Shailendra: 12 दिसंबर 1966 को मुंबई के नार्थकोट नर्सिंग होम में गहमागहमी कुछ ज्यादा ही थी। एक शख्स भर्ती था, जिसे देखने के लिए सिनेमा उद्योग के बड़े-बड़े लोग अस्पताल की ओर भागे चले आ रहे थे। सभी आने वाले उसका हाल-दर्याफ्त पूछ रहे थे कि तभी डॉक्टर ने आकर बताया कि शंकरदास केसरीलाल की मौत हो चुकी है।
पूरी भीड़ खामोश। कलम से जादुई गीतकारी करने वाले इप्टा औऱ प्रगतिशील लेखक मंच का संस्थापक शंकरदास केसरीलाल यानी हिंदी सिनेमा का विलक्षण गीतकार Shailendra 43 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गये।
शव को घर वालों ने मुंबई के खार स्थित उनके बंगले ‘रिमझिम’ पर लेकर पहुंचे, वहीं दूसरी ओर शैलेंद्र के दिगरी यार राज कपूर घर में बैठे अपने नाखून चबा रहे थे। उन्हें इस अनहोनी की आशंका थी क्योंकि अस्पताल जाने से पहले शैलेंद्र उनके दफ्तर में आये थे। शैलेंद्र ने कहा, ‘जा रहा हूं सोचा कि तुमसे एक बार मिल लूं। इसलिए चला आया।’
शैलेंद्र की यह बात राज कपूर के दिल में घर कर गई थी। जैसे ही शैलेंद्र के गुजरने की खबर मिली राज कपूर ने घर में जन्मदिन के मौके फैले सारे तामझाम को फिंकवा दिया और सीधे शैलेंद्र के पर पहुंचे। वो शैलेंद्र के मृत शरीर को देखने का साहस नहीं जुटा पाये औऱ सीधे उनकी गैराज में जाकर गिर गये। बेतहाशा रोते हुए शैलेंद्र को पुकारते हुए राज कपूर ने कहा, ‘आज राज कपूर भी आधा मर गया’।
शैलेंद्र आखिरी वक्त में राज कपूर के फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के गीत लिख रहे थे, लेकिन मौत ने उन्हें अधूरा ही छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इस फिल्म के गीत शैलेंद्र के बाद हसरत जयपुरी, नीरज औऱ शैलेंद्र के बेटे शैली शैलेंद्र ने लिखे। ‘कल खेल में, हम हों न हों, गर्दिश में तारे रहेंगे सदा। भूलोगे तुम, भूलेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा’ ये गीत शैलेंद्र के बेटे शैली शैलेंद्र ने लिखा लेकिन इसे सुनने के बाद यही लगता है कि यह गीत शैलेंद्र की कलम से उतरे।
दरअसल शैलेंद्र की जिंदगी में ‘तीसरी कसम’ की परछाईं लेकर आये बिमल रॉय के असिस्टेंट बासु भटाचार्य। बासु शैलेंद्र के काफी करीबी थे और अपने बूते फिल्म निर्देशन करने का ख्वाब पाल रहे थे। एक दिन कवि शैलेंद्र के पास बासु भट्टाचार्य एक किताब लेकर पहुंचे। किताब का शीर्षक था ‘मारे गये गुलफाम’। उन्होंने इस किताब को शैलेंद्र को पढ़ने के लिए दी।
शैलेंद्र ने किताब को पढ़ने के बाद उसपर फिल्म बनाने की इच्छा जताई। इसके बाद शैलेंद्र ने लेखक फणीश्वर नाथ रेणु को पत्र लिखकर कहानी पर फिल्म बनाने की इच्छा जताई। रेणु ने सहर्ष आज्ञा दे दी। इसके बाद शैलेंद्र ने अपने खर्च पर रेणु को बंबई बुलाया और उनकी खूब आव-भगत की। ऐसा इसलिए कि शैलेंद्र एक कवि थे और वो एक लेखक का सम्मान करना जानते थे। शैलेंद्र ने रेणु के साथ फिल्म का कांट्रेक्ट साइन किया औऱ उन्हें पैसे दे दिया।
इसके बाद वो सीधे पहुंचे अपने दोस्त और उस समय के सुपरहिट अभिनेता राज कपूर के पास। शैलेंद्र ने कहानी सुनाई और कहा कि फिल्म में एक्टिंग कर लो। राज कपूर ने कहा कि फिल्म चलेगी नहीं, प्लॉट एकदम देहाती है, देखेगा कौन इसे। शैलेंद्र ने कहा कि जैसे लिखा है अगर वैसा पर्दे पर उतार देंगे तो फिल्म चलेगी नहीं दौड़ेगी।
खैर थोड़े ना-नुकुर के बाद राज कपूर मान गये लेकिन उन्होंने फिल्म के लिए साइनिंग अमाउंट माग कर शैलेंद्र को फिर परेशान कर दिया। शैलेंद्र ने सोचा न था कि राज कपूर फिल्म से पहले ही साइनिंग अमाउंट मांगेंगे। थोड़ी देर में राज कपूर ने हंसते हुए कहा, ‘1 रुपया’। शैलेंद्र की बांछें खिल गईं, उन्होंने राज कपूर को गले से लगा लिया। अब बात फंस गई हिरोइन पर। शैलेंद्र को रेणु ने सुझाव दिया वहीदा रहमान का। वहीदा भी तुरंत मान गई। इसके बाद अब शैलेंद्र के साथ शंकर-जयकिशन भी जुड़ गये संगीत निर्देशन के लिए।
