हरियाणा में इस समय पंचायत चुनाव और आदमपुर विधानसभा उपचुनाव को लेकर राजनीतिक गहमागहमी का दौर है. विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि चुनावों को लेकर प्रदेश में मतदाताओं को लुभाने के लिए हरियाणा की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने जेल में बंद डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम (Gurmeet Ram Rahim Singh) को पैरोल (Parole) पर रिहा कर दिया है. पैरोल मिलने के बाद से राम रहीम पांच सालों के बाद पहली बार लगातार अपने अनुयायियों से मिल रहा है.
इस साल तीन बारी मिल चुकी है पैरोल
Gurmeet Ram Rahim को इस साल तीसरी बार पैरोल मिली है. राम रहीम को इस बार 15 अक्टूबर 2022 को 21 दिन की पैरोल मिली है. वहीं इस साल फरवरी में पंजाब में हुए विधानसभा चुनावों से पहले हरियाणा सरकार ने 20 फरवरी को राम रहीम को उनके परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए 21 दिनों के लिए छुट्टी दे दी थी. इससे बाद राम रहीम को जून में 30 दिन की पैरोल मिली थी, इस दौरान वह बागपत में अपने डेरा सच्चा सौदा आश्रम में रुके थे.
पैरोल के बाद राम रहीम उत्तर प्रदेश के बागपत में बरनावा स्थित अपने पंथ के डेरे में रह रहा है. 15 अक्टूबर को हुई उनकी रिहाई के बाद से, राजनेता उनके आशीर्वाद के लिए लाइन में खड़े हैं इसके साथ ही राम रहीम अनुयायियों को संदेश देने के लिए वर्चुअल आशीर्वाद के विकल्प का भी इस्तेमाल कर रहें है.
वहीं जून 2019 में, राम रहीम ने अपनी पैरोल याचिका वापस ले ली थी, जब राज्य की भाजपा सरकार को विपक्षी दलों ने राम रहीम का पक्ष लेने के आरोप लगाए थे. इसके साथ ही, उच्च न्यायालय ने उनकी दत्तक बेटी के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए उनकी पैरोल याचिका को खारिज कर दिया था.
हरियाणा के जेल मंत्री रंजीत सिंह चौटाला ने पैरोल देने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि उन्हें जेल नियमावली के अनुसार पैरोल दी गई है. यह एक दोषी का कानूनी अधिकार है, जो तीन साल की सजा पूरी करने के बाद पैरोल या फरलो लेने के योग्य हो जाता है.
दो मामलों में हो चुकी है सजा
राम रहीम को अगस्त 2017 में दो महिलाओं से रेप के आरोप में 20 साल जेल की सजा सुनाई गई थी. इसके बाद जनवरी 2019 में पंचकूला की एक विशेष सीबीआई अदालत ने राम रहीम और तीन अन्य लोगों को 16 साल पहले के सिरसा के पत्रकार रामचंदर छत्रपति की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. पंचकुला में 25 अगस्त, 2017 को जब राम रहीम को सजा सुनाई गई थी तो पंचकुला और सिरसा में बड़े स्तर पर हिंसा हुई थी, जिसमें 41 लोग मारे गए थे और 260 से अधिक घायल हो गए थे.
हरियाणा में भाजपा का किया था समर्थन
साल 2014 एवं 2019 में हुए हरियाणा विधानसभा ओर लोकसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने भाजपा को समर्थन देकर उसकी जीत में एक बड़ी भूमिका निभाई. 2014 के हरियाणा विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सिरसा में हुई एक रैली में गुरमीत राम रहीम के प्रति सम्मान भी व्यक्त किया था.
डेरा सच्चा सौदा पंजाब के मालवा क्षेत्र के 13 जिलों, जिनमें 58 विधानसभा सीटें हैं एवं हरियाणा के नौ जिलों की करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर दखल रखता है. हरियाणा में डेरे के 15 से 20 लाख अनुयायी हैं, जिनके लिए नियमित रूप से सत्संग होते हैं. हरियाणा में सिरसा, हिसार, फतेहाबाद, कैथल, जींद, अंबाला, यमुनानगर और कुरुक्षेत्र जिले ऐसे हैं, जहां डेरा सच्चा सौदा का पूरा असर महसूस किया जाता है.
