देश में कानून का राज है, देश का शासन संविधान से चलता है। लेकिन इसे चुनौती देने की साजिशें रची जा रहीं हैं। देश के मुसलमानों को शरिया अदालतों के जरिये इंसाफ दिलाने की कवायद की जा रही है। ये प्लान रचा है खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा नुमाइंदा करार देने वाले एआईएमपीएलबी ने। बोर्ड की कार्यकारिणी के वरिष्ठ सदस्य और उत्तर प्रदेश के पूर्व अपर महाधिवक्ता जफरयाब जिलानी के मुताबिक आगामी 15 जुलाई को होने वाली एक अहम बैठक में वकीलों, न्यायाधीशों और आम लोगों को शरीयत कानून के फायदों के बारे में बताया जाएगा। बैठक में बाबरी मस्जिद के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट में जो मुकदमे चल रहे हैं, उनकी प्रगति पर गौर किया जाएगा।

क्या AIMPLB को अदालत पर भरोसा नहीं ?

एआईएमपीएलबी का प्लान हर जिले में शरीयत कोर्ट का गठन करने की है। जाहिर है कि, ऐसा करना कानून के राज को खुली चुनौती देना है। जफरयाब जिलानी ने लगे हाथों काजी की अदालत के फायदे भी गिना डाले। ऐसे में सवाल यही है कि, क्या AIMPLB को देश की अदालत पर भरोसा नहीं है ?

कानून के राज में शरीया अदालत का दांव क्यों?

मुसलमानों को शरिया अदालतों के जरिये इंसाफ दिलाने की कवायद के पीछे एआईएमपीएलबी के अपने मंसूबे हैं। लेकिन, देश में देश में कानून का राज है। और संविधान के राज में शरिया अदालत की कल्पना ही नहीं की जा सकती। केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री पी.पी चौधरी शरिया अदालत को पूरी तरह खारिज करते हुए इसे गैरसंवैधानिक करार दिया।

भारत इस्लामिक देश नहीं है

बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने एआईएमपीएलबी को करारा जवाब दिया। कहा ‘आप धार्मिक मुद्दों पर बात कर सकते हैं, अदालत देश को एक रखती हैं। शरिया कोर्ट के लिए यहां कोई जगह नहीं है, चाहे वह गांव हो या शहर। अदालतें कानून के अनुसार काम करेंगी। भारत इस्लामिक देश नहीं है।’

शिया नेता वसीम रिजवी, मौलाना सैफ अब्बास ने किया खारिज

जफरयाब की दलील है कि, बदलते वक्त में इसकी जरूरत महसूस की जा रही है कि हर जिले में शरीयत अदालतें हों, ताकि मुस्लिम लोग अपने मसलों को अन्य अदालतों में ले जाने के बजाय दारुल-कजा में सुलझाएं। इस सोच को शिया नेता वसीम रिजवी ने पूरी तरह से नाजायज करार दिया है। शिया धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास ने तो इसके औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।

वजूद के लिये शरीयत का इस्तेमाल कर रहा AIMPLB’

मुस्लिम महिला फाउंडेशन की अध्यक्ष नाजनीन अंसारी पर्सनल लॉ बोर्ड पर अपने फायदे के लिए शरीयत के इस्तेमाल का आरोप लगाती रहीं हैं। वो कई मौकों पर कह चुकी हैं कि, हर बार ऐसा क्यों होता है कि जब महिलाओं की स्वतंत्रता की बात आती है तो शरीयत का हवाला दिया जाता है? ऐसे में एआईएमपीएलबी का ये कदम भी गंभीर विवादों के घेरे में है।

तीन तलाक बिल के समर्थन और मंदिर मुद्दे से भय !

खासकर, तीन तलाक पर मोदी सरकार के बढ़ते कदमों को मुस्लिम महिलाओं से मिल रहे बड़े समर्थन से एआईएमपीएलबी परेशान है। आजादी के बाद पहली बार किसी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने की बात कही तो खुद को मुसलमानों का नुमाइंदा बताने वाले एआईएमपीएलबी पसीने-पसीने हो गया। पर्सनल लॉ में दख़लंदाजी बर्दाश्त नहीं होने की बात कहकर मोदी सरकार को चेतावनी दी। लेकिन, संविधान की ताकत के आगे झुकते हुए तीन तलाक को दबी जुबान में गलत ठहराया। वहीं मंदिर मुद्दे को लेकर भी ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की पेशानी पर बल पड़ गए हैं। ऐसे में उसकी शरई अदालतों का प्लान सियासी ही ज्यादा लगता है। वैसे भी भारत में लोकतंत्र और कानून का राज है। जो इसकी अवमानना करेगा उससे निपटने के ठोस कानूनी उपाय भी मौजूद हैं।