गोवर्धन पूजा में कैसे बनता है अन्नकूट? जानिए इसकी परंपरा, महत्व और रेसिपी

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गोवर्धन पूजा में कैसे बनता है अन्नकूट?
गोवर्धन पूजा में कैसे बनता है अन्नकूट?

दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इस पर्व का संबंध भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इंद्र के अहंकार को शांत करने और गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा करने की घटना से जुड़ा है। अन्नकूट का अर्थ ही है – ‘अन्न का विशाल पर्वत’। इस दिन विभिन्न प्रकार के व्यंजन, सब्ज़ियां, अनाज, मिठाइयाँ और प्रसाद के रूप में एक साथ बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि यह पर्व कृतज्ञता का प्रतीक है, जिसमें मानव प्रकृति और अन्नदाता भगवान के प्रति धन्यवाद व्यक्त करता है।

अन्नकूट का धार्मिक महत्व

पुराणों के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को प्रकृति पूजा का महत्व बताया, तब से गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ हुई। इस दिन लोग अपने घरों और मंदिरों में गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक रूप बनाते हैं और उसके चारों ओर दीपक जलाते हैं। अन्नकूट में भगवान को सैकड़ों प्रकार के पकवान अर्पित किए जाते हैं, जो समृद्धि और कृतज्ञता का संकेत है। माना जाता है कि प्रकृति, गाय, पशुधन और अन्न की आराधना से जीवन में सुख-संपन्नता बनी रहती है।

अन्नकूट में क्या-क्या बनता है?

अन्नकूट की विशेषता यह है कि इसमें एक नहीं बल्कि अनेक प्रकार की मौसमी सब्ज़ियाँ, दालें, अनाज, मिठाइयाँ, फल और चूरमा आदि शामिल किए जाते हैं। परंपरा यह भी है कि अधिकतर व्यंजन सात्विक और देशी घी में तैयार किए जाते हैं। उत्तर भारत में 56 भोग (छप्पन भोग) का भी चलन है, जो विविधता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

अन्नकूट में शामिल मुख्य सामग्री:

  • आलू, गाजर, फूलगोभी, पत्ता गोभी, मेथी, पालक, बैंगन, लौकी, तोरई, शिमला मिर्च, बीन्स, मटर जैसी मिश्रित सब्ज़ियाँ
  • कुट्टू या राजगिरा का आटा (किसी क्षेत्र में व्रत शैली का प्रसाद भी बनता है)
  • देसी घी और पनीर
  • मूंग दाल, चने की दाल
  • काजू, किशमिश, बादाम आदि सूखे मेवे
  • जीरा, अदरक, सेंधा नमक या साधारण नमक (परंपरा के अनुसार)
  • चावल, खिचड़ी, हलुवा, खीर, पूड़ी या बाफले जैसी चीजें
  • अन्नकूट बनाने की पारंपरिक विधि (रिसैपी)
  1. सब्जियों की तैयारी

सबसे पहले सभी ताज़ी सब्ज़ियों को बड़े टुकड़ों में काटा जाता है ताकि पकने के बाद उनका स्वाद और पोषण बरकरार रहे। कुछ क्षेत्रों में सब्जियों को अलग-अलग पकाने के बजाय एक बड़े भगोने में एक साथ बनाया जाता है। इस मिश्रित सब्जी को ही अन्नकूट की मुख्य थाली माना जाता है।

  1. तड़के की विधि

देसी घी में जीरा, हींग, अदरक और हल्का सा गरम मसाला डाला जाता है। कई स्थानों पर लाल मिर्च कम या बिल्कुल नहीं डाली जाती। इसके बाद सब्जियां डालकर हल्का भून लिया जाता है।

  1. सब्जी पकाना

थोड़ा पानी डालकर ढककर धीमी आंच पर पकाया जाता है। चूंकि अन्नकूट पर्व का व्यंजन “सात्त्विक भोजन” माना जाता है, इसमें प्याज और लहसुन नहीं डाला जाता। दूध या दही मिलाने की परंपरा भी कई जगह होती है, ताकि सब्जी का स्वाद और क्रमशः पचने की क्षमता बढ़ सके। पकने के बाद इसमें हरा धनिया और देसी घी डालकर भगवान को भोग लगाया जाता है।

  1. खिचड़ी या चावल

अन्नकूट में खिचड़ी भी प्रसाद का हिस्सा होती है। गोवर्धन कथा में गौ-सेवा का उल्लेख होने के कारण दूध, दही, घी और अनाज का विशेष महत्व माना गया है। खिचड़ी या तो देसी चावल और मूंग दाल से बनाई जाती है, या फिर कुछ क्षेत्रों में सांभर शैली के साथ भी तैयार होती है।

  1. मिठाई और भोग

हलुआ, खीर, बेसन के लड्डू, गुड़-तिल के लड्डू, चूरमा या मेवे वाला प्रसाद भोग में शामिल होता है। मिठाइयों में घी की महक और देसी शक्कर/गुड़ का योगदान स्वाद को और पवित्रता प्रदान करता है।

भोग और प्रसाद चढ़ाने की विधि

अन्नकूट तैयार होने के बाद इसे थालियों और पंगत रूप में सजाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गौमाता की पूजा की जाती है। पूरे परिवार और समुदाय के लोग मिलकर भोग लगाते हैं। भोग के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। भक्तों का मानना है कि यह प्रसाद स्वास्थ्य और समृद्धि दोनों प्रदान करता है क्योंकि इसमें ऋतु परिवर्तन के अनुरूप सभी प्रकार की आयुर्वेदिक पोषण सामग्री सम्मिलित होती है।

अन्नकूट का सामाजिक संदेश

यह पर्व केवल भोजन का उत्सव नहीं है, बल्कि प्रकृति, पशुधन, किसान और ग्रहण किए जाने वाले अन्न के प्रति सम्मान प्रकट करने का माध्यम भी है। मिल-जुलकर भोजन तैयार करना और प्रसाद रूप में ग्रहण करना सामाजिक एकता और सामूहिक सद्भाव का प्रतीक है।