Navratri 2022: हिंदू धर्म के लोग शारदीय नवरात्रि को पूरे धूमधाम और श्रद्धा, भक्ति के साथ मनाते हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से आरंभ होकर 5 अक्टूबर को समाप्त होगी। इन 9 दिनों तक पूरे श्रद्धाभाव के साथ देवी की पूजा की जाती है। नवरात्रि में पूजा करने के नियम भी हैं। मगर क्या आपको नवरात्रि से जुड़ी सभी मान्याताओं के बारे में पता है? क्यों 9 दिन के लिए देवी की पूजा की जाती है, कैसे देवी का जन्म हुआ और क्यों दुर्गा की सवारी शेर है? इन सभी सवालों के जवाब आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
1-Navratri 2022: क्या है देवी के जन्म का इतिहास?
देवी का जन्म सबसे पहले दुर्गा के रूप में ही माना जाता है। जिनका जन्म राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए हुआ था और यही कारण है कि उन्हें महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं को भगा कर महिषासुर ने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था तब सभी देवता मिलकर त्रिमूर्ति के पास गए थे। ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने अपने शरीर की ऊर्जा से एक आकृति बनाई और सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां उस आकृति में डाली, इसीलिए दुर्गा को शक्ति भी कहा जाता है। दुर्गा की छवि बेहद सौम्य और आकर्षक थी और उनके कई हाथ थे।
सभी देवताओं ने मिलकर उन्हें शक्ति दी इसलिए वो सबसे ताकतवर भगवान मानी जाती हैं। उन्हें शिव का त्रिशूल मिला, विष्णु का चक्र, बह्मा का कमल, वायु देव से उन्हें नाक मिली, हिमावंत (पर्वतों के देवता) से कपड़े, धनुष और शेर मिला और ऐसे एक-एक कर शक्तियों से वो दुर्गा बनी और युद्ध के लिए तैयार हुई। मां दुर्गा की शक्तियों के बारे में ऋग्वेद के श्लोक 10.125.1 से लेकर 10.125.8 तक देवी सूक्त: में पढ़ा जा सकता है।
2-Navratri 2022: क्यों 9 दिन की जाती है पूजा?
जब मां दुर्गा ने महिषासुर पर हमला किया और एक-एक कर दैत्यों को मारना शुरू किया तब भैंसे का रूप धारण करने वाले महिषासुर को मारने के लिए उन्हें 9 दिन लगे। तभी से नवरात्रि को 9 दिन मनाया जाने लगा। इससे जुड़ी अन्य कथाएं भी हैं जैसे नवरात्रि को दुर्गा के 9 रूपों से जोड़कर देखा जाता है और कहते हैं कि हर दिन युद्ध में देवी ने अलग रूप लिया था और इसलिए 9 दिन 9 अलग-अलग देवियों की पूजा की जाती है। हर दिन को अलग रंग से जोड़कर भी देखा जाता है।
3-Navratri 2022: क्यों करती हैं मां शेर की सवारी?
मां दुर्गा का वाहन शेर है। शेर को ही मां दुर्गा की सवारी बनाने के पीछे मान्यता है कि शेर ताकत और अतुल्य का प्रतीक है। जिस पर सवार होकर मां लोगों के दुखों और बुराई का अंत करती हैं।
4-Navratri 2022: क्यों है अष्ट भुजाओं वाली?
देवी दुर्गा को अष्ट भुजाओं वाली कहा जाता है। कुछ शास्त्रों में 10 भुजाओं वाला भी कहा जाता है। वास्तु शास्त्र में 8 अहम दिशाएं होती हैं, लेकिन कई जगहों पर 10 कोण या दिशाओं की बात की जाती है। इनमें हैं प्राची (पूर्व), प्रतीची (पश्चिम), उदीची (उत्तर), अवाचि (दक्षिण), ईशान (नॉर्थ ईस्ट), अग्निया (साउथ ईस्ट), नैऋत्य (साउथ वेस्ट), वायु (नॉर्थ वेस्ट), ऊर्ध्व (आकाश की ओर), अधरस्त (पाताल की ओर)।
कई जगह 8 दिशाएं ही मानी जाती हैं क्योंकि आकाश और पाताल की ओर को दिशा का दर्जा नहीं दिया जाता। हिंदू शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना गया है कि देवी दुर्गा हर दिशा से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और यही कारण है कि उनकी 8 भुजाएं हैं जो आठों दिशाओं में काम करती हैं।
5-Navratri 2022: मां दुर्गा को त्रयंबके क्यों कहा जाता है?
