जिंदगी के हौसले के आगे झुका पहाड़! यहां पढ़ें सिल्कयारा सुरंग से बचाए गए श्रमिकों की आपबीती

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उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिल्कयारा सुरंग में चल रहा बचाव अभियान पूरा हो गया है। सभी 41 श्रमिकों को बाहर निकाल लिया गया है। श्रमिकों ने मीडिया को बताया कि वे सुरंग के अंदर चलते फिरते थे और योग करते थे। जिससे कि उनके भीतर उम्मीद बने रहे।

श्रमिकों ने बचाव अभियान में लगे सभी लोगों की सराहना की। उनमें से एक ने कहा कि उन्हें चिंता नहीं थी क्योंकि जब सरकार विदेशों में भारतीयों को बचा सकती है, तो वे देश के भीतर ही थे। मंगलवार देर रात बचाए गए श्रमिकों के साथ अपनी टेलीफोन पर बातचीत में बिहार के एक श्रमिक सबा अहमद ने प्रधानमंत्री को बताया कि हालांकि वे कई दिनों तक सुरंग में फंसे रहे, लेकिन उन्हें कोई डर या घबराहट महसूस नहीं हुई।

अहमद ने कहा, “हम भाइयों की तरह थे, हम एक साथ थे। हम रात के खाने के बाद सुरंग में टहलते थे। मैं उन्हें सुबह की सैर और योग करने के लिए कहता था।” अहमद ने पीएम को बताया कि जिस सुरंग में वे फंसे थे, उसके 2 किमी से अधिक हिस्से में मजदूर सुबह की सैर करते थे और योग भी करते थे।

अहमद ने पीएम मोदी से कहा, “जब आप प्रधानमंत्री हैं…और दूसरे देशों से लोगों को बचाया गया, तो हम अपने देश में थे और इसलिए हमें चिंता करने की कोई बात नहीं थी।”

बचाए गए मजदूरों में से एक, झारखंड के विश्वजीत कुमार वर्मा, ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें बचा लिया जाएगा और वे बाहरी दुनिया को फिर से देखेंगे। उन्होंने कहा, ”मैं बहुत खुश और सुरक्षित हूं। फंसे हुए बाकी सभी मजदूर भी सुरक्षित हैं। अब हम अस्पताल में हैं। मलबा सुरंग की शुरुआत में गिरा था और मैं दूसरी तरफ था। लगभग दो और एक की सड़क आधा किलोमीटर खाली था। हम अपना समय बिताने के लिए सुरंग के अंदर घूमते थे। शुरुआत में थोड़ा डर था, लेकिन जैसे-जैसे हमें भोजन, पानी मिलता गया और अपने परिवारों से बात होती गई, हमारा मनोबल बढ़ता गया। हमें पूरा विश्वास था कि बहुत जल्द हम बाहरी दुनिया देखेंगे।”

विश्वजीत के ही एक और साथी, सुबोध कुमार वर्मा ने कहा कि सुरंग के अंदर के श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए ‘दृढ़ संकल्प’ था।उन्होंने बताया, “मैं झारखंड का रहने वाला हूं और सुरंग के अंदर कंक्रीट पंप चलाता हूं। सुरंग का एक हिस्सा अचानक ढह जाने से मजदूरों में डर का माहौल बन गया। डर के साये में 18-24 घंटे गुजर गए और उसके बाद जब हम खाना-पीना मिलने लगा, हमें कुछ राहत मिली। प्रशासन ने ऑक्सीजन की भी व्यवस्था की थी। हमें पूरा भरोसा था कि प्रशासन हमें बाहर निकाल लेगा।” सुबोध वर्मा ने आगे कहा कि वह अपने परिवार से मिलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

सुरंग में फंसे अखिलेश सिंह ने बताया, ”सुरंग मेरे सामने ढह गई और एक तेज़ आवाज़ हुई जिसके बाद मेरे कान सुन्न हो गए। हमारा 18 घंटे तक बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं था। हमारे प्रशिक्षण के अनुसार, हमने फंसने के तुरंत बाद पानी का पाइप खोल दिया। जब पानी गिरने लगा, तो बाहर के लोगों ने समझा कि लोग फंस गए हैं और हमें ऑक्सीजन भेजना शुरू कर दिया ।” सिंह ने बताया कि वे घर जाकर कम से कम 1-2 महीने आराम करेंगे।

उन्होंने कहा, “स्वास्थ्य जांच होने के बाद मैं घर जाने की सोच रहा हूं। फिर आगे क्या करना है, यह तय करने से पहले मैं 1-2 महीने का ब्रेक लूंगा।” अखिलेश सिंह ने कहा कि यह एक पर्यावरणीय आपदा थी और किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।

आपको बता दें कि रैट-होल माइनिंग करने वाले फ़िरोज़ क़ुरैशी और मोनू कुमार सुरंग से बचाए गए 41 मजदूरों से मिलने वाले पहले व्यक्ति थे। कुरैशी ने बताया, “जब हम मलबे के आखिरी हिस्से तक पहुंचे तो वे (मजदूर) हमें सुन सकते थे। मलबा हटाने के तुरंत बाद, हम दूसरी तरफ उतर गए।” कुरैशी ने कहा, ”मजदूरों ने मुझे धन्यवाद दिया और गले लगाया। उन्होंने मुझे अपने कंधों पर भी उठा लिया।”

मोनू कुमार ने कहा, “उन्होंने (मजदूरों ने) मुझे बादाम दिए और मेरा नाम पूछा। जल्द ही, हमारे अन्य सहकर्मी भी हमारे साथ जुड़ गए और हम लगभग आधे घंटे तक वहां रहे।”

उन्होंने कहा, “हमें बहुत खुशी है कि हम इस ऐतिहासिक ऑपरेशन का हिस्सा थे।”

मालूम हो कि 41 श्रमिकों में से 15 झारखंड से, दो उत्तराखंड से, पांच बिहार से, तीन पश्चिम बंगाल से, आठ उत्तर प्रदेश से, पांच ओडिशा से, दो असम से और एक हिमाचल प्रदेश से थे।

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