भारत में भगोड़ा अपराधी घोषित किये जा चुके उद्योगपति विजय माल्या के ब्रिटेन से प्रत्यर्पण के भारत के आग्रह को सत्यापित किया है। इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए ब्रिटेन सरकार ने इसे एक जिला न्यायाधीश के पास भेज दिया है । विजय माल्या 2016 में गिरफ़्तारी से बचने के लिए ब्रिटेन भाग गए थे। जिसके बाद से सरकार लगातार उन्हें भारत लाने के प्रयासों में जुटी हुई है। विजय माल्या पर देश के 17 बैंकों का नौ हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बकाया है।

ब्रिटेन से आई ख़बरों के बारे में बताते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा कि ब्रिटिश गृह विभाग ने 21 फरवरी को जानकारी दी है कि माल्या के प्रत्यर्पण के लिए भारत के अनुरोध को उनके मंत्री ने सत्यापित किया है। जिसके बाद अब वारंट जारी करने की प्रक्रिया पर जिला न्यायाधीश द्वारा विचार के लिए वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत भेजा गया है। उन्होंने कहा भारत और ब्रिटेन के बीच प्रत्यर्पण संधि के अनुसार माल्या के संबंध में औपचारिक प्रत्यर्पण अनुरोध आठ फरवरी को ब्रिटिश उच्चायोग को सौंपा गया था। अनुरोध सौंपते हुए भारत ने कहा था कि उसका माल्या के खिलाफ वैध मामला है। भारत ने कहा कि अगर प्रत्यर्पण अनुरोध को स्वीकार किया जाता है तो यह हमारी चिंताओं के प्रति ब्रिटेन की संवेदनशीलता को दिखाएगा।

भारत की इस वैध मांग के जवाब में साकारात्मक प्रतिक्रिया देते हुए ब्रिटेन ने यह कारवाई की है। गौरतलब है कि वहां के कानून के मुताबिक प्रत्यर्पण प्रक्रिया में न्यायाधीश द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी करने के अलावा भी कई पेंच होते हैं। इस प्रक्रिया में सरकार की हाँ के बाद वारंट जारी होने पर व्यक्ति को गिरफ्तार करके शुरुआती सुनवाई के लिए अदालत में पेश किया जाता है। इसके बाद अंतिम फैसले से पहले प्रत्यर्पण पर सुनवाई होती है। आरोपी व्यक्ति को किसी भी फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील करने का भी अधिकार होता है।

गौरतलब है कि 17 बैंकों के संघ ने माल्य से 9.081 करोड़ रुपये की बकाया वसूली के लिए जुलाई 2013 में अदालत में याचिका दायर किया था। यह कर्ज माल्या की डूब चुकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस को दिया गया था। बैंकों ने कोर्ट में याचिका दायर करने से पहले माल्या से कुल 9,081 करोड़ की बकाया राशि की बदले  6,868 करोड़ रुपये लौटा कर मामला सुलझाने का प्रस्ताव दिया था। हालांकि माल्या नहीं माने और देश छोड़ कर चले गए। इसके बाद सरकार ने राज्यसभा सदस्यता वापस लेने के साथ उन्हें भगोड़ा घोषित किया था।

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