Munawwar Rana : शेरो-शायरी की दुनिया के दिग्गज शायर मुनव्वर राना का निधन हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। 71 वर्ष की उम्र में इस मशहूर शायर के निधन से उर्दू जगत के शायरों के साथ-साथ, हिन्दी कविता जगत के लोगों में भी शोक का माहौल है। मुनव्वर के शेरों के फैन हर उम्र के लोग थे। ‘मां’ पर लिखी उनकी कविता आज भी लोगों का दिल को छू जाती हैं। “चलती फिरती हुई आंखों से अज़ां देखी है, मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है”-जैसे ही मुनव्वर अपने मुंह से बोलते थे तो कई दफा उनकी आंखें भर आती थीं। उनके मुशायरों में दर्शकों को कई बार भावुक होते देखा गया है। अपनी कविताओं में वे उर्दू शब्दों के साथ-साथ हिन्दी और अवधी भाषा के शब्दों का मिश्रण करके छंदों की रचना किया करते थे। आइए देखते हैं मुनव्वर के लोकप्रीय शेर।
-“एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे”
-“भुला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है”
-“ताज़ा ग़ज़ल ज़रूरी है महफ़िल के वास्ते
सुनता नहीं है कोई दोबारा सुनी हुई”
-“अंधेरे और उजाले की कहानी सिर्फ़ इतनी है,
जहां महबूब रहता है वहीं महताब रहता है”
-“तो अब इस गांव से सपना हमारा खत्म होता है,
फिर आंखें खोल ली जाएं कि सपना खत्म होता है”
‘मां’ पर बहुतों ने बहुत कुछ लिखा, लेकिन कहा जाता है जिस शिद्दत से मुनव्वर ने ‘मां’ के प्रति अपने प्रेम को लिखा है वैसा किसी ने नहीं लिखा। कुछ शायरों का यह मानना है कि उर्दू गजलों में माशूक़-महबूब से लेकर अदब और बग़ावत तक सब कुछ मौजूद था लेकिन ‘मां’ पर मुनव्वर जैसी कविता शायद ही किसी ने लिखी हो। यहां पढ़ें मुनव्वर द्वारा मां पर लिखी गजल-
“ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है
छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है
यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है
वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया
माँ के आँखें मूँदते ही घर अकेला हो गया
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाँहों में छुपा लेती है
गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माँएँ रोज़ आती हैं
ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से
ये हौंसला भी हमारे वतन की माँओं में है
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है
यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन
इक माँ है जो बस मेरी ख़ुशी देख के ख़ुश है
तेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फलक़
मुझको अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी
जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है
घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं
‘मुनव्वर’ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मुझे तो सच्ची यही एक बात लगती है
कि माँ के साए में रहिए तो रात लगती है”
असहिष्णुता के मामले पर लौटाया था साहित्य अकादमी पुरस्कार
बता दें कि मुनव्वर राना को उर्दू और हिन्दी में कविताओं की रचना के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और माटी रतन जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2015 में असहिष्णुता के मुद्दे पर उन्होंने अपना पुरस्कार लौटा दिया था। वहीं अगर अन्य पुरस्कारों की बात करें तो उन्हें अमीर खुसरो पुरस्कार, मीर तकी मीर पुरस्कार, गालिब पुरस्कार, डॉ. जाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।