उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी ने बड़ा कदम उठाते हुए तीन विधायकों—अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज कुमार पांडेय—को पार्टी से बाहर कर दिया है। ये वही विधायक हैं जिन्होंने बीते वर्ष राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी लाइन से हटकर भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान किया था। हालांकि आठ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की थी, लेकिन कार्रवाई सिर्फ तीन पर ही हुई है। अब सवाल उठ रहा है कि बाकी पांच पर अभी तक कोई कदम क्यों नहीं उठाया गया? इस पर खुद समाजवादी पार्टी की ओर से सफाई दी गई है।
2024 में लोकसभा चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए मतदान हुआ था। इस चुनाव में सपा ने तीन और भाजपा ने आठ उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। नतीजों में सपा को उस समय बड़ा झटका लगा, जब पार्टी के आठ विधायकों ने क्रॉस वोटिंग करते हुए भाजपा के पक्ष में वोट दिया, जिससे सपा के तीसरे उम्मीदवार आलोक रंजन को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा का आठवां प्रत्याशी संजय सेठ जीत गया, जबकि उनके पास पूर्ण बहुमत नहीं था।
बाकी पांच विधायक बचे कैसे?
बागी विधायकों की सूची में अभय सिंह, राकेश प्रताप सिंह और मनोज कुमार पांडेय के अलावा पूजा पाल, राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी, आशुतोष चतुर्वेदी और महाराजी देवी के नाम भी शामिल थे। इन सभी ने पार्टी लाइन के खिलाफ मतदान किया था। लेकिन जिन तीन विधायकों पर अब कार्रवाई हुई है, वे हाल के महीनों में भाजपा नेताओं के साथ खुलकर दिखाई दिए थे। दूसरी ओर, बाकी पांच विधायक उतने सक्रिय नहीं दिखे और उनके व्यवहार में संयम देखा गया।
समाजवादी पार्टी ने स्पष्ट किया है कि जिन विधायकों को निष्कासित किया गया है, उन्हें आत्मविश्लेषण के लिए एक “अनुग्रह-अवधि” दी गई थी, लेकिन तय समय के भीतर जब उनके रवैये में कोई सुधार नहीं दिखा, तो पार्टी को यह कठोर निर्णय लेना पड़ा। वहीं, शेष पांच विधायकों को उनके अपेक्षाकृत बेहतर व्यवहार के चलते अभी मौका दिया गया है।
पार्टी लाइन के खिलाफ कोई रियायत नहीं
पार्टी ने साफ तौर पर कहा है कि भविष्य में अगर कोई नेता या विधायक समाजवादी विचारधारा से हटकर काम करता पाया गया, तो उसे माफ नहीं किया जाएगा। संगठन की नीतियों और सिद्धांतों के विरोध में किसी भी गतिविधि को अक्षम्य माना जाएगा, और ऐसे लोगों के लिए समाजवादी पार्टी में कोई जगह नहीं बचेगी।