अब जमाना बदल गया है।. सियासत भी बदल गई है। अब वो जमाना नहीं रहा है जब नेता जी साइकिल पर सवार होकर जनता के बीच जाया करते थे।. अब वो जमाना नहीं रहा जब नेता मीलों दूर पदल चलकर जनता से घर घर जाकर मिलते थे।.अब वो जमाना नहीं रहा जब नेताओं के जेब में पैसे नहीं होने के बावजूद वो चुनाव जीत जाते थे। अब वो जमाना नहीं रहा जब नेता एक छोटे से कमरे में रहकर देश की सेवा करते थे।. सादगी के साथ जनता के बीच जाकर घर घर खुद वोट मांगते थे।. उनकी समस्या सुनते थे।. सबकुछ बदल गया है।. अब न तो साइकिल है न ही वो नेता। न ही वो सादगी। अब नेता चलते हैं तो उनके पीछे फौज चलती है। गाड़ियों का काफिला चलती है।. कार्यकर्ताओं भी गाड़ियों से चलते हैं।. शूट बूट शान शौकत के साथ चलते हैं।
गांधी जी भी एक समाजिक नेता थे। जिन्होंने सादगी में रहते हुए भी देश से अंग्रेजों को भगाया था। गांधी के आदर्शों को कई पार्टियों ने वोट बैंक बनाया लेकिन उनके आदर्शों पर चलकर देश को कभी किसी ने आगे नहीं बढ़ाया।. अब. न तो गांधी के आदर्श हैं न ही गांधी के पद चिन्हों पर चलने वाले नेता।. खादी की कुर्ता की जगह अब शूट बूट।. कीचदार कुर्ता ने ले लिया है।. एम्बेस्डर की जगह महंगी महंगी गाड़ियों ने ले ली है। अब नेताओं के ठाठ बाट में काफी बढ़ोत्तरी हुई है।. अब ज्यादातर नेता उड़न खटोला से जनता के बीच पहुंचते हैं।. अब दुनिया हाईटेक हो रही है तो नेता भी हाईटेक हो रहे हैं। पहले पंपलेट और पोस्टर के जरिए जनता तक नेताओं की बात पहुंचया जाता था अब सोशल मीडिया और डिजिटलाईजेशन के जमाने में नेता डिजिटल हो गये हैं।. सोशल मीडिया से जनता के बीच पहुंचते हैं और पैसे भी खूब लूटाते हैं।. नेताओं की सोच बदली है। विचारधारा बदले हैं।.नारे और इरादे भी बदले हैं।.