भारत के संविधान के तहत उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे ऊंचा संवैधानिक पद है, जो राज्यसभा के सभापति (चेयरमैन) के रूप में भी कार्य करता है। अगर विपक्ष या संसद के कुछ सदस्य उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाना चाहते हैं, तो इसके लिए एक संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है। यह प्रक्रिया जटिल और स्पष्ट रूप से निर्धारित है।
उपराष्ट्रपति को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया
संविधान का प्रावधान:
उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(b) में किया गया है। इसके तहत, उपराष्ट्रपति को उनके पद से हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों द्वारा एक प्रस्ताव पारित करना आवश्यक है।
प्रस्ताव का नोटिस:
उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव लाने के लिए संसद के किसी भी सदन (राज्यसभा या लोकसभा) के सदस्यों द्वारा एक नोटिस दिया जाता है। इस नोटिस पर सदन के कम से कम 14 दिन पहले हस्ताक्षर होना चाहिए।
समर्थन की आवश्यकता:
नोटिस को मान्यता देने के लिए प्रस्ताव पर राज्यसभा के कुल सदस्यों का कम से कम एक-चौथाई समर्थन होना चाहिए।
संसद में चर्चा और मतदान:
- प्रस्ताव को सदन में पेश किया जाता है और इस पर विस्तृत चर्चा होती है।
- इसके बाद सदन में मतदान किया जाता है।
- उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए यह आवश्यक है कि प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत (Special Majority) से पारित किया जाए।
- विशेष बहुमत का अर्थ है कि सदन के कुल सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में वोट करें।
राष्ट्रपति की मंजूरी:
संसद द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद उपराष्ट्रपति का पद समाप्त हो जाता है।
क्या विपक्ष सफल हो सकता है?
- विपक्ष के लिए यह प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि:
- संसद में उपराष्ट्रपति को हटाने के लिए विपक्ष के पास पर्याप्त संख्या में सदस्य होने चाहिए।
- दोनों सदनों में विशेष बहुमत हासिल करना आसान नहीं है, खासकर जब सत्ताधारी दल के पास बहुमत हो।
- विपक्ष को अन्य दलों और निर्दलीय सांसदों का भी समर्थन जुटाना होगा।
उपराष्ट्रपति के हटाने के लिए अब तक की घटनाएं
भारतीय इतिहास में अब तक किसी उपराष्ट्रपति को पद से नहीं हटाया गया है। यह प्रक्रिया इतनी जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील है कि इसे अमल में लाना बेहद कठिन साबित होता है।