हिंदी के जानेमाने लेखक हैं संजीव। जिन्हें कुछ समय पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हाल ही में उनका एक नया कहानी संग्रह आया है , प्रार्थना। इस संग्रह में कुल 11 कहानियां हैं। सभी कहानियों की थीम एक दूसरे से बिल्कुल जुदा है। गांव से लेकर शहर तक की कहानियां इस संग्रह में हैं। कई कहानियां तो लेखक संजीव की विचारधारा का प्रतीक हैं। यही नहीं कहानियों के किरदार भी कमाल के हैं। लेखक की कुछ कहानियां देश के हालिया घटनाक्रम पर केंद्रित हैं। जैसे कोरोना के समय की परिस्थितियों को बताती हुई कहानी, ‘ यह दुनिया अब भी सुंदर है’। कहानी में एक पति लॉकडाउन के समय में साइकिल पर बैठा अपनी कैंसर से पीड़ित पत्नी को अस्पताल ले जाता है। कहानी पति-पत्नी के आपसी प्रेम को बयां करती है।
ऐसे ही एक कहानी है ‘हासिल’। यह कहानी रूस-यूक्रेन युद्ध पर केंद्रित है। लेखक ने इस कहानी में युद्ध की तबाही और मानवीय त्रासदी का दुख साझा किया है।‘खुली आंखें’ कहानी में एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे जमाने के लिए तो नेत्र रोग है। लेकिन उसकी सोच, बातें और नजरिया सोचने पर मजबूर कर देता है। वह एक बौद्धिक है और हालिया घटनाओं जैसे किसान आंदोलन, कोरोना, नोटबंदी और शाहीन बाग जैसी घटनाओं पर नजर रखता है और उसके मन में सवाल हैं। धर्म , जाति को न मानने वाला ये शख्स हर उस महिला से प्यार करता है जो अन्याय से लड़ती है।
‘हम न मरब मरिहें संसारा हमका मिला जियावनहारा’ कहानी में लेखक ने रामफल नाम के शख्स की कहानी कही है। यह आदमी शिक्षित नहीं है लेकिन जागरूक बहुत है। उसकी खुद की वर्ग, वर्ण और लिंग की थ्योरी है। वह गांव में दुख-सुख में सबका साथी है। वह स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के बीच लोगों का इलाज करता है। लेकिन वह अपने विचारों के चलते समाज का दुश्मन हो जाता है और मार दिया जाता है। एक कहानी है ‘रामलीला’ जो कि हिंदू मुस्लिम रिश्तों पर केंद्रित है। कैसे बरसों से सौहार्दपूर्ण ढंग से रह रहे ग्रामीण धार्मिक द्वेष के चलते दूर हो जाते हैं। इसी तरह ‘महामारी’ कहानी महामारी के समय की गांव की स्थिति को बयां करती है। कहानी ‘सौ टके की टीचर’ गांव के प्रौढ़ शिक्षा केंद्र की शिक्षिका के बारे में है।
इस कहानी संग्रह की पहली कहानी है ‘प्रार्थना’। इस कहानी में लेखक ने ऑरगन ट्रांसप्लांट के विषय को चुना है। इस कहानी में एक शख्स है जिसकी मौत के बाद उसके अलग-अलग अंगों को अलग-अलग को लोगों को ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। ये सभी लोग शख्स के परिवार के प्रति आभार जताने जुटते हैं। चूंकि शख्स की मौत ब्रेन डेड होने से होती है तो ऐसे में सवाल होता है कि अगर दिमाग ट्रांसप्लांट होता तो कैसा रहता? तभी वहां मौजूद लोगों को पता चलता है कि सोच के मामले में शख्स की बेटी भी अपने पिता जैसी है। ये कहानी विचारों के ट्रांसप्लांट की बात करती है।
कहानी ‘डेढ़ सौ सालों की तनहाई’ में लेखक ने एक ऐसी प्रवासी की कहानी कही है जिसकी जड़ें भारत में हैं। विदेश में बैठा शख्स अपनी जड़ों को कैसे देखता है। पश्चिमी की नजर से पूरब कैसा है इस कहानी को पढ़कर समझ आता है। अंग्रेजों के समय में जो लोग मजदूरी करने विदेश ले जाए गए, अब उनके वंशज अपनी मातृभूमि को कैसे देखते हैं और यहां की परिस्थितियों को किस तरह समझते हैं। कहानी बताती है कि प्रवासियों के जीवन में पीढ़ी दर पीढ़ी एक अकेलापन चला आ रहा है।
संजीव की कहानियों में जब तक आदिवासी विमर्श न हो तब तक बात अधूरी रहती है। उनकी कहानी ‘गुफा का आदमी’ इसी बारे में है। इस कहानी में लेखक ने ओडिशा के बोंडा जनजाति के लोगों के जीवन और संस्कृति के बारे में बताया है कि कैसे वहां स्त्रियां अपने से छोटे आयु के पुरुष को पति के रूप में चुनती हैं और कैसे उसे पालती हैं। जनजातीय समाज की स्त्री कितनी स्वतंत्र है यह इस कहानी से पता चलता है। मातृसत्तात्मक जनजाति की कहानी के जरिए लेखक शहरी नारीवादियों को भी आड़े हाथ लेते हैं।
सबसे अंतिम कहानी है ‘मैं चोर हूं मुझ पर थूको’। इस कहानी में एक डॉक्यूमेंट्री मेकर सिलतोड़ी करने वाले गिरोह पर फिल्म बनाता है। जिसे उसे रेलवे महकमे को सौंपनी है। यह सब एंटी वैगन ब्रेकिंग ड्राइव के लिए किया जाता है। फिल्म बनाते फिल्ममेकर उस बस्ती और उसके लोगों को भी फिल्माता है जहां अधिकतर चोरी करने वाले रहते हैं। इस कहानी में लेखक ने हमारी व्यवस्था पर तंज किया है। डायरेक्टर दो अलग-अलग दुनिया को शूट करता है। एक है मंत्री, अफसर, पुलिस की दुनिया और एक है उन लोगों की दुनिया जो सिलतोड़ने का काम करते हैं।
किताब के बारे में
लेखक-संजीव
प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन
मूल्य- 250 रुपये (पेपरबैक)
पेज संख्या- 166