चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त में क्या है अंतर? जानें उनके अधिकार और जिम्मेदारियां

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चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त में क्या है अंतर? जानें उनके अधिकार और जिम्मेदारियां
चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त में क्या है अंतर? जानें उनके अधिकार और जिम्मेदारियां

भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनावों का आयोजन कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। आज, 18 फरवरी को, देश के नए मुख्य चुनाव आयुक्त की घोषणा कर दी गई है। ज्ञानेश कुमार अब इस पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। इससे पहले, इस पद पर राजीव कुमार कार्यरत थे। ज्ञानेश कुमार आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के अलावा, अगले वर्ष होने वाले बंगाल, असम और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों का संचालन करेंगे। चुनाव आयोग में केवल मुख्य चुनाव आयुक्त ही नहीं, बल्कि चुनाव आयुक्त भी होते हैं। आइए, समझते हैं कि इन दोनों पदों में क्या अंतर है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त में क्या अंतर होता है?

भारत में चुनाव आयोग का मुख्य कार्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराना होता है। आयोग में लिए जाने वाले सभी निर्णय मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की सहमति से तय किए जाते हैं। लेकिन बहुत से लोगों को यह स्पष्ट नहीं होता कि इन दोनों पदों में क्या अंतर है।

दरअसल, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) केवल एक होते हैं, जबकि चुनाव आयुक्त (EC) दो होते हैं। जिस तरह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की भूमिका होती है, उसी तरह चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त की सर्वोच्च भूमिका होती है। इन सभी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के अधिकार क्या हैं?

चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं। हालांकि, किसी भी अंतिम निर्णय पर पहुंचने में सभी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन आखिरी फैसला मुख्य चुनाव आयुक्त का होता है। चुनाव आयुक्त, मुख्य चुनाव आयुक्त को निर्णय लेने में सहयोग करते हैं, लेकिन उनकी तुलना में मुख्य चुनाव आयुक्त अधिक वरिष्ठ होते हैं।

अगर कार्यकाल की बात करें, तो मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त दोनों 65 वर्ष की आयु या 6 साल के कार्यकाल (जो पहले हो) तक पद पर बने रह सकते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त का पद सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समान माना जाता है। इसे हटाने के लिए महाभियोग प्रक्रिया अपनाई जाती है, जो काफी जटिल होती है। वहीं, चुनाव आयुक्तों को राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, लेकिन उनके लिए यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत आसान होती है।