Diwali 2021: दीवाली इस बार 4 नवंबर को मनाई जा रही है। हिंदू त्योहारों में दीवाली सबसे बड़ा त्योहार होता है। इसकी तैयारी भी बड़ी होती है। दीवाली के एक माह पहले से ही बाजारों में रौनक दिखाई देने लगती है। इस खास दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भक्त हर मुमकिन कोशिश करते हैं।
मान्यता के अनुसार भगवान राम जब लंका के राजा राक्षस रावण पर विजय पाकर 14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे तो उनके सकुशल आगमन की खुशी में प्रजा ने अपने राजा का दीप जलाकर स्वागत किया था। चारों तरफ रौशनी ही रौशनी थी तभी से दीपावली मनाई जाती है।
जोड़े में होती है भगवान की पूजा
दीवाली भगवान राम के वनवास खत्म होने की खुशी में मनाई जाती है। लेकिन पूजा माता लक्ष्मी और गणेश जी की होती है। हिंदू पुराणों में जोड़े में पूजा पति – पत्नी की होती है। वैसे तो माता लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं लेकिन उनकी पूजा मंगलमूर्ति गणेश के साथ ही होती है।
ध्यान दिया जाए तो जोड़े में ही भगवान की पूजा की जाती है जैसे श्रीराम और माता सीता, भगवान शिव और मां पार्वती। लेकिन वहीं, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा एक साथ नहीं की जाती है।
यह सवाल हम सभी के मन में आते रहता है कि आखिर क्यों माता लक्ष्मी की पूजा मंगल मूर्ति गणेश भगवान के साथ होती है। शास्त्रों की माने तो गणेश जी को लक्ष्मी जी का मानस-पुत्र माना गया है। दीपावली के शुभ अवसर पर ही पुत्र और माता का पूजन किया जाता है। यह तो सभी जानते हैं कि किसी भी कार्य को करने से पहले गणेश जी का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी की पूजा उनके मानस -पुत्र के साथ करने से माता लक्ष्मी काफी खुश होती है, जिससे अपने भक्तों को कभी धन की कमी नहीं होेने देती हैं। गणेश जी सभी के काम को शुभ करते हैं।
इस तरह करें गणेश जी का ध्यान
इसके साथ ही गणेश जी के विविध नामों का स्मरण सभी सिद्धियों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन एवं नियामक भी है। दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी जी के साथ निम्न गणेश मंत्र का जाप सर्व सिद्धि प्रदायक माना गया है।
वक्रतुंड, एकदन्त, गजवक्त्र, लंबोदर, विघ्न राजेंद्र, धूम्रवर्ण, भालचंद्र, विनायक, गणपति, एवं गजानन इत्यादि विभिन्न नामों द्वारा किया जाता है। इन सभी रूपों में गणेश जी ने देवताओं को दानवों के प्रकोप से मुक्त किया था। दानवों के अत्याचार के कारण उस समय जो अधर्म और दुराचार का राज्य स्थापित हो गया था, उसे पूर्णतया समाप्त कर न केवल देवताओं को बल्कि दैत्यों को भी अभय दान देकर उन्हें अपनी भक्ति का प्रसाद दिया और उनका भी कल्याण ही किया।
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