MAHA KUMBH 2025: क्या हैं नागा साधुओं के अखाड़ों के दायित्व?

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By : Rajeev Sharma

Edited By: Umesh Chandra

MAHA KUMBH 2025: नागा साधुओं के अखाड़ों के दायित्व भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, और इनका उद्देश्य न केवल साधुओं की साधना और तपस्या का मार्गदर्शन करना है, बल्कि समाज में शांति, सद्भाव और धर्म की रक्षा भी करना है। आज हम इन दायित्वों के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिनका पालन करके ये साधु समाज में आदर्श स्थापित करते हैं।

धर्म का पालन और रक्षा: नागा साधुओं का प्रमुख दायित्व

आइए, शुरुआत करते हैं इन श्लोकों से जो नागा साधुओं के मुख्य दायित्वों को स्पष्ट करते हैं:

“धर्मेण जीवनं शुद्धं, धर्मेण सदा विवर्धते।

धर्मेण युक्तः साधुः सदा, धर्मेण समृद्धिम् आगच्छेत्॥”

और

“साधुः धर्मेण नित्यं युक्तः, शास्त्रों परिपालितं तपस्वी।

धर्मेण संगतं यः साधु, शान्तिम् प्राप्नोति साधयेत्॥”

यानि साधुओं का सबसे बड़ा दायित्व धर्म का पालन और उसकी रक्षा करना है।

अभी तक अखाड़ों के इतिहास के बारे में जाना, अब जानते हैं कि इन अखाडों के दायित्व क्या होतें हैं-

नागा साधुओं के अखाड़ों के दायित्व भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन दायित्वों का उद्देश्य साधुओं की तपस्या, समाज में उनका स्थान, और अनुशासन बनाए रखना होता है। विभिन्न सनातन धर्मग्रंथों में दिए गए सिद्धांतों के अनुसार नागा साधुओं के विभिन्न दायित्वों का विवेचन किया गया है, जिनमें उनके आचार, कर्तव्य और आंतरिक अनुशासन की भूमिका की व्याख्या की गई है। नागाओं का पहला दायित्व धर्मपालन है। यह दायित्व मनुस्मृति के सिदधांत-

“धर्मो रक्षति रक्षित: शान्तं धर्मं न त्यजेत् कदाचित्।

साधुशास्त्रविहीनं कर्म धर्मेण न लभ्यते॥”

पर आधारित है। इसका तात्पर्य है कि नागा साधु को जीवनभर धर्म का पालन करना चाहिए, क्योंकि धर्म उनका मार्गदर्शक है। धर्म के पालन से ही साधु जीवन में शांति और सच्चाई की स्थापना कर सकते हैं। धर्म के बिना कोई भी कर्म सफल नहीं हो सकता, इसीलिए साधु को अपने कर्तव्यों में धर्म की प्राथमिकता देनी चाहिए। साधु को अपने जीवन में कभी भी धर्म से विमुख नहीं होना चाहिए। उनके प्रत्येक कार्य में धर्म का पालन होना चाहिए।

धर्म की रक्षा नागा साधुओं का सबसे बड़ा दायित्व है। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य धर्म के पालन और उसकी रक्षा करना है। यह दायित्व न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए, बल्कि समाज और संस्कृति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनु स्मृति में लिखा है- “धर्मेण जीवनमुक्तं, धर्मेण सुखमायुषा। धर्मेण विहिता सर्वा, धर्मेण प्रपद्यते॥”

अर्थात् कि धर्म ही जीवन का आधार है और उसके बिना जीवन अधूरा है। नागा साधु धर्म का पालन करके न केवल अपने जीवन को संपूर्ण बनाते हैं, बल्कि समाज और संस्कृति की रक्षा भी करते हैं। साधु का यह दायित्व है कि वह धर्म के पालन द्वारा समाज में संतुलन और शांति बनाए रखें। धर्म का पालन करने से ही मानव जीवन में सुख, समृद्धि और सम्मान का मार्ग प्रशस्त होता है। साधु का जीवन और साधना धर्म के नियमों के अनुसार ही पूरी तरह से फलित होती है।

धर्म का पालन और संरक्षण नागा साधुओं का दूसरा बड़ा दायित्व हैः गीता में कहा गया है, “धर्मेण तपसा शुद्धं, धर्मेण विवर्धयेत्। धर्मेण सदा सुखं याति, धर्मो रक्षति रक्षितम्॥”