मां दुर्गा को त्रयंबके कहा जाता है यानी तीन आंखों वाली। शिव भी त्रिनेत्र कहलाते हैं, जिनकी तीन आंखें हैं। मां दुर्गा भगवान शिव का अर्ध रूप है इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। मां दुर्गा की तीन आंखों का मतलब है अग्नि, सूर्य और चंद्र का प्रतीक।
6-Navratri 2022: मां दुर्गा की पूजा में 108 मंत्रों के जाप का महत्व
नवरात्रि को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम ने मां दुर्गा की पूजा की थी जिन्हें राम ने महिषासुर मर्दिनी के नाम से ही संबोधित किया था। ये पूजा रावण से युद्ध करने के पूर्व की गई थी और इसीलिए दशहरा नवरात्रि के अंत में मनाया जाता है जिस दिन रावण का वध हुआ था। माना जाता है कि राम जी ने दुर्गा पूजा के वक्त 108 नीलकमल चढ़ाए थे। ऐसी मान्यता है कि अगर आप भी मां दुर्गा के 108 मंत्रों का जाप करते हैं तो माता रानी इससे प्रसन्न हो जाती हैं और आशीर्वाद देती हैं। माता रानी के इन 108 नामों को अष्टोत्तरशतनामावली कहा जाता है।
मां दुर्गा के ये 108 मंत्र इस प्रकार हैं। 1. सती, 2. साध्वी, 3. भवप्रीता, 4. भवानी, 5. भवमोचनी,6. आर्या, 7. दुर्गा,8. जया, 9. आद्या, 10. त्रिनेत्रा, 11. शूलधारिणी, 12. पिनाकधारिणी, 13. चित्रा,14. बुद्धि, 15. महातपा,16. मन, 17. चंद्रघंटा,18. अहंकारा, 19. चित्तरूपा, 20. चिता, 21. अनंता,22. सर्वमंत्रमयी, 23. सत्ता, 24. सत्यानंदस्वरूपिणी, 25. चिति, 26. चिंता, 27. भव्या, 28. अभव्या, 29. भाविनी,30. शाम्भवी, 31. देवमाता, 32. सदागति,33. रत्नप्रिया, 34. सर्वविद्या,35. दक्षकन्या, 36. दक्षयज्ञविनाशिनी, 37. अपर्णा,38. अनेकवर्णा,39. पाटला,40. पाटलावती,41.पट्टाम्बरपरिधाना,42. कलमंजरीरंजिनी, 43. अमेयविक्रमा, 44. क्रूरा, 45. सुंदरी, 46. सुरसुंदरी, 47. वनदुर्गा, 48. मातंगी, 49. मतंगमुनिपूजिता, 50. माहेश्वरी, 26. चिंता, 27. भव्या, 28. अभव्या, 29. भाविनी, 30. शाम्भवी, 31. देवमाता, 32.सदागति, 33. रत्नप्रिया,34. सर्वविद्या,35. दक्षकन्या,36. दक्षयज्ञविनाशिनी,37. अपर्णा, 38. अनेकवर्णा, 39. पाटला, 40. पाटलावती, 41. पट्टाम्बरपरिधाना,42. कलमंजरीरंजिनी, 43. अमेयविक्रमा, 44. क्रूरा, 45. सुंदरी, 46. सुरसुंदरी, 47. वनदुर्गा, 48. मातंगी, 49. मतंगमुनिपूजिता, 50. माहेश्वरी, 76. अग्निज्वाला, 77.अनेकशस्त्रहस्ता, 78. अनेकास्त्रधारिणी, 79. कुमारी, 80. एककन्या, 81.कैशोरी, 82. युवती, 83. यति, 84. अप्रौढ़ा, 85. प्रौढ़ा, 86. वृद्धमाता,87. बलप्रदा, 88. महोदरी, 89. मुक्तकेशी, 90. घोररूपा, 91. महाबला, 92. सर्वास्त्रधारिणी, 93. रौद्रमुखी, 94. कालरात्रि, 95. तपस्विनी, 96. नारायणी, 97.भद्रकाली, 98. विष्णुमाया, 99. जलोदरी, 100. परमेश्वरी, 101. कराली, 102. अनंता, 103. शिवदुती, 104. कात्यायनी, 105. सावित्री, 106. प्रत्यक्षा, 107.ब्रह्मावादिनी, 108. सुधा।
7- Navratri 2022: कन्या पूजन का क्या है महत्व?
कुंवारी कन्याओं को मां देवी का रूप माना जाता है। हिंदू धर्म की मान्याताओं के अनुसार, कन्याएं तब तक सबसे पवित्र होती है, जब तक उन्हें महावारी शुरू नहीं होती। मां दुर्गा जगत माता है ऐसे में नवरात्रि के दौरान कन्याओं को उनका रूप मान कर कन्या पूजा की जाती है। इतिहास पर नजर डाले तो ये पूजा स्वामी विवेकानंद ने 1901 में बेलुर मठ में शुरू की थी। इसे महिला शक्ति से जोड़ कर भी देखा जाता है।
8- Navratri 2022: पितृपक्ष के अंत के बाद ही क्यों मनाई जाती है नवरात्रि?
पितृपक्ष में पितृों की पूजा के बाद ऐसा माना जाता है कि घर की शुद्धि होती है। उसके बाद आता है देवी पक्ष यानी नवरात्रि और इसके बाद से हर तरह के त्योहारों की शुरुआत होती है। ऐसा माना जाता है कि देवी पक्ष के पहले दिन मां दुर्गा अपने बच्चों के साथ पृथ्वी की ओर यात्रा करना शुरू करती हैं।
9- Navratri 2022: क्यों ली जाती है तवायफ के घर की मिट्टी?
नवरात्रि के दौरान नौ दिनों के लिए मां दुर्गा की मूर्ति की स्थापना की जाती हैं। इस दौरान बड़े-बड़े पंडाल सजाएं जाते हैं, जिसमें माता के दर्शन के लिए लोग आते हैं। मगर क्या आपको पता है कि मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए पहली मिट्टी एक वेश्या के घर से ली जाती है।
इस प्रथा से जुड़ी मान्यता ये है कि तवायफ के घर जाने से पहले एक पुरुष अपनी सारी अच्छाइयां और पवित्रता उसके आंगन में छोड़कर ही अंदर जाता है और यही कारण है कि तवायफ के आंगन की मिट्टी बहुत पवित्र हो जाती है। इसी मिट्टी को मिलाकर दुर्गा की मूर्ति बनती है।
एक सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार कहा जाता है कि पुराने समय में एक वेश्या माता दुर्गा की अनन्य भक्त थी। समाज में मिलने वाले तिरस्कार से वह बेहद दुखी रहती थी तब देवी ने उसकी पूजा और भक्ति से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया था कि उनकी प्रतिमा में जब तक किसी तवायफ के आंगन की मिट्टी नहीं मिलेगी तब तक वह अपनी प्रतिमा में वास नहीं करेंगी।
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