उत्तर प्रदेश में 2026 के पंचायत चुनाव और 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने अपनी चुनावी रणनीति को धार देना शुरू कर दिया है। पिछली बार यानी 2022 के विधानसभा चुनावों में हुए नुकसान से सबक लेते हुए बीजेपी अब उन वर्गों और जातियों पर खास ध्यान दे रही है जिनका असर चुनावी परिणामों पर निर्णायक होता है। खासकर राजभर समाज को लेकर बीजेपी की रणनीति स्पष्ट होती जा रही है।
10 जून को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच में महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का अनावरण किया। यह कदम केवल सांस्कृतिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी है। महाराजा सुहेलदेव को राजभर समाज का नायक माना जाता है और इसी समाज के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की दिशा में बीजेपी ने यह प्रतीकात्मक लेकिन असरदार पहल की है। इसी दिन, वर्षों से बहराइच में आयोजित हो रहा सालार मसूद गाजी का मेला भी नहीं लगाया गया, जिसे बीजेपी ने आक्रांताओं को महिमामंडित करने वाला बताया।
वर्ष 2022 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में जाने का खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा था। बताया जाता है कि राज्य की लगभग 30 विधानसभा सीटों और करीब 10 लोकसभा क्षेत्रों में राजभर मतदाताओं का खासा असर है। कुल मतदाताओं में यह समुदाय लगभग 4 फीसदी हिस्सेदारी रखता है, जो कई सीटों पर निर्णायक बन जाता है।
सुभासपा के नेताओं का दावा है कि राज्य के कम से कम 18 जिलों में उनकी जाति का प्रभाव देखा जाता है, जिनमें वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, जौनपुर, मऊ, बलिया, आजमगढ़, देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, अयोध्या, बहराइच और श्रावस्ती जैसे जिले प्रमुख हैं। बीजेपी पहले भी इस समाज को साधने की कोशिश कर चुकी है, जैसे कि अनिल राजभर को मंत्री बनाना और सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजना, जो 2018 से 2024 तक सदस्य रहे।
बीजेपी अब यह सुनिश्चित करना चाहती है कि 2022 जैसी गलती दोबारा न दोहराई जाए और राजभर समाज से जुड़ा वोट बैंक उसके साथ मजबूती से जुड़ा रहे। साथ ही, सहयोगी दलों को भी इस समीकरण से लाभ दिलाना पार्टी की रणनीति का हिस्सा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी पंचायत और विधानसभा चुनावों में बीजेपी की यह नयी रणनीति कितना असर दिखा पाती है।