परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी में अब भारत की दावेदारी मजबूत नजर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक अब तक भारत का विरोध करते आ रहे कुछ देश अब एनएसजी सदस्यता के लिए भारत का समर्थन कर सकते हैं। जर्मनी के वरिष्ठ राजनयिक सूत्रों के मुताबिक एनएसजी परामर्श समूह की बैठक जारी है और इस बैठक में जर्मनी ने भारत की एनएसजी में सदस्यता के लिए अपना समर्थन दिया है। हालांकि चीन अभी भी भारत की एनएसजी सदस्यता के बीच में अडंगा अटकाए हुए है। भारत लगातार कूटनीतिक प्रयासों के जरिए अन्य देशों समेत चीन को भी मनाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि भारत अभी तक चीन को मनाने में सफल नहीं हो पाया है लेकिन एनएसजी के 48 देशों के समूह में अन्य देश धीरे-धीरे भारत के समर्थन में आते दिख रहे हैं।
पीएम मोदी दो बार करेंगे जर्मनी यात्रा
एनएसजी की सदस्यता के संबंध में पिछले दिनों भारत के विदेश सचिव एस जयशंकर ने जर्मनी के विदेश मंत्री मार्कस ऐडरर से मुलाकात की थी। इस दौरान दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को और बेहतर करने के साथ-साथ मई में बर्लिन में होने वाले इंटर गवर्नमेंटल कमिशन की बैठक के बारे में अहम मुद्दों पर भी चर्चा की गई थी। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस वर्ष दो बार जर्मनी की यात्रा करेंगे। पहले वह मई में होने वाले इंटर गवर्नमेंटल कमिशन की बैठक में जाएंगे वहीं दूसरी बार वह जुलाई में G-20 सम्मेलन में भाग लेने के लिए जाएंगे। एक अंग्रेजी अखबार के ख़बर के मुताबिक जर्मन राजनयिक ने बताया है कि भारत वैश्र्विक स्तर पर हमारा अहम रणनीतिक साझेदार है। इसके अलावा अमेरिका पहले की तरह अब भी एनएसजी सदस्यता में भारत के साथ ही दिख रहा है।
एनएसजी में चीन है सबसे बड़ी चिंता
इस मामले में भारत को सबसे बड़ी चिंता चीन से है क्योंकि चीन भारत को समर्थन नहीं कर रहा। हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में चीन के सरकारी अधिकारी ने कहा कि भारत का परमाणु रिकॉर्ड पाकिस्तान के मुकाबले बेहतर है पर 48 देशों के NSG ग्रुप में नए देश को शामिल करते वक्त किसी तरह का भेदभाव नहीं कर किया जाना चाहिए। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य जियांग्वू ने दिल्ली में आयोजित 19वें एशियाई सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि एनएसजी की सदस्यता के लिए दोनों देशों की स्थिति एक समान है और दोनों को ही इस क्षेत्र में बराबर का मौका मिलना चाहिए ताकि वे वैश्विक स्तर पर परमाणु क्षेत्र से जुड़े आर्थिक और तकनीकि फैसले ले सकें।
चीन क्यों नहीं करता भारत का समर्थन
दरअसल, चीन एक एनपीटी मेंबर है और वो नॉन-एनपीटी मेंबर्स को इस समूह में शामिल करने के खिलाफ है। चीन का कहना है कि एनपीटी पर हस्ताक्षर किए बगैर किसी भी देश को एनएसजी की सदस्यता नहीं मिले। भारत ने एनपीटी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है इस वजह से चीन भारत को एनएसजी में शामिल नहीं करना चाहता और यही एनएसजी में भारत के शामिल ना होने पाने की सबसे बड़ी वजह है।
क्या है एनपीटी
एनपीटी यानी नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी जिसे हिंदी में परमाणु अप्रसार संधि के नाम से जाना जाता है। इस संधि का उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियार के प्रसार को रोकना और परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। इस समझौते पर 1 जुलाई 1968 से अब तक कुल 190 देश हस्ताक्षर कर चुके है। इन देशों में से 5 देशों के पास आण्विक हथियार हैं, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन शामिल हैं। इनके अलावा विश्व में 4 देश ही ऐसे है जिनके पास आण्विक हथियार हैं लेकिन उन्होंने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
एनपीटी के तहत भारत नहीं है परमाणु संपन्न देश
इस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है जिसने 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण कर लिया हो। भारत ने पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया था। इसी वजह से एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। हालांकि उत्तर कोरिया ने इस संधि पर हस्ताक्षर किया था लेकिन संधि का उल्लंघन करने पर उसे फिर से बाहर कर दिया गया।
चीन के पास कैसे है पाकिस्तान को साथ देने का मौका
फिलहाल, एनपीटी पर हस्ताक्षर ना करने वाले 4 परमाणु युक्त देशों में भारत, पाकिस्तान, इजरायल और उत्तर कोरिया है। ऐसे में चीन के पास पाकिस्तान को साथ देने का मौका बन जाता है कि अगर वो भारत को बगैर एनपीटी हस्ताक्षर के समर्थन करता है तो पाकिस्तान को क्यों ना करें? चीन पहले ही कह चुका कि उसके लिए भारत और पाकिस्तान दोनों बराबर है। खैर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के इस खेल में कौन किसका, किन परिस्थियों में समर्थन करेगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन फ़िलहाल जर्मनी भारत के साथ खड़ा हो गया है।