मोदी सरकार ने सरकार बनने के बाद देश की जनता के लिए कई योजनाओँ का शुभारंभ किया है। किंतु योजनाओँ का जमीनी स्तर पर कितना कार्यान्वयन हुआ है, इसका किसी को पता नहीं। देश में यह सबसे बड़ी दिक्कत है कि सरकार योजनाएं तो कई चलाती है, उसका राजनीतिक लाभ के लिए हर जगह बखान भी करती है। किंतु वो योजनाएं कितने लोगों को फायदा पहुंचा पा रही है। इसके बारे में कोई जानकारी नहीं रहती। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट की मानें तो  सरकार की ओर से चलाई जा रही ज्यादातर स्कीम्स का फायदा मात्र 8-10 राज्य के कारोबारी ही उठा पा रहे हैं। बाकी 20 राज्यों के कारोबारियों को सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ बहुत कम मिल पा रहा है।

मोदी सरकार पिछली सरकार से इसीलिए बेहतर मानी जा रही थी क्योंकि वो अपने योजनाओं का प्रचार-प्रसार बड़े ही व्यवस्थित ढंग से कराती है। साथ ही जमीनी स्तर पर योजनाओं का क्रियान्वयन देखने को मिलता था। किंतु अब सरकार के मेक इन इंडिया के सपने को हर क्षेत्र तक पहुंचाने को झटका लग सकता है। 

मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल से जुलाई 2017 के बीच मंत्रालय की ओर से चलाई जा रही डिजाइन क्लीनिक स्कीम से लेकर क्रेडिट लिंक सब्सिडी स्कीम, क्रेडिट गारंटी स्कीम, स्किल डेवलपमेंट स्कीम, टूल रुम जैसी खास तौर से छोटे कारोबारियों के लिए चलाई जा रही स्कीम या उससे जुड़े प्रोग्राम का फायदा कुछ चुनिंदा राज्यों तक ही सीमित है। रिपोर्ट के अनुसार गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब जैसे राज्यों के ही कारोबारी ठीक ढंग से सरकारी स्कीमों का फायदा ले पा रहे हैं। देश में 3 करोड़ से ज्यादा छोटे और मझोले कारोबारी है जिसमें से एक्सपोर्ट और मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में उनकी 40 फीसदी से ज्यादा की हिस्सेदारी है। सरकार इस हिस्सेदारी को बढ़ाना चाहती है किंतु ये जरूरी है कि चलाई जा रही स्कीमों का फायदा ज्यादा से ज्यादा कारोबारियों तक पहुंचे।

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