बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आते ही एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सियासी भिड़ंत और तेज़ हो गई है। इस बीच बीजेपी ने एक नया दांव खेला है—मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को बिहार की सियासत में उतारकर। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम का मकसद यादव वोट बैंक में सेंध लगाना, लालू यादव की पकड़ को चुनौती देना और एनडीए के समीकरण को और मजबूत करना है।
पटना में दिखी बड़ी तैयारी
14 सितंबर को पटना में आयोजित यादव महासभा के कार्यक्रम में डॉ. मोहन यादव की एंट्री काफी चर्चा में रही। इस आयोजन में बीजेपी ने यादव समाज को जोड़ने का पूरा प्रयास किया। मंच पर ओबीसी आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर, बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव, छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री गजेंद्र यादव, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव और विधायक संजीव चौरेसिया जैसे नेता मौजूद थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कार्यक्रम में भगवान कृष्ण से जुड़े सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी हुईं, जिनके ज़रिए राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की गई।
सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने की रणनीति
अपने संबोधन में मोहन यादव ने बिहार की गौरवशाली परंपरा को बीजेपी के चुनावी नैरेटिव से जोड़ा। उन्होंने सम्राट अशोक, पाटलिपुत्र, उज्जैन और भोजपुर भाषा के रिश्तों का ज़िक्र करते हुए बिहार और मध्य प्रदेश की साझा सांस्कृतिक धारा पर जोर दिया। साथ ही भगवान कृष्ण, बुद्ध, जैन धर्म के तीर्थंकरों, चाणक्य, नालंदा और तक्षशिला की परंपरा का हवाला देकर यादव समुदाय और धार्मिक चेतना से जुड़ने का प्रयास किया।
‘एमवाई’ समीकरण को तोड़ने की कोशिश
बीजेपी की नज़र सीधा ‘एमवाई समीकरण’ (मुस्लिम-यादव) पर है, जिसे दशकों से लालू यादव का मजबूत आधार माना जाता है। पटना दौरे में डॉ. मोहन यादव ने राम मंदिर, पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अपनी साधारण पृष्ठभूमि का ज़िक्र कर आरजेडी की वंशवादी राजनीति पर हमला बोला।
गौरतलब है कि इससे पहले भी वे ‘निसादराज सम्मेलन’ के ज़रिए मछुआरा समाज को जोड़ने की कोशिश कर चुके हैं, जिसका असर बिहार की लगभग 45 विधानसभा सीटों पर माना जाता है।