डेरे का राजनीतिक प्रभाव
2017 से बलात्कार और हत्या के मामलों में हरियाणा की सुनारिया जेल में बंद Gurmeet Ram Rahim के हरियाणा में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं. हालांकि राम रहीम हमेशा से अराजनीतिक होने का दावा करते है, लेकिन उनके संगठन डेरा सच्चा सौदा ने 2007 में अपनी राजनीतिक मामलों की शाखा शुरू कर दी थी. राम रहीम ओर डेरे से आशीर्वाद लेने वालो में इस बार हरियाणा के डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा के अलावा करनाल की मेयर रेणु बाला गुप्ता के साथ उप महापौर नवीन कुमार और वरिष्ठ उप महापौर राजेश अग्गी भी उन राजनेताओं की सूची में शामिल हैं जिन्होंने राम रहीम के ऑनलाइन प्रवचन को सुना और आशीर्वाद लिया. इसी तरह हिसार के मेयर गौतम सरदाना की पत्नी भी पंचायत चुनाव से पहले उनका आशीर्वाद लेने पहुंची.
राजनीति में कितना प्रभाव
2017 में दोषसिद्धि से पहले, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत तत्कालीन भाजपा प्रमुख अमित शाह देश के उन प्रमुख नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने हरियाणा के सिरसा में स्थित राम रहीम के डेरे का कई बार दौरा किया था.
2014 के लोकसभा चुनावों और उसके बाद नवंबर 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने लोगों से भाजपा को वोट देने की सार्वजनिक अपील जारी की थी. इसके बाद 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में डेरे ने जो पूरे भारत में 6 करोड़ अनुयायी होने का दावा करता है, जिसमें से 40 लाख अकेले पंजाब में हैं, उन्होंने शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन का समर्थन किया, लेकिन ये गठबंधन कांग्रेस से हार गई. हालांकि, डेरे साल 2012 और 2007 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का समर्थन किया था.
देश के कई हिस्सों में अपने आश्रम चलाने वाले राम रहीम अपने समर्थकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं. राम रहीम के ज्यादातर अनुयायी गरीब दलित हैं, जो उन्हें सम्मान में पिताजी बुलाते हैं. उनके लिए राम रहीम की कोई बात सीधा आदेश की तरह होती है. एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा और पंजाब में इनके डेरों की संख्या लगभग 20 हजार के करीब है.
राम रहीम के अनुयायी न सिर्फ सत्संग और दूसरे धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेते हैं, बल्कि चुनाव में किस राजनीतिक दल का समर्थन करना है इसके लिए भी उनके निर्देश का पालन करते रहे हैं.
पंजाब ओर डेरे
देश के सबसे समृद्ध राज्य माने जाने वाले पंजाब के लिए डेरों का अस्तित्व कोई नयी बात नहीं है. वास्तव में पहले डेरे मुस्लिमों और योगनाथ से ताल्लुक रखते थे. लेकिन सिख धर्म की स्थापना के बाद कुछ सिख और गैर-सिख डेरे भी अस्तित्व में आए.
पंजाब के लगभग हर गांव में डेरे हैं. राज्य के तीन इलाकों माझा, मालवा और दोआबा की राजनीति में भी डेरों का खासा असर है. राज्य में पीढियों से जातिगत-भेदभाव और अत्याचार का सामना कर रहे उपेक्षित दलित समुदाय के लिए ये डेरे एक वैकल्पिक सामाजिक-सांस्कृतिक स्थल के तौर पर उभरे हैं.
बता दें कि पंजाब में दलितों की आबादी कुल जनसंख्या का 32 फीसदी है, जो किसी भी राज्य में सबसे ज्यादा है, लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है. बड़ी संख्या में दलित मजदूर ही हैं. ऐसे सामाजिक ताने-बाने में डेरों ने पंजाब में दलित चेतना पैदा करने का काम किया.
जानकार बताते हैं कि पंजाब में हर एक गांव में दो तीन गुरूद्वारे होते हैं. लेकिन वो जाति के आधार पर होते हैं. तो जब लोग देखते हैं कि डेरे जैसी जगहों में सभी को बराबर समझा जा रहा है और किसी किस्म का कोई भी भेदभाव नहीं हो रहा तो वो डेरों की तरफ आकर्षित होते हैं.
