भारतीय नर्स निमिषा प्रिया, जो इस वक्त यमन की जेल में बंद हैं, को फांसी की सजा से बचाने की कोशिशें तेज हो गई हैं। केरल की रहने वाली निमिषा पर हत्या का आरोप साबित हो चुका है और 16 जुलाई को उन्हें फांसी दी जानी है। इस सजा के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। ‘सेव निमिषा प्रिया एक्शन काउंसिल’ नाम की संस्था ने केंद्र सरकार से मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सोमवार, 14 जुलाई को सुनवाई तय की है।
याचिकाकर्ता ने क्या तर्क दिए?
याचिका दायर करने वाली संस्था की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत ने यह मामला जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ के समक्ष रखा। उन्होंने बताया कि यमन के कानून में यह व्यवस्था है कि यदि मृतक के परिजन समझौता कर लें और उन्हें मुआवजा मिल जाए, तो वे दोषी को क्षमा कर सकते हैं। ऐसे में केंद्र सरकार की मध्यस्थता से इस मामले में हल निकाला जा सकता है।
किस मामले में मिली है फांसी?
निमिषा प्रिया को 2017 में यमन के नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या का दोषी ठहराया गया था। अदालत ने 2020 में उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। संस्था का कहना है कि 37 वर्षीय निमिषा खुद भी पीड़िता रही हैं। आरोप है कि महदी ने काफी समय से उनका पासपोर्ट जब्त कर रखा था और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता रहा।
हत्या का इरादा नहीं था – याचिकाकर्ता का दावा
याचिका में कहा गया है कि जिस समय निमिषा का पासपोर्ट अवैध रूप से महदी के कब्जे में था, उन्होंने कानूनी मदद पाने की कोशिश भी की, मगर कामयाब नहीं हो पाईं। इसी दौरान पासपोर्ट वापस पाने के लिए उन्होंने महदी को नींद का इंजेक्शन दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। याचिकाकर्ता का कहना है कि निमिषा का उसे मारने का कोई इरादा नहीं था, यह एक दुर्घटनावश हुई मौत थी।
अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट की 14 जुलाई को होने वाली सुनवाई पर हैं, जिससे यह तय होगा कि भारत सरकार इस मामले में कितना हस्तक्षेप कर सकती है और क्या निमिषा प्रिया की जिंदगी बचाई जा सकेगी।