Karwa Chauth 2025 भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें हर व्रत का अपना धार्मिक, पौराणिक और प्रतीकात्मक महत्व होता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत सुभगिन स्त्रियों के लिए बेहद खास माना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, खुशहाली और सुख-समृद्ध जीवन की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत के दौरान पूजा में मिट्टी का करवा (घड़ा) विशेष महत्व रखता है, और इसके बिना करवा चौथ की पूजा अधूरी मानी जाती है।
मिट्टी के करवे का प्रतीक
“करवा” शब्द संस्कृत के करक से लिया गया है, जिसका अर्थ है घड़ा या जलपात्र। मिट्टी से बने करवे को पांच पंचतत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—का प्रतीक माना जाता है। इसी मिट्टी से मानव शरीर की रचना मानी जाती है। करवा चौथ पर मिट्टी का करवा धरती और सृष्टि के मूल तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है। स्त्रियां जब इसमें जल भरती हैं या पूजा में इसका इस्तेमाल करती हैं, तो वे इन पंचतत्वों को साक्षी मानकर अपने सुहाग की रक्षा और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।
पूजा में करवे का महत्व
व्रत के दिन शाम को चंद्र दर्शन से पहले महिलाएं मिट्टी के करवे में जल भरती हैं और इसे पूजा स्थल पर रखती हैं। इसके साथ ही वे भगवान गणेश, शिव-पार्वती, कार्तिकेय और चौथ माता की पूजा करती हैं। करवे पर चावल, मिठाई और अन्य पूजनीय सामग्री रखकर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। यह करवा केवल पूजा का पात्र नहीं है, बल्कि स्त्री की निष्ठा, प्रेम और संयम का प्रतीक भी बन जाता है।
मिट्टी का करवा क्यों जरूरी है?
मिट्टी को शुद्ध और सात्त्विक माना जाता है, जबकि धातु या प्लास्टिक के करवे कृत्रिम माने जाते हैं। मिट्टी का करवा पर्यावरण और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है और धरती माँ के प्रति कृतज्ञता दर्शाता है। इसलिए धार्मिक दृष्टि से पूजा में मिट्टी का करवा होना अनिवार्य माना गया है; इसके बिना व्रत अधूरा माना जाता है।
इस तरह, करवा चौथ का मिट्टी का करवा पूजा का केवल साधन नहीं, बल्कि जीवन, निष्ठा, प्रकृति और धर्म का अद्भुत संगम है। यह स्त्रियों के सच्चे प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक बनकर भारतीय परंपरा में आज भी जीवंत है।