संतान सुख और वैभव का वरदान देने वाला है Yashoda Jayanti का व्रत

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Yashoda Jayanti: भगवान कृष्‍ण का जिक्र आते ही बरबस मां यशोदा का नाम सभी के मन आता है, आए भी क्यों ना। भगवान कृष्‍ण के लालन-पालन से लेकर उनकी बाल लीलाओं में मां यशोदा की भूमिका अहम है। ममतामयी और स्‍नेह से भरी मां यशोदा की जयंती आगामी 22 फरवरी को मनाई जाएगी। देश के गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारतीय राज्‍यों में इस दिन काफी धूम रहती है।

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यशोदा जयंती मनाई जाती है। फाल्गुन माह में 22 फरवरी को यशोदा जयंती मनाए जाने का जिक्र है। यशोदा जयंती हर तरह से खास है, क्‍योंकि इस दिन मां यशोदा की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्‍तों को वात्‍सल्य की प्रतिमूर्ति मां यशोदा स्वंय संतोषी रूप धारण कर सुख और सौभाग्य देती हैं उनके पापों का अंत करती हैं।

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Yashoda Jayanti: स्‍वयं में पूर्ण हैं मां यशोदा

मां यशोदा स्वंय में संपूर्ण हैं। उनके नाम का अभिप्राय यश देना है। मां यशोदा स्वंय संतोषी रूप धारण कर दूसरे को सुख और सौभाग्य देती हैं। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ने मां यशोदा को अपनी माता के रूप में चुना। इससे मां यशोदा का जीवन भी धन्य हो गया। धार्मिक मान्यता है कि मैया यशोदा की पूजा करने वाले साधक को सुख, सौभाग्य और वैभव की प्राप्ति होती है। साधक के जीवन में व्याप्त सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

संतान के लिए महिलाएं रखतीं हैं व्रत

बहुत सी महिलाएं उत्‍तम संतान की प्राप्ति के लिए मां यशोदा की जयंती पर उपवास रखतीं हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन संतान सुख से वंचित लोग अगर माता यशोदा के नाम का उपवास रखकर पूरे विधि- विधान के साथ पूजा करते हैं, तो उन्‍हें संतान सुख की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्ण(Krishna)को जन्म देवकी ने दिया था, लेकिन उनका पालन पोषण मां यशोदा ने किया था। इस दिन भक्त माता यशोदा और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। इस दिन पूजा का शुभ समय सायंकाल 5 बजकर 10 मिनट से लेकर 6 बजकर 30 मिनट के मध्‍य माना गया है।

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maa Yashoda pic credit google

भगवान ने दिया था पुत्र रूप में मिलने का वरदान

मान्यता है कि पूर्व जन्म में माता यशोदा की तपस्या से खुश होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया था। उन्हें उनकी मां बनने का सुख प्राप्त होगा। ऐसा ही हुआ. देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था. लेकिन उनके पिता वासुदेव कंस के भय की वजह से नंद बाबा और माता यशोदा के घर छोड़ आए। माता यशोदा को मिले वरदान के अनुसार उन्हें ही कृष्ण की माता बनने का सुख प्राप्त हुआ।

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