अहिंसा परमो धर्म का संदेश देने वाले जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का आज 2617वां जन्मकल्याणक है। भगवान महावीर के जन्मदिवस को हर साल महावीर जयंती के रूप में चैत्र शुक्ल 13 को मनाया जाता है। इस दिन जैन मंदिरों को भव्य ढंग से सजाया जाता है, साथ ही इस खास अवसर पर भगवान महावीर के जीवन से जुड़े हर पहलु को झांकी के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। यह जैनों का प्रमुख पर्व है और इसे हर साल भरपूर जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

कौन थे भगवान महावीर

भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं, जिनका जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व) वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम रानी त्रिशला था। जैन धर्म में माता त्रिशला के 16 स्वप्न का अत्यधिक महत्व माना जाता है। भगवान महावीर के जन्म से पहले माता त्रिशला ने 16 स्वप्न देखे थे, जिन्हें उन्होंने राजा सिद्धार्थ को भी बताया। रानी के स्वप्नों को सुनने के बाद राजा सिद्धार्थ ने उन्हें इन स्वप्नों का अर्थ भी समझाया।

ये थे रानी त्रिशला के 16 स्वप्न 

  • रानी को पहले स्वप्न में एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया।
  • अर्थ– उनके घर एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा।
  • दूसरा स्वप्न : श्वेत वृषभ।
  • अर्थ: वह पुत्र समस्त जगत का कल्याण करने वाला होगा।
  • तीसरा स्वप्न : श्वेत वर्ण और लाल अयालों वाला सिंह।
  • अर्थ: वह पुत्र शेर के समान शक्तिशाली होगा।
  • चौथा स्वप्न : कमलासन लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए दो हाथी।
  • अर्थ: देवलोक से स्वयं देवगण आकर उस पुत्र का अभिषेक करेंगे।
  • पांचवां स्वप्न : दो सुगंधित पुष्पमालाएं।
  • अर्थ: वह धर्म तीर्थ स्थापित करेगा और जन-जन द्वारा पूजित होगा।
  • छठा स्वप्न : पूर्ण चंद्रमा।
  • अर्थ: उसके जन्म से तीनों लोक आनंदित होंगे।
  • सातवां स्वप्न : उदय होता सूर्य।
  • अर्थ: वह पुत्र सूर्य के समान तेजयुक्त और पापी प्राणियों का उद्धार करने वाला होगा।
  • आठवां स्वप्न : कमल पत्रों से ढंके हुए दो स्वर्ण कलश।
  • अर्थ: वह पुत्र अनेक निधियों का स्वामी निधि‍पति होगा।
  • नौवां स्वप्न : कमल सरोवर में क्रीड़ा करती दो मछलियां।
  • अर्थ: वह पुत्र महाआनंद का दाता, दुखहर्ता होगा।
  • दसवां स्वप्न : कमलों से भरा जलाशय।
  • अर्थ: एक हजार आठ शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र प्राप्त होगा।
  • ग्यारहवां स्वप्न : लहरें उछालता समुद्र।
  • अर्थ: भूत-भविष्य-वर्तमान का ज्ञाता केवली पुत्र।
  • बारहवां स्वप्न : हीरे-मोती और रत्नजडि़त स्वर्ण सिंहासन।
  • अर्थ: आपका पुत्र राज्य का स्वामी और प्रजा का हितचिंतक रहेगा।
  • तेरहवां स्वप्न : स्वर्ग का विमान।
  • अर्थ: इस जन्म से पूर्व वह पुत्र स्वर्ग में देवता होगा।
  • चौदहवां स्वप्न : पृथ्वी को भेद कर निकलता नागों के राजा नागेन्द्र का विमान।
  • अर्थ: वह पुत्र जन्म से ही त्रिकालदर्शी होगा।
  • पन्द्रहवां स्वप्न : रत्नों का ढेर।
  • अर्थ: वह पुत्र अनंत गुणों से संपन्न होगा।
  • सोलहवां स्वप्न : धुआंरहित अग्नि।
  • अर्थ: वह पुत्र सांसारिक कर्मों का अंत करके मोक्ष (निर्वाण) को प्राप्त होगा।

रानी द्वारा देखे गए ये स्वप्न मात्र स्वप्न नहीं थे, इन स्वप्नों के जरिए माता त्रिशला ने भगवान महावीर के जन्म से पहले ही उनके स्वभाव और गुणों के बारे में पता लगा लिया था।

अन्य नाम

जैन ग्रंथों में बताया गया है कि उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति और समृद्धि होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था। जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच अन्य नामों का भी उल्लेख किया गया है।

शिक्षा

राज परिवार में सुख-सुविधा का जीवन जीने के बाद व्यवहारिक जीवन से मोह त्याग कर उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में घर त्याग दिया और एक संन्यासी के रूप में लगातार परिभ्रमण करते हुए लोगों को सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा देते रहे। महावीर ने लगातार 30 वर्षों तक सन्यासी जीवन को जीने के बाद 72 वर्ष की उम्र में पावापुरी से मोक्ष प्राप्ति किया। महावीर के मोक्ष दिवस को हर साल दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।

पांच व्रत

  • सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
  • अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पांच इन्द्रियों वाले जीव है) उनकी हिंसा मत कर और न ही उन्हें उनके पथ पर जाने से रोक। अचौर्य – दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
  • अचौर्य – दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
  • अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
  • ब्रह्मचर्य– महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।

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