Karwa Chauth Vrat Katha: पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा

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करवा चौथ की व्रत कथा
करवा चौथ की व्रत कथा

सनातन धर्म में करवा चौथ व्रत का एक विशेष महत्व है। हर साल कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन यह व्रत सुहागिनों द्वारा रखा जाता है। चौथ का व्रत महिलाएं पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए रखती हैं। इस साल 20 अक्टूबर 2024, रविवार को करवा चौथ ह। करवा चौथ के दिन करवा माता और चंद्रमा की पूजा किए जाने का विधान है। करवा चौथ के दिन करवा चौथ व्रत कथा जरूर पढ़ें, मान्यता है कि इस कथा के बिना अर्घ्य अधूरा होता है। तो चलिए जानते हैं कि क्या है करवा चौथ की व्रत कथा?

करवा चौथ की व्रत कथा

एक साहूकार था। उसके सात बेटे थे और एक बेटी थी। वह सातों भाईयों की प्यारी बहन थी। एक साथ ही बैठकर वह खाना खाते थे। एक दिन कार्तिक की चौथ आई तो उसकी बहन ने करवा चौथ का व्रत रखा। सारे भाई भोजन करने आए और अपनी बहन से बोले आ बहन तू भी खाना खा ले। उनकी मां बोली आज यह खाना नहीं खाएगी। इसका करवा चौथ का व्रत है। जब चांद निकलेगा तभी यह खाना खाएगी। तो उसके भाइयों ने छल कपट से जंगल में आग जलाकर छलनी में से चांद दिखा दिया तो वह अपनी भाभियों से बोली चला भाभी चांद निकल आया है। अर्घ दे दो। तो उसकी भाभियां बोली यह तो तेरा चांद निकला है। हमारा तो रात को निकलेगा। यह सुनकर भाईयों के कहने से उसने चांद को अर्घ दे दिया और खाना खाने बैठ गई। पहला टुकड़ा तोड़ा बाल निकला, दूसरा टुकड़ा तोड़ा छींक मारी, तीसरा टुकड़ा तोड़ने के लिए जैसे ही बैठी राजा के घर से बुलावा आ गया कि राजा का लड़का बीमार है जल्दी भेजो।

मां ने लड़की के पहनने के लिए तीन बार संदूक खोला तीनों बार सफेद रंग की ही साड़ी निकली। अब वह सफेद कपड़े पहनकर ही ससुराल गई और मां ले लकड़ी के पल्ले में एक सोने का सिक्का डाल दिया और बोली रास्ते में जो भी मिले पैर पड़ती जाइयो जो तुझे सुहाग की आशीष दे उसे सोने का सिक्का दे देना और पल्ले को गांठ लगा लेना। अब उसे रास्ते में जो कोई भी मिला सबके पैर छूए पर किसी ने भी सुहाग का आशीष नहीं दी। अब वह ससुराल में आई तो दरवाजे पर छोटी ननद खड़ी थी। वह उसके पैर पड़ी तो ननद बोली- सीली हो, सपूती हो, सात बेटों की मां हो, मेरे भाई का सुख देख। अब उसने सोने का सिक्का ननद को देकर पल्ले में गांठ मार ली। उसके बाद वह अंदर आई। आकर देखा की उसका पति मरा पड़ा था। अब वह उसे लेकर एक कोठरी में पड़ी रही। एक साल तक उसकी सेवा की। उसकी सास बांदी के साथ बची कुची रोटी भेज देती। इस प्रकार उसने एक साल तक अपने पति की सेवा की।

सालभर बाद करवाचौथ का व्रत आया। सारी पड़ोसनों ने नहा धोकर करवा चौथ का व्रत रखा। सबने सिर धोकर हाथों में मेहंदी लगाई। चूड़ियां पहनी। वह सब कुछ देखती रही। एक पड़ोसन ने कहा कि तू भी करवा चौथ का व्रत रख ले। तब वह बोले मैं कैसे करूं। तो वह बोली चौथ माता की कृपा से सब ठीक हो जाएगा। उसके कहने से उसने भी व्रत रख लिया। थोड़ी देर के बाद करवा बेचने वाली आई। करवे लो री करवे लो। भाईयो की प्यारी करवे लो। ऐ करवे वाली मुझे भी करवा दे जा। वह कहने लगी मेरी दूसरी बहन आएगी वह तुझे करवा देगी। इस तरह पांच बहने आकर चली गई। पर किसी ने भी करवा नहीं दिया। फिर छठि बहन आई तो वह भी बोली की मेरी सातवीं बहन आएगी तो वह तुझे करवा देगी। बस तू रास्ते में कांटे बिखेरकर रख देना। जब भी खूब चिल्लाते हुए आएगी तो उसके पैर में कांटे चुभ जाएंगे। तब तू सूई लेकर बैठ जाना और उसके पैर पकड़कर छोड़ना मत। और उसके पैर से कांटा निकाल देना। तो वह तुझे आशीर्वाद देगी। भाई जियो, साई जियो। जब वह तुम्हे आशीर्वाद देगी तो तुम उससे करना मांग लेना। तब वह तुझे करवा देकर जाएगी। फिर तू अजमन करना जिससे तेरा पति ठीक हो जाए।