जरूर बन जाएगी। सालों से जर्जर पड़ी ये सड़क दुरूस्त हो जाएगी लेकिन सीएम योगी का वादा भी खोखला साबित हुआ। योगी सरकार के अधिकारियों ने सरकार के वादे को हवा में उड़ा दिया।
एपीएन ब्यूरो