पंजाब में वैसे तो असंख्य डेरे हैं, लेकिन इनमें से डेरा सच्चा सौदा, डेरा राधा स्वामी ब्यास, डेरा सचखंड बल्लां, डेरा रूमी वाला, डेरा हंसली वाले, निरंकारी मिशन और दिव्य ज्योति संगठन प्रमुख डेरे माने जाते हैं. इन डेरों के अनुयायियों की संख्या लाखों-करोड़ों में है.
एक अनुमान के अनुसार पंजाब में सभी वर्गों के 12,000 से अधिक डेरे हैं. इसके अलावा, सिख धर्म से जुड़े हुए करीब 9,000 डेरे हैं. लेकिन इनमें से 300 डेरे खासे मजबूत हैं जो पंजाब के साथ ही हरियाणा में भी सक्रिय हैं. वहीं इनमें से करीब 12 ऐसे होंगे जिनके 1 लाख से ज्यादा अनुयायी हैं, जो सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करते हैं.
पंजाब की 60 से अधिक सीटों पर सीधा प्रभाव
डेरे पंजाब विधानसभा की 117 में से 93 सीटों को खासा प्रभावित करते हैं. इसके अलावा 47 सीटें ऐसी हैं जहां डेरे चुनावों को पूरी तरह से बदलने की कुव्वत रखते हैं तो वहीं 46 सीटों पर डेरे मतदान में बड़ा अंतर लाने की क्षमता रखते हैं. इस समय में 2.12 करोड़ मतदाता हैं. पंजाब के 25 फीसदी लोग किसी न किसी डेरे के साथ जुड़े हुए हैं. इसलिए डेरे का झुकाव जिस ओर भी होता है उस पार्टी की जीत का गणित आसान हो सकता है.
हालांकि पंजाब में 2015 में हुई गुरु ग्रंथ साहिब की कथित बेअदबी की घटनाओं में डेरा सच्चा सौदा के लोगों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद राजनीतिक दल डेरे का खुले तौर पर समर्थन लेने से बचती रही हैं. वहीं चंडीगढ़ स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के शोध के अनुसार पंजाब की 117 सीटों में से ये डेरे 56 सीटों में प्रभावी हैं और उनमें चुनाव नतीजों पर असर डाल सकते हैं.
पंजाब में 2007 के विधानसभा चुनावों में डेरा सच्चा सौदा ने अपने अनुयायियों को कांग्रेस पार्टी के लिए वोट करने का निर्देश दिया था. इसका नतीजा ये हुआ कि शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार कई ऐसी जगहों से चुनाव हार गए जिन्हें अकालियों का गढ़ माना जाता था. लेकिन इसके बावजूद भी शिरोमणि अकाली दल पंजाब में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल रहा और डेरा सच्चा सौदा के साथ उसके संबंधों में खटास आ गयी. अकालियों से रिश्ते खराब होने का सबक सीखते हुए डेरा सच्चा सौदा ने अपनी नीति बदली ओर एक पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी का गठन किया जो उम्मीदवार को देखकर और निर्वाचन क्षेत्र के लिहाज से समर्थन देने या न देने का फैसला करती है.
साल 2012 के पंजाब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह डेरा सच्चा सौदा से समर्थन मांगने के लिए गुरमीत राम रहीम से मिलने पहुंचे. लेकिन उस साल डेरे ने किसी भी पार्टी के लिए समर्थन की खुली घोषणा नहीं की. इसके पिछे का मकसद ये था कि डेरा अकाली दल से अपने बिगड़े हुए सबंध सुधारना चाहता था इसलिए उसने अकाली उम्मीदवारों का समर्थन किया. इस चुनाव में अकाली दल ने अपने पिछले प्रदर्शन को सुधरते हुए 56 सीटें जीतीं. इन चुनावों में कांग्रेस को 46 सीटों पर ही जीत नसीब हो पाई. भाजपा ने इस चुनाव में 12 सीटें जीतीं और फिर एक बार अकाली दल-भाजपा की सरकार बनी.
जानकार मानते हैं कि 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में भी डेरा सच्चा सौदा ने चतुराई से अकाली दल का साथ दिया जिसकी बदौलत अकाली बुरी तरह चुनाव हारने के बावजूद 25 फीसदी वोट-शेयर बरकरार रखने में कामयाब हुए.