कवि लीलाधर जगूड़ी का प्रेम Taken For Granted नहीं है, पढ़ें ‘जितने लोग, उतने प्रेम’ का रिव्यू

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‘सेक्स को ही प्रेम समझने वाले, तलाकशुदा प्रेम लिए घूम रहे हैं, जबकि प्रेम में प्रेम से तलाक नामुमकिन है” ये पंक्तियां कवि लीलाधर जगूड़ी की कविता ‘प्रेम और समय प्रबंधन’ से ली गई हैं। जगूड़ी हिंदी कविता को एक नई पहचान देने वाले कवि हैं। ‘प्रेम के फेरे’ में कवि लिखते हैं, ” मुझ में से निकलकर एक दिन मेरे पास आ बैठ, प्रेम सेक्स और विवाह, सबने अपनी -अपनी धौंस से मुझे तबाह कर देने की धमकी दी”। सेक्स, प्रेम और तलाक ये कुछ ऐसी चीजें हैं जो किसी भी व्यक्ति की निजता से जुड़ी होती हैं। निजी विषयों पर भी अपनी गहरी बात कहकर कवि जगूड़ी अपना असर छोड़ते हैं। इसी कविता से ही समझें तो वे प्रेम की प्रचलित मान्यता के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि प्रेम करना कोई काम निपटाने जैसा नहीं है। यानी लीलाधर का प्रेम टेकन फोर ग्रांटेड नहीं है। एक दूसरी कविता ‘प्रेम में’ लीलाधर लिखते हैं ” मीठा ज्यादा नहीं होना चाहिए प्रेम में भी, थोड़ी कड़वाहट भी होनी चाहिए।’

कवि लीलाधर कहते हैं कि प्रेम को सिर्फ स्त्री और पुरुष के दायरे तक सीमित न रखा जाए। वे प्रेम में बराबरी और निस्वार्थ होने के पक्षधर हैं। ऐसी ढेर सारी कविताएं हमें लीलाधर जगूड़ी के काव्य संग्रह ‘जितने लोग उतने प्रेम में’ पढ़ने को मिलती हैं। प्रकृति, पर्यावरण, मौसम से लेकर नारी तक इस काव्य संग्रह में कवि लीलाधर की बहुत से विषयों पर कविताएं हैं।

ऐसी ही एक कविता है इस काव्य संग्रह में ‘सार्वजनिक औरत’। इस कविता में कवि ने लिखा है, ”ईमानदारी के अकाल में सारस की तरह भटकते रह जाते हैं कवि और वेश्याएं”। कवि और वेश्या की तुलना लीलाधर की कल्पनाशक्ति के बारे में बताती है कि वे कहां-कहां से क्या-क्या चुनते हैं और कैसे कविता का बाना तैयार करते हैं। इसी कविता से एक और छू लेने वाली पंक्ति है, ‘‘कानून में धारा तो है पर पानी नहीं है”।

कवि जगूड़ी के लिए व्यक्ति अहमियत रखता है। अपनी कविता ‘एक छिपुर की डायरी से’ , में कवि लिखते हैं, ”इस तरह सब व्यक्ति एक दूसरे के व्यक्ति हैं’‘। वे खुद के लिए छिनाल शब्द का इस्तेमाल करते हैं। कवि का मानना है कि जो चारित्रिक लांछन औरत पर लगाया जाता है वह पुरुष पर भी लगाया जाए। स्त्री पुरुष के बीच के भेद को कवि जगूड़ी नहीं मानते।

इस कविता संग्रह में एक कविता जो मुझे बहुत अच्छी लगी वह है वैतरणी पर पुल। ”…जीते जी की तरह मरने के बाद भी डरो…” यहां कवि जगूड़ी धर्मांधता पर तंज कसते हैं। तंज कसते हुए कवि लिखते हैं कि ”…यहीं जैसा लुच्चापन वहां भी..”। कवि कहते हैं कि व्यवस्था हर जगह एक सी है। वे लिखते हैं , ”किसी भी यमराज से वैसी ही प्रार्थना है जैसी मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री से मरणशील जनता करती है…’‘। मृत्यु के बाद के जीवन पर लिख कवि ने ढकोसलेबाजी को खारिज किया है।

पुस्तक के बारे में

जितने लोग उतने प्रेम

कवि – लीलाधर जगूड़ी

प्रकाशक -राजकमल प्रकाशन

मूल्य- 395 हार्डकवर

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