इंडिगो फ्लाइट की नाक अंधड़ में कैसे टूटी? जानिए इससे जुड़ा हर बड़ा खतरा और तकनीकी राज़

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इंडिगो फ्लाइट की नाक अंधड़ में कैसे टूटी?
इंडिगो फ्लाइट की नाक अंधड़ में कैसे टूटी?

हाल ही में देश के कई हिस्सों में तेज़ अंधड़ और बारिश के चलते एक चौंकाने वाली घटना सामने आई। इंडिगो एयरलाइंस की एक फ्लाइट को इमरजेंसी लैंडिंग करनी पड़ी क्योंकि उसके एयरक्राफ्ट की नाक बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। फ्लाइट में 227 यात्री सवार थे, जिनमें टीएमसी के चार सांसद और पश्चिम बंगाल सरकार के एक मंत्री भी मौजूद थे। सौभाग्य से सभी सुरक्षित रहे, लेकिन सवाल उठता है – आखिर विमान की नाक इतनी आसानी से कैसे टूट सकती है? और इससे कितना बड़ा खतरा पैदा हो सकता है?

किस सामग्री से बनी होती है विमान की नाक?

विमान की नाक, जिसे टेक्निकल भाषा में नोज़ कोन (Nose Cone) कहा जाता है, आमतौर पर मजबूत लेकिन हल्की सामग्री से बनाई जाती है। इसमें फाइबरग्लास, क्वार्ट्ज, हनीकॉम्ब स्ट्रक्चर, विशेष रेजिन और फोम का मिश्रण होता है। कुछ मामलों में पाइरोलिटिक कार्बन और कार्बन कंपोज़िट जैसी हाई-टेक सामग्री का इस्तेमाल भी होता है, जिससे यह तेज़ रफ्तार में भी अपना आकार बनाए रख सके।

नोज़ कोन का असली काम क्या होता है?

आपको जानकर हैरानी होगी कि यह नाक सिर्फ देखने के लिए नहीं होती। इसका डिज़ाइन ऐसा होता है जो हवा में रेसिस्टेंस को कम करता है यानी प्लेन को आगे बढ़ने में मदद करता है। यह एरोडायनामिक ड्रैग को घटाता है, जिससे ईंधन की खपत भी कम होती है। इसके अलावा, इसी हिस्से में कई महत्वपूर्ण सेंसर और उपकरण लगे होते हैं जो विमान की नेविगेशन, वेदर ट्रैकिंग और फ्लाइट कंट्रोल में अहम भूमिका निभाते हैं।

नाक टूटने से क्या हो सकता है खतरा?

अगर विमान की नाक क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो खतरे की घंटी बज जाती है। सबसे पहले तो इससे विमान की एयर डायनामिक्स गड़बड़ा सकती हैं – मतलब, हवा से मुकाबला करने में प्लेन को दिक्कत हो सकती है, जिससे संतुलन बिगड़ सकता है। नोज़ कोन के पास ही पायलट का कॉकपिट होता है, और अगर वहां से दबाव लीक हो जाए, तो पायलट की जान को भी खतरा हो सकता है।

इतना ही नहीं, अगर नोज़ कोन में लगे सेंसर या रडार सिस्टम खराब हो जाएं, तो नेविगेशन फेल हो सकता है। पायलट को न तो मौसम की सही जानकारी मिलेगी, न रास्ते की। ऐसे में प्लेन का नियंत्रण बिगड़ सकता है और गंभीर हादसे की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।

इंडिगो की इस घटना ने एक बार फिर दिखा दिया कि चाहे कितनी भी आधुनिक तकनीक क्यों न हो, मौसम की मार का असर सभी पर होता है। हालांकि पायलट की सतर्कता और तकनीकी टीम की फुर्ती से इस बार सब कुछ नियंत्रण में रहा, लेकिन यह घटना उन यात्रियों के ज़ेहन में हमेशा एक डर छोड़ गई होगी।