अखाड़ों में नागाओं को प्रशिक्षण के दौरान बताया जाता है कि धर्म के द्वारा ही जीवन को शुद्ध किया जाता साधु को धर्म का पालन हमेशा करना चाहिए, क्योंकि यह न केवल उनके आत्मिक उन्नति के लिए जरूरी है, बल्कि यह समाज और संस्कृति की रक्षा भी करता है। जब कोई व्यक्ति या समुदाय धर्म के मार्ग पर चलता है, तो वे सुख और शांति को प्राप्त करते हैं। साधु का जीवन धर्म के प्रति प्रतिबद्धता के साथ गुजरता है, और यह समाज में शांति और न्याय की स्थापना करता है।

धर्म की रक्षा में संघर्ष और बलिदान

धर्म की रक्षा के लिए बलिदान साधु सदैव तत्पर रहते हैं-

“धर्म कीर्ति रक्षिता सदा, धर्मोऽराध्यः सदा भजेत्।

साधु धर्मेण जीवनं, धर्मेण विश्वकर्मणा॥”

रामायण में कहा गया है कि धर्म की रक्षा के लिए साधु को किसी भी प्रकार का बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह श्लोक इस बात को रेखांकित करता है कि साधु का सबसे बड़ा कर्तव्य धर्म की रक्षा है, और इसके लिए उन्हें कोई भी आहुति देने में संकोच नहीं करना चाहिए। धर्म के पालन से न केवल साधु की आत्मिक उन्नति होती है, बल्कि वह समाज में भी न्याय और शांति की स्थापना करता है। साधु का जीवन हमेशा धर्म की रक्षा के लिए समर्पित रहता है, और यही उनका सबसे बड़ा दायित्व है।

धर्म के लिए निस्वार्थ संघर्ष करना नागा साधु का दायित्व है- महाभारत में कहा गया है कि “धर्मेण विजयते सर्वं, धर्मेण विश्वं समृद्धिम्। धर्मोऽराध्यः सर्वात्मा, धर्मेण संप्राप्तिम्॥”

अर्थात्– धर्म के मार्ग पर चलकर ही सभी प्रकार की विजय प्राप्त की जा सकती है। साधु को यह समझना चाहिए कि धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करना भी उनका कर्तव्य है। धर्म ही समाज को सही दिशा में मार्गदर्शन करता है और इसे संरक्षित करने के लिए साधु को अपने जीवन को तप और संयम से जोड़ना होता है। यह श्लोक इस बात पर बल देता है कि केवल धर्म का पालन करके ही साधु अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और समाज को सही मार्ग पर ले जा सकते हैं।

तपस्या और अनुशासन का महत्व

यूं तो नागा साधुओं के अखाड़ों के कुछ नियम अलग हैं, किंतु अधिकांशतः नियम एक जैसे ही हैं। नागा साधुओं की अखाड़ा परिपद का यह विधान है कि नियमों का पालन हर स्थिति में किया जाए-

गीता के श्लोक – “न नियमं त्यजेत् साधुः, कर्मेण साधुं बध्नाति च। नित्यं संयमयुक्तं च धर्मेण युक्तं तप:॥” के अनुसार ही हर नागा साधु को को हमेशा नियमों का पालन करना चाहिए, क्योंकि यह उसके तप और साधना का हिस्सा है। साधु को अपने शरीर, मन, और आत्मा पर नियंत्रण रखना चाहिए, जो कि योग और संयम के माध्यम से संभव है। नियमों के पालन से साधु अपनी साधना में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को संतुलित रख सकते हैं। साधु निरंतर तप और नियमों का पालन करके ही वे अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं।

नागा साधुओं से अपेक्षा रहती है कि वो हमेशा सदगुणों का पालन करेंगे- रामायण मे कहा गया है कि “साधुर्व्रतस्य पथं यथा, शीलसम्पन्नो यः साधुं व्रजन्ति, कर्मणा तपसा च यः श्रेष्ठं धर्मेण युक्तं प्रवर्तते॥”

एक साधु को सद्गुणों का पालन करना चाहिए, ताकि वह अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सके। शील, संयम, और तपस्या ये वे गुण हैं जो साधु को जीवन में उच्च स्थान दिलाते हैं। साधु को अपने आचरण में इन गुणों का पालन करना चाहिए, ताकि वह समाज में आदर्श प्रस्तुत कर सके। साधु का जीवन केवल आंतरिक साधना नहीं, बल्कि समाज के लिए भी एक आदर्श होना चाहिए।

गुरु और शिष्य परंपरा का निर्वहन

गुरु का सम्मान नागा साधुओं का गहना है। योग वशिष्ठ में कहा गया है कि “गुरुं शिष्यं च सम्यक् पश्येः, गुरुशिष्यं च यत्र, गुरुः शिष्यस्य पथदर्शकः, सदा धर्मपदं प्रदर्शयेत्॥”

