UP POLITICS: आजम खान की रिहाई के बाद UP की सियासत में हलचल: बसपा में जाने से बदलेंगे समीकरण?

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UP POLITICS: उत्तर प्रदेश की राजनीति में सियासी हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री मोहम्मद आज़म खान लगभग 23 महीने बाद सीतापुर जेल से बाहर आ चुके हैं। उनकी रिहाई के साथ ही सबसे बड़ा सवाल यही है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले आज़म खान की अगली राजनीतिक राह क्या होगी। क्या वह सपा में बने रहेंगे या बसपा का दामन थामेंगे? यही प्रश्न फिलहाल यूपी की सियासत का सबसे चर्चित विषय बन गया है।

आज़म खान की राजनीतिक ताक़त और प्रभाव

आज़म खान सपा के संस्थापकों में से एक माने जाते हैं। रामपुर और उसके आसपास के इलाकों में उनका जबरदस्त प्रभाव है। मुस्लिम समुदाय के बड़े नेता के तौर पर उनकी पहचान रही है। विधानसभा चुनावों में उनका असर कई सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है। यही वजह है कि उनके बसपा में शामिल होने की अटकलों से सपा के वोट बैंक पर बड़ा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।

बसपा में जाने की अटकलें और संभावित समीकरण

सियासी हलकों में चर्चा है कि आज़म खान बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा तय माना जा रहा है। मायावती पहले ही कई चुनावों में मुस्लिम और दलित समीकरण पर दांव खेल चुकी हैं। ऐसे में अगर आज़म बसपा में जाते हैं तो सपा को न केवल रामपुर बल्कि आसपास के कई क्षेत्रों में नुकसान हो सकता है।

भाजपा और डिप्टी सीएम की प्रतिक्रिया

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “आज़म खान चाहे सपा में रहें या बसपा में जाएं, 2027 में सपा और बसपा दोनों की हार तय है।” भाजपा की ओर से लगातार यह संदेश दिया जा रहा है कि विपक्ष के किसी भी गठजोड़ से भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा। साफ है कि भाजपा आज़म खान की चाल पर पैनी नजर बनाए हुए है।

अखिलेश यादव का रुख

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज़म खान के महत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि वे पार्टी के संस्थापक हैं और उन्होंने संगठन के लिए बड़ा योगदान दिया है। अखिलेश ने संकेत दिया कि अगर सपा की सरकार बनती है तो आज़म खान पर दर्ज मुकदमों की समीक्षा होगी। हालांकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि यह बयान सपा के भीतर भाईचारे को बनाए रखने की कोशिश है, ताकि आज़म खान का असर पार्टी के पक्ष में बना रहे।

बड़ा सवाल: मुस्लिम वोट किस ओर जाएगा?

आज़म खान का फैसला 2027 के चुनाव में मुस्लिम वोटों के झुकाव को काफी हद तक प्रभावित करेगा। यदि वे बसपा का दामन थामते हैं तो मुस्लिम-दलित समीकरण भाजपा के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है। वहीं अगर वे सपा में बने रहते हैं तो अखिलेश यादव को मुस्लिम वोटों के बंटवारे की चिंता कम होगी।

आज़म खान की रिहाई के साथ ही यूपी की सियासत में नई ऊर्जा आ गई है। उनके अगले कदम पर न केवल सपा और बसपा की रणनीति निर्भर करेगी, बल्कि भाजपा भी अपनी चाल उसी हिसाब से तय करेगी। सवाल यही है कि आज़म खान किस दल के साथ खड़े होंगे—क्या वे सपा में बने रहेंगे या बसपा में जाकर नए समीकरण गढ़ेंगे? इस जवाब पर 2027 के चुनावी नतीजों की दिशा काफी हद तक निर्भर करेगी।