उत्तराखंड में भर्ती घोटाले और पेपर लीक प्रकरण को लेकर राजनीतिक जंग लगातार तेज हो रही है। युवाओं के प्रदर्शन और विपक्ष के हमलों के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में बयान दिया कि राज्य सरकार ने अब तक पारदर्शिता के साथ 25,000 नौकरियां दी हैं। उन्होंने नकल विरोधी कानून लागू करने को भी अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया। लेकिन कांग्रेस ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए सरकार को घेर लिया है।
कांग्रेस प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने कहा कि मुख्यमंत्री का दावा पूरी तरह फर्जी है। उन्होंने सीधी चुनौती देते हुए कहा, “अगर सचमुच 25,000 युवाओं को नौकरी दी गई है तो मुख्यमंत्री और उनके मंत्री विभागवार आंकड़े सार्वजनिक करें। अगर यह आंकड़ा सही निकला तो हम मुख्यमंत्री को गुलाब के फूलों की माला पहनाएंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार का दावा केवल जनता को गुमराह करने की कोशिश है।”
धस्माना ने राज्य में खाली पड़े पदों की स्थिति का भी जिक्र किया। उनके मुताबिक, “जहां थानों में 10 दरोगा होने चाहिए वहां सिर्फ 5 ही हैं। कई चौकियों में सिपाहियों की संख्या आधी है। पिछले साढ़े आठ साल से न तो दरोगाओं की भर्ती हुई और न ही सिपाहियों की। इसी तरह वन विभाग, ऊर्जा विभाग और सिंचाई विभाग में भी हालात गंभीर हैं। अधिकांश विभागों में पद रिक्त पड़े हैं, अस्पतालों में स्टाफ की कमी है और शिक्षा विभाग में उपनल कर्मियों के भरोसे काम चलाया जा रहा है।”
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार बेरोजगारी के असली आंकड़ों को छिपाने की कोशिश कर रही है। “प्रदेश में युवा रोज़गार की मांग को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। पेपर लीक मामले ने युवाओं का भरोसा और भी कमजोर कर दिया है। ऐसे में 25,000 नौकरियों का दावा करना सिर्फ़ जनता की आंखों में धूल झोंकने जैसा है।”
वहीं, भाजपा का कहना है कि धामी सरकार ने पारदर्शिता की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। नकल विरोधी कानून को पूरे देश में मॉडल मानकर देखा जा रहा है। भर्ती प्रक्रियाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए आयोगों और विभागों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। सरकार का तर्क है कि कई विभागों में चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और जल्द ही नए नियुक्ति पत्र जारी होंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी निकाय और विधानसभा चुनाव से पहले रोजगार का मुद्दा एक बार फिर केंद्र में आ गया है। युवाओं का गुस्सा और विपक्ष का दबाव सरकार के लिए चुनौती बन सकता है।
फिलहाल, कांग्रेस और भाजपा के बीच बयानबाज़ी का यह दौर रुकने वाला नहीं दिखता। युवाओं को नौकरी मिलने का वास्तविक आंकड़ा सामने आएगा या नहीं, यह आने वाले दिनों में साफ होगा। लेकिन इतना तय है कि बेरोजगारी और भर्ती घोटाले का मुद्दा प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक गूंजता रहेगा।