साधु के जीवन में गुरु का बहुत बड़ा स्थान है, क्योंकि गुरु ही शिष्य को सही मार्ग दिखाता है। शिष्य को गुरु का सम्मान करना चाहिए और गुरु के आदेशों का पालन करना चाहिए। गुरु का मार्गदर्शन साधु के जीवन को सही दिशा प्रदान करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु के बिना साधना अधूरी होती है, इसलिये साधु को गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान रखना चाहिए।

समाज के प्रति जिम्मेदारी

नागा साधुओं ने सनातन की रक्षा के लिए शस्त्र उठाए हैं। नागा साधु सनातन श्रद्धालुओं के आदर्श हैं। नागाओं का सम्मान भारतीय जनमानस में अद्वितीय है। इसलिए नागा साधुओं को आदर्श की इस उच्च श्रेणी को बरकरार रखना ही दायित्व है- महाभारत में निर्देश दिए गए हैं- “साधुः समाजे सदा यशस्वी, धर्मेण सह जीवति। समाजे जीवनोद्धारकं साधुं धर्मनिष्ठं प्रकटयेत्॥”

अर्थात् – साधु का जीवन समाज के लिए एक आदर्श होना चाहिए। समाज में शांति, सत्य, और धर्म का पालन करके साधु समाज को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। जब साधु अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होते हैं। साधु को यह का जीवन केवल आत्म-उन्नति के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी होना चाहिए।

स्वच्छता और मानसिक शुद्धता पर जोर

नागाओं का दायित्व स्वच्छता और तपस्या भी है- यह स्वच्छता शारीरिक से अधिक मानसिक ज्यादा जरूरी है-

पुराणों में कहा गया है, “तपसा पश्यति शुद्धं, स्वच्छे कर्म कर्तव्ये॥”

नागाओं को अखाड़ों में सिखाया जाता है कि साधु जीवन में स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक शुद्धता भी जरूरी है। तपस्या से साधु अपने आत्मा को शुद्ध करते हैं और जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति करते हैं। साधु को अपने शरीर और मन को शुद्ध रखना चाहिए, ताकि वे अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें।

त्याग और समर्पण

नागा साधु त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति होते हैं- गीता में कहा गया है कि “त्यागेने हि महानं पुण्यं प्राप्तमृषि यत्नतः, साधुजन्यं परं त्यागी, परमेश्वरं प्रपद्यते॥”

अर्थात् साधु का जीवन त्याग और समर्पण से भरा होता है, और यह साधु की आत्मिक उन्नति का एक महत्वपूर्ण भाग है। साधु को अपना अहंकार और सांसारिक इच्छाओं को त्यागकर परमात्मा की ओर समर्पित होना चाहिए। त्याग के द्वारा ही साधु परमात्मा के निकट पहुंचते हैं और आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होते हैं।

इसके अलावा यह भी कहा गया है कि “साधुः समाजे कार्यकर्त्री, कर्मयोगी धर्मशीलः। साधु धर्मेण सर्वदा, समाजे कल्याणं प्रति॥”

साधु केवल अपने साधना के लिए नहीं, बल्कि समाज के कल्याण के लिए भी कार्य करते हैं। साधु का जीवन समाज में शांति और कल्याण की भावना को बढ़ावा देने के लिए होता है। रामायण में भी यही बताया गया है कि साधु का आचरण समाज के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है। साधु को अपने कार्यों से समाज में सकारात्मक प्रभाव डालना चाहिए।

ये हैं दशनामी अखाड़ों के साधुओं के विभिन्न दायित्वों में कुछ दायित्व।

नागा साधुओं के अखाड़ों का महत्व भारतीय संस्कृति में अत्यधिक गहरा है। उनके जीवन का प्रत्येक पहलू तप, त्याग और अनुशासन से परिपूर्ण है। वे न केवल अपनी साधना में जुटे रहते हैं, बल्कि समाज के हर क्षेत्र में धर्म, शांति और संतुलन बनाए रखने का कार्य करते हैं। उनका दायित्व केवल आत्मा की शुद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि वे समाज के कल्याण के लिए भी निरंतर प्रयासरत रहते हैं।

“धर्मेण विजयते सर्वं, धर्मेण समृद्धिं यान्ति। धर्मेण यशः प्राप्तं च, धर्मेण शांति साध्यते॥”

अर्थात– धर्म के द्वारा ही सभी प्रकार की विजय, समृद्धि, और शांति प्राप्त होती है। नागा साधुओं का जीवन इस श्लोक का सजीव उदाहरण है।

आज के लिए इतना ही…नागा साधुओं और अखाड़ों के दायित्व पर यह थी हमारी पेशकश। अगले एपिसोड में हम लेकर आएंगे महाकुंभ, अखाड़े और साधुओं से जुड़ी वो अनकही बातें, जिन्हें अब तक न कहीं सुना गया और न कहा गया।