शुरू हुआ ‘मारे गये गुलफाम’ को सैल्यूलाइड पर उतारने का काम औऱ इसका जिम्मा मिला बासु भट्टाचार्य को। कैमरे की रील लोड करके सुब्रत मित्रा ने कमाल स्टूडियो में फिल्म को कैद करना शुरू किया। सुब्रत मित्रा ‘तीसरी कसम’ से पहले ‘पथेर पांचाली’, ‘जलसाघर’, ‘पराजितो’, ‘अपूर संसार’ जैसी फिल्मों के कैमरा मैन रहे थे।
शैलेंद्र पूरी तरह से फिल्म में डूब गये। जिस फिल्म को साल भर में पूरा होना था उसे पूरा होने में 7 साल लग गये। शैलेंद्र ने खुद की कमाई सारी दौलत और मित्रों से और बाजार से उधार लेकर लाखों रुपये इस फिल्म में झोंक दिये। फ़िल्म जब तक एडिट टेबल पर आयी शैलेंद्र लाखों के कर्ज़ से लद गए।
देनदार तगादे के लिए घर की दहलीज पर आने लगे। शैलेंद्र भारी तनाव में जी रहे थे। फिल्म की एडिटिंग चल रही ती और शैलेन्द्र को देनदारों के ताने सुनने पड़ रहे थे। वैसे तो पूरी सिनेमा इंडस्ट्री शैंलेंद्र के कलम की बहुत कद्र करती थी लेकिन किसी ने शैलेंद्र को उस कर्ज के भारी भोझ से निकालने की कोशिश नहीं की। शैलेंद्र ने लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया और शराब की आगोश में लेट गये।
सिनेमा कितना क्रूर होता है इसे शायद ही लोग जानते होंगे। जिस फिल्म ने शैलेंद्र की जान ली, उसी को सिनेमाघरों में देखकर लोग लालियां बजाते थे। लेकिन उसे देखेने के लिए शैलेंद्र नहीं थे। शराब ने उनके लीवर को खत्म कर दिया। वो गंभीररूप से बीमार हो गए। देखिये कितनी बड़ी त्रासदी है कि राज कपूर और उन जैसे कितने ही दोस्तों ने शैलेंद्र को उस तन्हाई में अकेला छोड़ दिया, जहां से वो धीरे-धीरे अपने कदम मौत की ओर बड़ा रहे थे।
अगर ये लोग चाहते तो शायद शैलेंद्र 43 साल की उम्र में यूं ही खामोश नहीं हो गये होते। फिल्म ‘तीसरी कसम’ को शैलेंद्र की मौत के बाद ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’ मिला। इसके अलावा इस फिल्म को मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कार मिला। आज भी देखिये तो लगता है कि ‘मार गये गुलफाम’ उर्फ ‘तीसरी कसम’ कोई शैलेंद्र ही बना सकता था।
इस फिल्म की कलात्मकता शैलेंद्र को एक नई ऊंचाई प्रदान करती है। वैसे भी शैलेन्द्र एक संवेदनशील और भाव को लिखने वाले गीतकार थे। उनकी संवेदनशीलता ने इस फ़िल्म को असाधारण बनाया लेकिन शैलेंद्र भी इसी को गढ़ने में खाक हो गये।
शैलेन्द्र को तीन बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। पहला साल साल 1958 में फ़िल्म ‘यहूदी’ के गीत ‘ये मेरा दीवानापन है’। दूसरा साल 1959 में फिल्म ‘अनाड़ी’ के लिए ‘सब कुछ सीखा हमने ना सिखी होशिय़ारी’ के लिए और तीसरी बार साल 1968 में फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ के गीत के लिए ‘मै गाऊं तुम सो जाओ’। शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था।
शैलेंद्र की कलम से निकले 10 सदाबहार गीत
1- आवार- आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं
2- श्री 420- रमैया वस्तावैया रमैया वस्तावैया
3- ब्रह्मचारी- दिल के झरोखे में तुझको बिठा कर
4- श्री 420- मेरा जूता है जापानी
5- गाईड- आज फिर जीने की
6- गाईड- गाता रहे मेरा दिल
7- गाईड- पिया तोसे नैना लागे रे
8- अनाड़ी- किसी की मुस्कराहटों पे
9- संगम- हर दिल जो प्यार करेगा संगम
10- संगम- दोस्त दोस्त ना रहा
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