समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। कोर्ट ने मामले में विवाह की मान्यता देने से इंकार कर दिया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कुछ ऐसी बातें कहीं जो कि सात फेरों से कम पवित्र नहीं हैं।
- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आज फैसला सुनाते हुए कहा कि समलैंगिकता शहरी या संभ्रांत नहीं है। समलैंगिकता कोई नया विषय नहीं है। लोग समलैंगिक हो सकते हैं, भले ही वे गांव से हों या शहर से.. न केवल एक अंग्रेजी बोलने वाला पुरुष समलैंगिक होने का दावा कर सकता है.. बल्कि ग्रामीण इलाके में एक खेत में काम करने वाली महिला भी हो सकती है।
- CJI ने कहा कि विवाह की संस्था बदल गई है जो संस्था की विशेषता है। सती और विधवा पुनर्विवाह से लेकर अंतरधार्मिक विवाह तक विवाह का रूप बदल गया है। शादी बदल गई है और यह एक अटल सत्य है और ऐसे कई बदलाव संसद के जरिए आए हैं। कई वर्ग इन बदलावों के विरोध में रहे लेकिन फिर भी इसमें बदलाव आया है इसलिए विवाह स्थिर या अपरिवर्तनीय संस्था नहीं है।
- अदालत ने कहा कि यदि राज्य पर सकारात्मक दायित्व लागू नहीं किए गए तो संविधान में अधिकार एक मृत अक्षर होगा। अनुच्छेद 245 और 246 के तहत संसद ने विवाह संस्था में बदलाव लाने वाले कानून बनाए हैं। आगे भी ऐसा हो सकता है।
- सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर हम विशेष विवाह अधिनियम की धारा 4 को असंवैधानिक मानते हैं तो कानून का प्रगतिशील उद्देश्य खो जाएगा। यदि इसे अमान्य करार दिया जाता है तो यह भारत को सामाजिक असमानता और धार्मिक असहिष्णुता वाले युग में ले जाएगा।
- कोर्ट ने कहा कि अंतरंग संबंध के अधिकार को संविधान के कई अनुच्छेदों से जोड़ा गया है। जीवन साथी चुनना जीवन का एक अभिन्न अंग है और यही उनकी अपनी पहचान को परिभाषित करता है। साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की जड़ में है।
- CJI ने कहा कि समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
- बच्चे गोद लेने पर अदालत ने कहा कि कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है। यह एक रूढ़ि है कि केवल स्त्री-पुरुष ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं।