Mirza Ghalib Birthday Special: मिर्जा ग़ालिब (Mirza Ghalib) का जन्म 27 दिसंबर 1797 को यानी आज से 223 साल पहले आगरा में हुआ था। उनका पूरा नाम मिर्ज़ा असद उल्लाह खां ‘ग़ालिब’ था। मिर्जा गालिब महज एक नाम नहीं बल्कि बुनियाद हैं। उर्दू और फारसी का एक ऐसा शायर जिसने शायरी के मयार को ही बदल दिया। ग़ालिब ने जितनी आसानी से फ़ारसी कविताओं को हिंदुस्तानी ज़बान दी उतनी ही आसानी से हिंदुस्तान और सरहद पार वालों ने इन्हें सर आंखों पर बिठा लिया।
Mirza Ghalib Birthday Special: 27 दिसंबर 1797 – 15 फरवरी 1869
सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में जन्म मिर्जा ग़ालिब के सर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया था। दुनिया से शायरी के जरिए बात करते थे। पिता के जाने के बाद इनका पालन पोषण चाचा ने किया था। उनको कम उम्र से ही काफी मशक्कत करनी पड़ी थी।
इस महान कलमकार को 1850 में शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय ने दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के ख़िताब से भी नवाज़ा था। ग़ालिब एक समय में शाही इतिहासकार भी थे। उन्होंने 15 फरवरी 1869 को दुनिया को अलविदा कहा था।
Mirza Ghalib Birthday Special: पढ़ें उनकी नज़्म
- हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल को ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है
- हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
- उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
- मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
- रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
- आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
- न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !
- हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !
- हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है
- ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं
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