Kumaoni Holi: होली का खुमार कुमाऊं के घर-घर पर चढ़ने लगा है। घरों में सुबह और शाम आयोजित बैठकी होली में मधुर शास्त्रीय संगीत की धुनों पर गाने गाए जा रहे हैं। जल कैसे भरूं, नदिया गहरी……..।
कुंमाऊं की सांस्कृतिक नगरी के रूप में मशहूर अल्मोड़ा जिले में होली के अबीर और गुलाल उड़ने शुरू हो गए हैं।यहां होली की परंपरा लगभग150 वर्ष पुरानी है।यही वजह है कि आज भी यहां आधुनिकता और चकाचौंध का असर देखने को नहीं मिलता।
कुमाऊं में चीरबंधन के साथ ही होली का रंग फिजाओं में उड़ने लगा है।8 मार्च तक कुमाऊं का लगभग हर के गांव इन रंगों में सराबोर रहेगा।यहां बताते चलें कि अल्मोड़ा शहर की बैठकी होली काफी प्रसिद्ध है।
इस होली में खासतौर से शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली गीत गाए जाते हैं। बैठकी होली करीब 150 साल से गाई जाती है। वर्ष 1860 में इस होली की शुरुआत की गई थी, जो अलग-अलग रागों पर आधारित थी।
देश में बृज के बाद उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में ही कई दिनों तक होली मनाने की परंपरा है। खड़ी होली की खासियत यह है कि इस कार्यक्रम में सभी वर्गों के लोग बढ़-चढ़कर भागीदारी करते हैं। होली की तीन विधाएं हैं। पहली बैठकी होली, दूसरी खड़ी होली और तीसरी महिलाओं की होली।
Kumaoni Holi: यहां जानिए होली के 3 रूपों का मतलब
Kumaoni Holi: जानकारी के अनुसार उस्ताद अमानत हुसैन नाम एक मुस्लिम कलाकार को यहां होली के विभिन्न रूपों को मनाने का जनक माना जाता है। खड़ी होली का मतलब यह बिल्कुल नहीं कि आप उसे खड़े होकर ही गा सकते हैं। आप उसे बैठकर भी गा सकते हैं। खड़ी होली का शब्द ब्रज की भाषा से आया है।
Kumaoni Holi: दूसरी होली है बैठकी होली, जिसमें शास्त्रीय संगीत पर आधारित होली सुनने के लिए मिलती है। तीसरी महिलाओं की होली होती है।महिलाएं रंगों के त्योहार में ऐसे सराबोर हो जाती हैं, जिसमें सभी लोग झूम उठते हैं। बैठकी होली की शुरुआत पौष मास के पहले रविवार से हो जाती है। लोग इसे लेकर काफी उत्साहित रहते हैं।
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