एक लंबा इतिहास है जब अपनों ने दौलत और सत्ता के लिए अपनों के पीठ पर खंजर भोंका। राजनीति में तो यह चलन बहुत पुराना है, कभी बेटे ने बाप को बेदखल किया तो कभी भाई ने भाई को। लेकिन आंध्रप्रदेश की राजनीति में एक दामाद ने अपने ससुर का तख्ता पटल कर नया उदाहरण पेश किया था।
जी हां, हम बात कर रहे हैं एन टी रामाराव और चंद्रबाबू नायडू की। बात 80 के दशक की है, जब आंध्रप्रदेश की राजनीति में एनटी रामाराव की तूती बोलती थी। एनटी रामाराव का फिल्मी कैरियर खत्म हो गया था और रामराव ने 29 मार्च 1980 को तेलुगु गरिमा को भुनाने के लिए तेलगु देशम पार्टी का गठन किया। एनटीआर को आंध्रप्रदेश की जनता ने एक मसीहा की तरह माना और 1983 में पहली बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाया।
एनटी रामाराव की आंध्रप्रदेश की राजनीति में गजब की पकड़ थी। उनके समर्थक उन्हें देवता की तरह पूजते थे। अपने दौर में एनटीआर का कद आंध्रप्रदेश ही नहीं भारतीय राजनीति में बेहद बड़ा माना जाता था।यही वजह थी कि एनटीआर तीन-तीन बार आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। लेकिन पारिवारिक कलह की वजह से एनटीआर को अपने आखिरी दिनों में वो सबकुछ झेलना पड़ा जो सैकड़ों सालों पहले औरंगजेब के हाथों शाहजहां को झेलना पड़ा था।
दरअसल इसकी पृष्ठभूमि उस वक्त से ही तैयार होनी शुरू हो गई थी जब एनटीआर ने लक्ष्मी पार्वती से शादी की। साल 1985 में एनटीआर की पहली पत्नी की कैंसर से मृत्यु हो गई और इसके बाद से वे भगवा कपड़े पहनने लगे थे। लेकिन लक्ष्मी पार्वती के उनके जीवन में आते ही एनटीआर का जीवन बदल गया।
एनटीआर की जीवनी लिखने के सिलसिले में लक्ष्मी पार्वती उनसे मिलीं और फिर दोनों में प्यार हो गया। 1993 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के वक्त एनटीआर 70 साल के थे जबकि लक्ष्मी पार्वती सिर्फ 38 साल की थी। दोनों की इस बेमेल शादी ने उस वक्त विवाद और सुर्खियां बटोरी थी। लक्ष्मी पार्वती के रामाराव परिवार में आने से भूचाल आ गया। रामाराव की ये शादी उनके बेटे-बेटियों और दामादों को पंसद नहीं आई। उनके सात बेटे और तीन बेटियां थी। इतने भरे पूरे परिवार में से एक बेटा और दो दामाद तेलुगू देशम पार्टी की राजनीति में सक्रिय थे।
शादी के बाद से ही रामाराव पूरी तरह से बदल गए। परिवार एक तरफ और दूसरी तरफ रामाराव पूरी तरह से लक्ष्मी पार्वती के साथ खड़े थे। ऐसे हालात में चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर और उस समय के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के खिलाफ आवाज उठाई। 22 अगस्त 1995 को विजाग के डॉल्फिन होटल से शुरू हुआ टीडीपी का विवाद नौ दिन तक चला। आखिरकार चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटी रामाराव का तख्ता पलट दिया। रामाराव को सीएम और पार्टी अध्यक्ष दोनों पदों से हटा दिया गया। टीडीपी के 216 में से 198 विधायकों के समर्थन के सहारे पांच दिन बाद नायडू खुद सीएम बन गए। बाद में बाकी 18 विधायक भी नायडू के साथ चले गए।
दामाद के हाथों सत्ता छीने जाने से एनटीआर को बड़ा आघात लगा। एनटीआर ने चंद्रबाबू नायडू को पीठ में खंजर भोंकने वाला और औरंगजेब बताया। इस घटना से दुखी एनटीआर हैदराबाद के बंजारा हिल्स स्थित अपने घर को लौट गए।
दरअसल इस पूरे तख्ता पलट में एनटीआर के खिलाफ दो बातें गई। पहला उनकी खराब सेहत और दूसरा एनटीआर की दूसरी बीवी लक्ष्मी पार्वती का पार्टी के कामों में दखल। पार्वती पार्टी के कामों में दखल से टीडीपी में असंतोष था। टीडीपी विधायक, पार्टी नेता और यहां तक कि नौकरशाह भी लक्ष्मी पार्वती से नाराज थे। एक समय था जब वह पार्टी के साथ ही सरकार भी चलाती थीं। ऐसे में चंद्रबाबू नायडू को डर था कि खराब स्वास्थ्य के चलते एनटीआर पार्वती को ही पार्टी की कमान सौंप सकते हैं। इन्हीं हालातों के बीच दामाद चंद्रबाबू नायडू ने ससुर एनटी रामाराव के तख्ता पलट का फैसला लिया और खुद मुख्यमंत्री बन बैठे।
ब्यूरो रिपोर्ट, एपीएन