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लेखक भालचंद्र नेमाड़े का अस्तित्ववादी चिंतन है ‘झूल’, ‘होने’ और ‘नहीं...
''इस घनघोर सृष्टि तत्व के एक अंग के रूप में हमारा अस्तित्व है। ….. मैं अनादि बेचैन हूं। …. इस संकुचित , खंडित समाज...
‘जरीला’ में दुनिया के साथ तालमेल बैठाते हुए आंतरिक विद्रोह को...
'जरीला' मराठी लेखक भालचंद्र नेमाड़े के चांगदेव चतुष्टय की तीसरी कड़ी है। शृंखला के इस तीसरे हिस्से में नायक चांगदेव अपने अस्तित्व की खोज...
Book Review:’हूल’ में अपने मूल्यों को बचाने की कवायद करता दिखता...
मराठी लेखक भालचंद्र नेमाड़े का उपन्यास 'हूल' उनके चांगदेव चतुष्टय की दूसरी कड़ी है। इसमें नायक चांगदेव पाटिल एक छोटी सी जगह में जाकर...
‘बिढार’ में आदर्शवाद की निरर्थकता और Counter Culture की नाकामी बताते...
आमतौर पर जब भी आप कोई उपन्यास कहानी या ऐसी ही कोई गद्य रचना पढ़ते हैं तो उसमें लेखक बीच-बीच में बहुत ही गहरी...